रमेश सर्राफ धमोरा
किसी भी देश की भाषा और संस्कृति उस देश में लोगों को लोगों से जोड़े रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिंदी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में अनेक क्षेत्रों में प्रयास हुए हैं। हिंदी भारत की संपर्क भाषा भी है। अत: हम कह सकते हैं कि हिंदी एक समृद्ध भाषा हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में हिंदी भाषा का बहुत बड़ा योगदान है।
एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है। बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची परिचायक भी है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवत: सबसे वैज्ञानिक भाषा है। जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी का जनक कहा जाता है। जिन्होंने हिंदी, पंजाबी, बंगाली और मारवाड़ी सहित कई भाषाओं में अपना योगदान दिया था।
भारत की स्वतंत्रता के बाद १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी-दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है जो हिंदी भाषा के महत्व को दर्शाता है। पिछले ७१ सालों से हम प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाते आ रहे हैं। इस वर्ष भी मनाएंगें।
यदि हम हिंदी भाषा के विकास की बात करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले सौ सालों में हिंदी का बहुत विकास हुआ है और दिन-प्रतिदिन इसमें और तेजी आ रही है। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है जिसे देवभाषा भी कहा जाता है। माना जाता है कि हिंदी का जन्म भी संस्कृत भाषा से हुआ है। भारत में धर्म, परंपराओं और भाषा में विविधता के बावजूद यहां के लोग एकता में विश्वास रखते हैं। भारत में विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं। लेकिन सबसे ज्यादा हिंदी भाषा बोली, लिखी व पढ़ी जाती है। इसीलिए हिंदी भारत की सबसे प्रमुख भाषा है।
अंग्रेजी व चीनी भाषा मंदारिन के बाद हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। नेपाल, पाकिस्तान की तो अधिकांश आबादी को हिंदी बोलना, लिखना, पढना आता है। बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी लाखों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देश की सरकारें तो हिंदी भाषियों द्वारा ही चलायी जा रही हैं। पूरी दुनिया में हिंदी भाषियों की संख्या करीबन एक सौ करोड़ से अधिक है।
हिंदी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, और दिल्ली जैसे राज्यों की राजभाषा भी है। राजभाषा बनने के बाद हिंदी ने विभिन्न राज्यों के कामकाज में लोगों से संपर्क स्थापित करनें का अभिनव कार्य किया है। लेकिन विश्व भाषा बनने के लिए हिंदी को अब भी संयुक्त राष्ट्र के कुल सदस्यों के दो तिहाई देशों के समर्थन की आवश्यकता है। भारत सरकार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रही है। हम संभावनाएं जता सकते हैं कि शीघ्र ही हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा में शामिल कर लिया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी विदेश यात्रा के दौरान अधिकतर अपना संबोधन हिंदी भाषा में ही देते हैं। जिससे हिंदी भाषा का महत्व विदेशी धरती पर भी बढ़ने लगा है।
हिंदी के ज्यादातर शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। यह मुख्य रूप से आर्यों और पारसियों की देन है। इस कारण हिंदी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। जहां अंग्रेजी में मात्र १० हजार मूल शब्द हैं। वहीं हिंदी के मूल शब्दों की संख्या २ लाख ५० हजार से भी अधिक है। हिंदी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ हमारी राजभाषा भी है। भारत की मातृ भाषा हिंदी को सम्मान देने के लिये प्रति वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हिंदी ने भाषा, व्याकरण, साहित्य, कला, संगीत के सभी माध्यमों में अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं वर्चस्व कायम किया है। हिंदी की यह स्थिति हिंदी भाषियों और हिंदी समाज की देन है। लेकिन हिंदी भाषा समाज का एक तबका हिंदी की दुर्गति के लिए भी जिम्मेदार है। अंग्रेजी बोलने वाला ज्यादा ज्ञानी और बुद्धिजीवी होता है। यह धारणा हिंदी भाषियों में हीन भावना लाती है। जिंदगी में सफलता पाने के लिये हर कोई अंग्रेजी भाषा को बोलना और सीखना चाहता है। हिंदी भाषी लोगों को इस हीन भावना से उबरना होगा, क्योंकि मौलिक विचार मातृभाषा में ही आते हैं। शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा होनी चाहिए। शिक्षा विचार करना सिखाती है और मौलिक विचार उसी भाषा में हो सकता है जिस भाषा में आदमी जीता है। हमें अहसास होना चाहिए कि हिंदी दुनिया की किसी भी भाषा से कमजोर नहीं है।
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अन्तरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। विश्व के लगभग १५० विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध के स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों से हिंदी में दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर सुदृढ और समृद्ध है। इसके विकास की गति बहुत तेज है।
आदिकाल से अब तक हिंदी के आचार्यों, संतों, कवियों, विद्वानों, लेखकों एवं हिंदी-प्रेमियों ने अपने ग्रंथों, रचनाओं से हिंदी को समृद्ध किया है। परंतु हमारा भी कर्तव्य है कि हम अपने विचारों, भावों एवं मतों को विविध विधाओं के माध्यम से हिंदी में अभिव्यक्त करें एवं इसकी समृद्धि में अपना योगदान दें। कोई भी भाषा तब और भी समृद्ध मानी जाती है जब उसका साहित्य भी समृद्ध हो।
हिंदी भाषा एक दूसरे के साथ बातचीत करने के लिए बहुत आसान और सरल माध्यम प्रदान करती है। यह प्रेम, मिलन और सौहार्द की भाषा है। हिंदी विविध भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन यह वैâसी विडंबना है कि जिस भाषा को कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे भारत में समझा जाता हो। उस भाषा के प्रति आज भी इतनी उपेक्षा व अवज्ञा क्यों? प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिंदी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। इसलिए इसे सामान्य जनता की भाषा अर्थात जनभाषा कहा गया है।
देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के एक साथ विकास के कारण हिंदी ने कहीं न कहीं अपनी महत्ता खो दी है। आज हिंदी भाषा में अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन तेजी से बढ़ने लगा है। बहुत से बड़े समाचार पत्रों में भी अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का उपयोग किया जाने लगा है। जो हिंदी भाषा के लिये शुभ संकेत नहीं है। रही सही कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी है। जहां सॉफ्टवेयर की मदद से रूपांतर कर अंग्रेजी से हिंदी भाषा बनायी जाती है। जिसमें न मात्रा का ख्याल रहता है और न ही शुद्ध वर्तनी का। वर्तमान समय में हिंदी भाषा के समाचार पत्र व पत्रिकायें धड़ाधड़ बंद हो रही हैं।
हिंदी दिवस के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम पूरे मनोयोग से हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अपना निस्वार्थ सहयोग प्रदान कर हिंदी भाषा के बल पर भारत को फिर से विश्व गुरु बनवाने का सकारात्मक प्रयास करेंगें। अब तो कंप्यूटर पर भी हिंदी भाषा में सब काम होने लगे हैं। कंप्यूटर पर हिंदी भाषा के अनेको सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जिनकी सहायता से हम आसानी से कार्य कर सकते हैं।
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)