जीवन का कारवां पूर्ण हुआ,
जीवन की शाम भी ढल चुकी,
सुख दुख जीवन में कुछ शेष नहीं,
खुशी खुशी मुझे विदा करो।
चिलचिलाती धूप भी अब,
ठंडी छांव में तब्दील हो चुकी,
छांव में सोने की लालसा नहीं है,
कई पूनम की रातें देख चुका हूं,
कल सुबह भी होगी,
नई आशाएं की किरणें होंगी,
जीवन का हर लम्हा जी लिया हूं,
खुशी खुशी हंसकर मुझे विदा करो,
जीवन का सफर पूर्ण हो चला,
अब सांसें भी बोझिल हो चुकी हैं,
ये दुनिया मुझे एक लोरी सुना जा,
मेरी शोहरत को एक राह दिखा जा,
यह धरा भी और मंदिर भी मेरा,
वतन भी मेरा जिसकी बंदगी में करता
जितना हो सका अच्छा किया,
जिंदगी को आहूत भी कर दिया,
अरमां भी फूलों से अब सज गए हैं,
अब खुशी से फूलों से मुझे सजा दो,
सुख दुख जीवन में शेष नहीं,
खुशी खुशी मुझे विदा करो।
काश पुनर्जन्म हो फिर लौटूंगा।
-गोविंद,हरदा