कुकर्म करने वाले नर्क में जाएंगे
ऐसा माना जाता है काल्पनिक सोच भी हो सकती है
‘स्वर्ग नर्क’ देखा और भोगा किसने है जो कि वर्णन कर सके।
इसके लिए मर भी गए तब भी खुलासा कौन करेगा?
क्योंकि ‘निर्जीव मुर्दे’ बतियाते नहीं।
और आत्मा लौटकर हमारे पास उसी रुप में आती नहीं।
स्वर्ग नर्क मनुष्य की एक संभावना हो सकती है
कि ‘स्वर्ग’ आकाश की दुनिया के बीचोंबीच कहीं निर्मित है
और उसमें ‘देवी देवताओं और फरिश्तों का वास है।’
दूसरी तरफ हमारी समझ जब भी नर्क का जिक्र करती है
हम धरती के नीचे का संकेत देते हैं’
कि नर्क वहां है’और उसमे दैत, राक्षस,
बुरे कर्म करने वाले सज़ा भुगत रहे होते हैं।’
जबकि स्वर्ग नर्क हमारे जन्म के साथ साथ इसी धरती पर है
इसी समाज में है हमारे परिवार में है।
जिन जीवों के चेहरों पर खुशी बिखरी हुई मिले
जिस घर में बुजुर्ग मुस्कुराते मिलें समझो कि वो घर
समाज स्वर्ग ही है। नर्क ठीक इसके विपरीत ही समझें।
अंतिम तथ्य मैं समझता हूं अच्छा ही है
कि हमारे दिमाग में ‘स्वर्ग का आकांक्षा
/उम्मीद और नर्क का भय/डर है।’
यही हमारी वो सोच है जो हमें काफी हद तक
‘संयम’ बरतने को बाध्य करती है।
मान लो यदि नर्क का भय नहीं होता
तो ‘दुनिया का स्वरूप इससे भी बद्तर होता।’
वर्ना ‘मरने के बाद सब मिट्टी है
सब खाक है…राख है किसका जीव,
किसकी पार्थिव देह और किसकी आत्मा
कहा छूमंतर हो गये ये सब, कौन जाने
‘किस को खबर है इस रहस्य की।’
प्रसंग, कथा-कहानियों पर कितना
विश्वास किया जा सकता है!
इंसान का रूप धारण किया है
तो इंसान के साथ इंसानियत से पेश आओ।
छोटे बड़े की भावना की कद्र करो।
निश्छल हृदय से भलाई का कार्य में अग्रसर रहो
मन में सेवा भाव तो हो, पर घमंड नहीं
कुछ पाने की अपेक्षा से
कार्य करने को ‘स्वार्थ’कहते हैं।
आप निष्पक्ष और निस्वार्थ रूप से
भलिई के कार्यों में जुटे रहो
फिर देखना जो ‘संतुष्टि’जो ‘सुकून’
आपको मिलेगा वो कुछ और नहीं
यही तो धरती पर स्वर्ग है यारा।
बाकी सब इसके विपरीत *कलह-क्लेश…
क्रोध- आक्रोष… घृणा- नफ़रत, आपको
इसी धरा पर नर्क के दर्शन करवा देंगे।’
हमारा किया, हमें जीते जी यहीं पर भुगतना होता है
इसी यथार्थ के स्वर्ग-नर्क में
नकि काल्पनिक सोच के आधार पर मरनुपरांत।
ये भी मेरे “व्यक्तिगत विचार” हैं सब सहमत हों,
कोई जरूरी नहीं है।
– त्रिलोचन सिंह अरोरा