सामना संवाददता / मुंबई
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कल मुंबई में झोपड़पट्टी पुनर्विकास योजना के भवनों के निर्माण में अपनाए गए ‘खराब तरीकों’ पर चिंता व्यक्त की है। हाईकोर्ट ने इन निर्माण को ‘वर्टिकल स्लम’ करार दिया है। पीठ ने इसे संविधान के अनुच्छेद २१ (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) के खिलाफ एक गंभीर मुद्दा बताया है।
जस्टिस जीएस कुलकर्णी और सोमशेखर सुंदरेसन की खंडपीठ ने कहा कि ऐसी इमारतों का निर्माण घने तरीके से किया गया है। इमारतों के बीच कोई जगह नहीं है, जिससे वेंटिलेशन और सूरज की रोशनी बाधित होती है।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हम इन ‘वर्टिकल स्लम’ को पसंद नहीं करेंगे। निर्मित इमारतें बहुत भीड़भाड़ वाली हैं। न रोशनी है, न जगह है, न सूरज की रोशनी है और न ही हवा आती है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होंगी। वे (झुग्गीवासी) अतिक्रमण वाली जमीन पर ही बेहतर स्थिति में हैं।
कोर्ट ने कहा कि हम वेट एंड वॉच की स्थिति नहीं अपना सकते हैं। अदालत ने इस तरह के कामकाज को लेकर चिंता जताई थी। हाई कोर्ट ने विदेशों में सार्वजनिक आवास परियोजनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि अधिनियम के प्रावधानों का मजबूती से क्रियान्वयन होना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि शहर में प्रवासी श्रमिकों की आय बढ़ती रहेगी और अधिकारी इंतजार की नीति नहीं अपना सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि शहर में प्रवासी श्रमिक आते हैं। काम मौजूद है, वेतन उपलब्ध है, लेकिन उनके रहने के लिए कोई जगह नहीं है, तो फिर वे झुग्गियों में रहते हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि हमें यह समझने की जरूरत है कि यह रुकेगा नहीं। यह आगे बढ़ता रहेगा। हम अभी केवल प्रतीक्षा और निगरानी नहीं कर सकते। पीठ ने सभी संबंधित पक्षों को इस मुद्दे पर अपने सुझाव प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं, जिस पर झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) विचार करेगा। कोट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए १५ अक्टूबर की तारीख तय की है।