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कर्कश आवाज से कान की कोशिकाओं को नुकसान … गणेशोत्सव में लोग हो रहे बहरे

सांस संबंधी विकारों में भी इजाफा ४० फीसदी बढ़े श्वसन व बहरापन के विकार
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
गणेशोत्सव के दौरान कर्कश आवाजों से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी आयु वर्ग के लोगों को न केवल सुनने की क्षमता में कमी देखी जा रही है, बल्कि विसर्जन के दौरान निकलने वाले शोभायात्रा में जमकर फोड़े जा रहे पटाखों से श्वसन संबंधी विकारों में भी इजाफा हुआ है। चिकित्सकों का कहना है कि इस उत्सव में दोनों तरह के विकारों में करीब ४० फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
उल्लेखनीय है कि त्योहार के दौरान तेज शोर से सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है। इससे सुनने में कठिनाई हो सकती है। कर्कश आवाजों से आंतरिक कान की कोशिकाओं को नुकसान होने से अस्थाई अथवा स्थाई बहरापन हो सकता है। कुछ लोगों को कानों में लगातार घंटियां, भिनभिनाहट या सीटी जैसी आवाजें महसूस होती हैं, जिन्हें टिनिटस कहा जाता है।
चिकित्सा विशेषज्ञों ने जानकारी दी है कि अस्पताल में इस समस्या से जूझ रहे आठ मरीजों में चार वरिष्ठ, दो वयस्क और दो युवा शामिल हैं। इसी तरह पटाखों से निकलने वाले रसायनों के चलते सांस लेने से २०-६५ वर्ष की आयु के लोगों में ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
लोगों की सुनने की क्षमता में आई कमी
ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत केवले ने कहा कि त्योहार के दौरान तेज आवाज के कारण होने वाले ध्वनि प्रदूषण के कारण २०-६५ आयु वर्ग के लोगों की सुनने की क्षमता में कमी आई है। इसके साथ ही पटाखों से निकलने वाले रसायनों से ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं। उन्होंने कहा कि हर दिन आठ लोगों में से पांच वरिष्ठ नागरिक सांस की तकलीफ, दो वयस्क घरघराहट और एक युवा खांसी से पीड़ित होते हैं। त्योहार के दौरान अत्यधिक शोर अथवा प्रदूषण होने पर दरवाजे और खिड़कियां बंद कर दें और घर पर ही रहें।

डॉ. शाह ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है। इससे दिल का दौरा अथवा स्ट्रोक आ सकता है। इसके साथ ही तेज आवाज कान की भीतरी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है। इसका असर सिर्फ शरीर पर ही नहीं बल्कि दिमाग पर भी पड़ता है। इससे चिड़चिड़ापन बढ़ता है और नींद पर बुरा असर पड़ता है।

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