• महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय का महान्याय
• १६ विधायकों की अपात्रता का निर्णय विधानसभा अध्यक्ष के पास
विधायकों का
• समूह शिवसेना पार्टी पर दावा नहीं कर सकता
सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में सत्ता बदलाव के समय तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा दिए गए सभी निर्णय को गैरकानूनी बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने मिंधे सरकार के सिर पर हथौड़ा मारा है। शिवसेना विधानमंडल पक्ष के गटनेता के तौर पर एकनाथ शिंदे, उसी प्रकार पक्ष के मुख्य प्रतोद के तौर पर भरत गोगावले की नियुक्ति को विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा दी गई मान्यता को अवैध ठहराते हुए सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने कहा कि अपात्रता पर कार्रवाई से बचाने के लिए कोई विधायक पक्ष पर दावा नहीं कर सकता। ऐसे अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदुओ को संवैधानिक पीठ ने रेखांकित किया है। संवैधानिक पीठ ने सत्ता संघर्ष के लिए राज्यपाल की गड़बड़ी को गैरकानूनी ठहराते हुए विधायकों की पात्रता पर निर्णय का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा है। इसलिए सभी गैरकानूनी है तब भी यह धूर्त सरकार बची रहेगी।
शिवसेना से गद्दारी कर एकनाथ शिंदे ने भाजपा के सहयोग से महाविकास आघाडी सरकार को गिराया और राज्य में गैरकानूनी तरीके से सरकार की स्थापना की। इसी के साथ महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष की शुरुआत हुई। शिवसेना के साथ गद्दारी करने वाले विधायकों पर अपात्रता को लेकर की गई कार्रवाई की तलवार अब भी लटकती हुई है।
राज्यपाल महोदय ने हाथ पकड़कर असंवैधानिक पद्धति से महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिंदे की सरकार बनाई, जिसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। शिवसेना से गद्दारी करके पक्ष से बाहर निकले विधायकों की अपात्रता, विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव, शिंदे-फडणवीस सरकार के बहुमत परीक्षण और सत्ता संघर्ष के समय निर्माण में हुए गैर कानूनी दांव-पेच के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई।
राज्यपाल महोदय ने हाथ पकड़कर असंवैधानिक पद्धति से महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिंदे की सरकार बनाई, जिसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। शिवसेना से गद्दारी करके पक्ष से बाहर निकले विधायकों की अपात्रता, विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव, शिंदे-फडणवीस सरकार के बहुमत परीक्षण और सत्ता संघर्ष के समय निर्माण में हुए गैर कानूनी दांव-पेच के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई।
• विधानसभा अध्यक्ष द्वारा एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक पार्टी के गुट नेता के रूप में दी मान्यता अवैध है
• चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना पार्टी की मान्यता निर्धारित करते समय केवल जनप्रतिनिधियों की संख्या को ही आधार मानना उचित नहीं था। इस पर विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई में विचार किया जाएगा।
• चुनाव आयोग के १७ फरवरी, २०२३ का निर्णय पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं है। वह उस दिन के बाद लागू हो जाएगा।
• जिन विधायकों के खिलाफ चुनाव आयोग द्वारा अयोग्यता की कार्रवाई की जा रही है, वे संविधान के दसवें अनुच्छेद की तीसरी अनुसूची के संरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते हैं। इसलिए शिंदे गुट के विधायकों के खिलाफ कार्रवाई अटल है…
• इन सभी व्याख्याओं से उद्धव ठाकरे ही शिवसेना पार्टी के एकमात्र सर्वेसर्वा होने का सुप्रीम कोर्ट के फैसले से स्पष्ट हो जाता है…
• चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई या पैâसला आने तक पार्टी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष नाम और चुनाव चिह्न ‘मशाल’ का इस्तेमाल कर सकते हैं…
निर्णय के मुद्दे
१- शिवसेना से गद्दारी करनेवाले एकनाथ शिंदे सहित १६ विधायकों पर अपात्रता का निर्णय न्यायपीठ ने विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा है। यह निर्णय जल्द से जल्द हो, ऐसा स्पष्ट निर्देश न्यायपीठ ने दिया है। इसलिए उन सभी विधायकों पर अपात्रता की लटकती तलवार कायम है।
२- मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना पक्ष प्रतोद के तौर पर भरत गोगावले को मान्यता दी थी। न्यायपीठ ने इसे गैरकानूनी ठहराया है। संसदीय पक्ष के नेता को नहीं, बल्कि राजनीतिक पक्ष के नेता को व्हिप जारी करने का अधिकार है। ऐसा न्यायपीठ ने रेखांकित किया है। इसलिए सुनील प्रभु ही शिवसेना के मुख्य प्रतोद रहेंगे, ऐसा स्पष्ट हुआ है।
३- तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो उनकी सरकार फिर से बनाने का निर्देश दिया जा सकता था, ऐसी महत्वपूर्ण बात खंडपीठ ने कही।
तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को संवैधानिक खंडपीठ ने कड़े शब्दों में फटकार लगाई है। राज्यपाल के पास निर्वाचित महाविकास आघाड़ी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का निर्देश देने का कोई ठोस कारण नहीं था, ऐसा रेखांकित करते हुए न्यायपीठ ने राज्यपाल को राजनीतिक पक्ष के विवाद में की गई गड़बड़ी के लिए खरी-खरी सुनाई है।
विधानसभा अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव आने पर वे विधायकों की अपात्रता पर निर्णय ले सकते हैं या नहीं। यह अब ७ न्यायाधीशों की खंडपीठ निश्चित करेगी। नबाम रेबिया मामले में अधिक स्पष्टता आना आवश्यक है। ऐसा उल्लेख करते हुए न्यायपीठ ने पूरे मामले को बड़ी खंडपीठ के पास सौंपने का निर्णय लिया गया था।
शिवसेना से अलग हुए विधायकों के बारे में अब विधानसभा अध्यक्ष को निष्पक्ष होकर पैâसला लेना चाहिए। क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष का पद किसी पार्टी से संबंधित नहीं स्वतंत्र होता है। दरअसल, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
– बालासाहेब थोरात
• राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष, विधानमंडल गट नेता और मुख्य प्रतोद के खिलाफ संवैधानिक पीठ ने निष्कर्ष दर्ज किया है। ऐसे में महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार को एक मिनट भी रहने का कोई नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं है।
– अभिषेक मनु सिंघवी
• मुख्य न्यायाधीश ने जो कहा है, उसे सुनने के बाद हमारे लिए महाराष्ट्र की जनता को यह बताना आसान हो गया है कि भाजपा किस तरह से अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करती है। विधानसभा एक संस्था है। इसकी पवित्रता को बनाए रखना चाहिए।
– शरद पवार