अवध की होली 

जब होली का जिक्र आता है तो बहुत से लोग समझते हैं कि यह सिर्फ हिंदुओं का त्यौहार है। लेकिन वाजिद अली शाह के यहां अबीर-गुलाल और गुलाब की पंखुड़ियों से होली खेलने की जानकारी मिलती है। बादशाह अकबर और जोधाबाई के भी संग होली खेलने के किस्से मशहूर हैं। जहांगीर और नूरजहां भी होली गुलाल से खेलते थे। दिल्ली के आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के राजमहल में भी होली खेलने और उनके वजीर द्वारा गुलाल लगा कर होली की रस्म अदा किए जाने की मिसाल है। असीमा भट्ट बता रही हैं और भी जानकारी…

जो लोग यह मानते हैं कि होली महज हिंदुओं का ही त्यौहार है, वे बाबा बुल्लेशाह की यह नज्म सुनकर अक्सर हैरान रह जाते हैं, ‘होली खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह नाम नबी की रत्न चढ़ी बूंद पड़ी इल्लल्लाह…’। सूफी कवियों और मुस्लिम साहित्यकारों ने होली की अहमियत पर खूब सुंदर गीत लिखे हैं। गजब बात यह है कि होली से जुड़े कई मशहूर गीत जो सुनने में आते हैं वे हिंदी-उर्दू-फारसी के कवि-शायर अमीर खुसरो ने लिखे हैं- ‘मोहे अपने ही रंग में रंग ले निजाम।’ यह बहुत ही लोकप्रिय है।

लोग कहते हैं कि खुसरो ने अपने पीर ओ मुर्शिद निजामुद्दीन औलिया के लिए सारे गीत लिखे। खास कर जब वे पहली बार हजरत निजामुद्दीन से मिले तो वह होली का ही दिन था। शहर में चारों और रंग-अबीर उड़ रहे थे। खुसरो उनसे मिले तो उनके मन से यह गीत फूटा– आज रंग है री मां, रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री। यानी निजाम के घर में भी होली मनाई जाती रही होगी और और वे लोग होली खेल रहे होंगे। उन्होंने लिखा है कि ‘मैं देखत की देखत रह गई। मोहे बैरागन कर दीनी रे मोसे नैना मिला के।’ यहां वे इश्क हकीकी की बात करते हैं।

खुसरो ने ऐसे अनेक गीत लिखे जिनमें होली का या रंगों का बार-बार जिक्र आता है। जैसे- मोहे अपने ही रंग में रंग ले, मोहे रंग बसंती रंग दे। जो तू मांगे रंग की रंगाई मोरा यौवन गिरवी रख। मोहे ऐसो रंग रंग दो रंग न छूते धोबिया धोबे चाहे सारी उमरिया।……’ चाहे खुसरो ने ये सब गीत अपने मुर्शिद निजामुद्दीन औलिया के लिए लिखे हों या उनके रंग में अपने रूह को रंगने की बात की हो, लेकिन उनमें यह साफ दिखाई देता है कि होली के त्यौहार से जुड़े रंगों की क्या अहमियत है, उसका उत्साह क्या होता है।

अमीर खुसरो ही क्यों, उर्दू के मशहूर शायर नजीर अकबराबादी कहते हैं, ‘जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की? और डफ के शोर खदकते हों तब देख बहारें होली की? परियों के रंग दमकते हों, फिर देख बहारें होली की? गुलजार खिले हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो, कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रन अजब गुलकारी हो, उस रंगभरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो? तब देख बहारें होली की।’

गंगा-जमुनी तहजीब है होली

बहरहाल यह माना जाना चाहिए कि होली गंगा-जमुनी तहजीब की साझा विरासत है। यह अपनी कौमी एकता की रंगभरी मिसाल है। हजरत शाह निजाम की मशहूर नज्म है- ‘होरी होए रही है अहमद जियो के द्वार हजरत अली का रंग बना है हसन हुसैन खिलार? ऐसी होली की धूम मची है चहूं और पड़ी है पुकार? ऐसो अनोखो चतुर खिलाड रंग दीन्हों संसार? नियाज पियारा भर भर छिड़के एक ही रंग सहस पिचकारी

प्यार-मोहब्बत और भाईचारे का प्रतीक है होली

इन सारे गीतों के उदाहरण देखने, समझने के बाद कहां किसी नफरत या दूरी की गुंजाइश बाकी बचती है। इसलिए तो कहते हैं कि लोग होली के दिन बाकी दिनों के सभी गिले-शिकवे भूलकर दुश्मन को भी गले लगा लेते हैं। हमेशा की तरह लोग इस बार भी होली प्यार-मोहब्बत और भाईचारे के साथ मनाएं और अपने मन से हर बैर, हर नफरत को मिटाकर सब एक-दूसरे को अपनी मोहब्बत के रंग में रंग लें जैसा कि अमीर खुसरो कहते हैं- ‘दैय्या री मोहे भिजोया री शाह निजाम के रंग में? कपड़े रंग के कुछ न होत है या रंग में तन को डुबोया री…

असीमा भट्ट

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