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ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यासजी तहखाने में पूजा-पाठ करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई…मौके पर यथास्थिति बनाए रखने का दिया गया आदेश

उमेश गुप्ता / वाराणसी

वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यासजी तहखाने में पूजा-पाठ करने के मामले में सोमवार को 5 सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मौके पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। इस मामले मे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ज्ञानवापी तहखाने का प्रवेश दक्षिण से और मस्जिद का प्रवेश उत्तर से है। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित नहीं करते हैं। फिलहाल, पूजा और नमाज दोनों अपनी-अपनी जगहों पर जारी रहे। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है।
मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें हाई कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा करने की इजाजत दी गई थी।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में सुनवाई
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन से जुड़ी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की। गौरतलब है कि इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 26 फरवरी को ज्ञानवापी परिसर के दक्षिणी तहखाने में पूजा-पाठ की अनुमति देने से संबंधित जिला अदालत के आदेश के खिलाफ इंतजामिया कमेटी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था। ज्ञानवापी परिसर में दोनों पक्षों के धार्मिक स्थलों के परस्पर विरोधी दावों से जुड़े सिविल कोर्ट में चल रहे एक मामले के बीच हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने यह फैसला दिया था।
व्यास परिवार 1993 तक तहखाने में पूजा करता था
इस मामले में हिंदू पक्ष ने कहा है कि 1993 तक सोमनाथ व्यास का परिवार मस्जिद के तहखाने में पूजा-पाठ करता था। उस समय मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने कथित तौर पर इस पर रोक लगा दी थी। मुस्लिम पक्ष ने इस दावे का विरोध करते हुए कहा कि मस्जिद की इमारत पर हमेशा से मुसलमानों का कब्जा रहा। ज्ञानवापी परिसर पर मुख्य विवाद में हिंदू पक्ष का यह दावा शामिल है कि उस जमीन पर एक प्राचीन मंदिर था। 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब के शासन के दौरान उसके एक हिस्से को नष्ट कर दिया गया था, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मस्जिद औरंगजेब के शासनकाल से पहले की है और इसमें कई बदलाव हुआ है। बता दें कि वाराणसी की जिला अदालत ने 31 जनवरी के आदेश में पुजारियों को ज्ञानवापी के दक्षिणी तहखाने में स्थित मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति दी थी। इसके बाद एक फरवरी की आधी रात को तहखाने में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया हुआ था। इसके बाद दक्षिणी तहखाना भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। जिला न्यायाधीश ने स्थानीय प्रशासन को ज्ञानवापी परिसर के अंदर सीलबंद तहखानों में से एक व्यास जी के तहखाना में पूजा के लिए सात दिन के अंदर उचित व्यवस्था का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि राज्य ने रात के अंधेरे में आदेश लागू किया गया और पूजा शुरू हो गई। न्यायालय ने इसे लागू करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। मैंने रात में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से संपर्क करने की कोशिश की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि तो तब से पूजा हो रही है? अहमदी ने कहा कि 30 साल की यथास्थिति को अनिवार्य आदेश द्वारा बहाल कर दिया गया है। मैं स्थगन की मांग कर रहा हूं, क्योंकि ट्रायल कोर्ट के आदेश को जल्दबाजी में लागू किया गया है। अब यह मेरे खिलाफ है, क्योंकि बाद में कहा जाएगा कि अगर यह चल रहा है तो अभी क्यों रोका जाय। यह सब मस्जिद परिसर के भीतर है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तहखाने का प्रवेश द्वार दक्षिण से है और मस्जिद का प्रवेश द्वार उत्तर से है। क्या हम यह कहने में सही हैं कि दक्षिण में की जाने वाली प्रार्थनाएं उत्तर में की जाने वाली प्रार्थनाओं को प्रभावित नहीं करती हैं। यदि यह सही है तो हम कह सकते हैं कि यथास्थिति में आगे कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। हम कहते हैं कि नमाज जारी रहने दी जाए और दक्षिणी तहखाने में पूजा जारी रह सकती है।

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