रिश्तों की भीड़
से क्या मिला
केवल औपचारिकता
मतलबपरस्ती और चाटुकारिता*
इससे तो मैं ‘तन्हा’ ही भला
ना किसी से शिकवा
ना किसी से लड़ाई
ना किसी से बेवफ़ाई
रिश्तेदार से भला दोस्त,
दोस्त चाहे एक हो
पर वो नेक हो….
स्वार्थ वाले रिश्तों की चादर
तन-मन पर ना ओढ़े हो
दोस्त मेरा निश्छल हौ और
मेरी मित्रता से
वो निश्चित और निश्चिंत हो
संदेह की बुनियाद पे
ना टिकी हो सोच उसकी।
दुनियावी बंधनों का
वो शिकार ना हो
उसका भरोसा मेरे विश्वास पर
और मेरा विश्वास उसके
भरोसे पर टिका हो
एक दोस्त मेरा, कुछ ऐसा हो
त्रिलोचन सिंह अरोरा