वे लड़, कट और मर रहे हैं
भीड़ और शोर में खप रहे हैं
वे अंधे, गूंगे और बहरे हो गए हैं।
मुल्क के घाव अब गहरे हो गए हैं
एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं हम
फिर बेइंतहा नफरत करते हैं हम।
वे बस्तियां जला रहे, वे गोलियां चला रहे
हर सुबह होती है दुआ-सलाम जिनसे
वहीं अब नफरत की बगिया सजा रहे।
खून से सना है जिनका हाथ
वे खुद को मजहवी बता रहे
वे ईश्वर को समझ पाए न अल्लाह को
दीन को समझ पाए न ईमान को।
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
फिर क्यों नहीं आता मिल-बांट कर रहना
न हिंदू बड़ा है न कोई मुसलमान बड़ा है
हम हैं भारतवासी मेरा हिंदुस्थान बड़ा है।
-प्रभुनाथ शुक्ल