- यूपी के बाद अब कर्नाटक में भी सेम पैटर्न पर चल रहा काम
- कर्नाटक में सरकार ने ३८५ केसों को हटाया
- इनमें हेट स्पीच-सांप्रदायिक दंगे के केस शामिल
एक कहावत है कि अंधा बांटे रेवड़ी अपनों को देता जाए। यूपी के बाद कुछ ऐसा ही मामला अब कर्नाटक में देखने को मिल रहा है। कर्नाटक में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने जुलाई २०१९ से अप्रैल २०२३ तक अपने कार्यकाल के दौरान ३८५ आपराधिक मामलों को हटा दिया, जिसमें १८२ नफरती भाषा, गौ रक्षा और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामले शामिल हैं। इस कदम से १,००० से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं। जाहिर सी बात है कि इनमें से अधिकांश मामले भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से जुड़े हुए हैं। यूपी में भी योगी आदित्यनाथ के ऊपर कई आपराधिक मामले दर्ज थे। जब योगी यूपी की मुख्यमंत्री बने तो वहां पर उनके खिलाफ के सारे मामले सरकार ने हटा लिए गए थे। तब इसकी खासी चर्चा भी हुई थी पर हुआ कुछ नहीं।
जहां तक योगी का सवाल है तो उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर १३८ होने का दावा किया गया था, जो पैâक्ट चेक में फेक निकला था। उतना भले ही न हो पर कुछ केस तो उनके खिलाफ थे ही। माफिया अतीक अहमद की मौत के बाद हाल ही में कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने उत्तर प्रदेश के कानून-व्यवस्था की निंदा करते हुए कहा था, ‘उत्तर प्रदेश में कानून नाम की कोई चीज नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने से पहले उन पर २७ मामले दर्ज थे। अतीक अहमद पर क्रिमिनल केस था तो योगी पर भी केस थे। लेकिन योगी सीएम बन गए। यह न केवल उत्तर प्रदेश के लिए बल्कि पूरे देश के लिए बुरा है।‘ जहां तक योगी का सवाल है तो उनके खिलाफ एक हत्या का मामला दर्ज था, जिसमें से २०१९ में उन्हें बरी कर दिया गया था।
१,००० लोगों को राहत
जहां तक कर्नाटक का सवाल है तो वहां भी इसी तर्ज पर कई केसों को हटाया गया है। राज्य की भाजपा सरकार ने पिछले चार सालों में यह कारनामा किया है। सरकार के इस कारनामे से एक हजार से अधिक लोग लाभान्वित हुए। सरकार ने ३८५ आपराधिक मामलों में उत्पीड़न रोकने के लिए फरवरी २०२० से फरवरी २०२३ के बीच कुल सात आदेश जारी किए। इनमें से १८२ सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित थे और इन मामलों को हटाने से १,००० से अधिक आरोपियों को लाभ हुआ है। इसकी शुरूआत ११ फरवरी, २०२० को पहले आदेश से हुई, जिसके जरिए किसान विरोध में शामिल लोगों के खिलाफ मामले वापस ले लिए गए थे। हालांकि, अन्य छह आदेशों में से अधिकांश सांप्रदायिक घटनाओं से संबंधित थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि आदेशों के लाभार्थियों में एक भाजपा सांसद और विधायक भी शामिल हैं। फरवरी २०२० और अगस्त २०२० के बीच जारी किए गए कुछ आदेशों में मैसूर के भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा और भाजपा विधायक रेणुकाचार्य एम.पी. के नाम शामिल थे। इनमें सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े १८२ मामलों में से ४५ मामले उत्तर कन्नड़ जिले में कथित हिंसा से संबंधित थे। इस मामले में लगभग ३०० लोगों को नामजद किया गया था। १८२ में चिकमगलूर में गोरक्षा की चार घटनाओं, कोडागु और मैसूरु में टीपू जयंती समारोह से संबंधित हिंसा की घटनाओं, रामनवमी, हनुमान जयंती और गणेश महोत्सव से जुड़े मामलों, अंतर-धार्मिक विवाहों पर विरोध के खिलाफ मुकदमा वापस लेना भी शामिल है।
१० वर्षों से लंबित मामले
गृहमंत्री का कहना है कि न केवल दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले वापस ले लिए गए हैं, बल्कि किसान विरोधी और भाषा विरोध में शामिल लोगों के खिलाफ भी मामले वापस लिए गए हैं। हालांकि, मंत्री का कहना है कि ज्यादातर ऐसे मामले हैं, जो अदालतों में १० साल या उससे अधिक समय से लंबित हैं। बहरहाल, कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, राज्य के गृह विभाग द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, जनवरी २०२० और २०२३ के बीच अभद्र भाषा के कम से कम १०५ मामले दर्ज किए गए। अब देखना है कि सरकार के ऐसे कदम का आनेवाले दिनों में क्या प्रभाव पड़ता है!