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ईमानदार, सुसंस्कृत नेता का ईमानदार साक्षात्कार, चापलूस किस काम के? यह ट्रिपल इंजिन या डालडा का डिब्बा?

‘शिवसेना ने आपकी पीठ में खंजर घोंपा, यह कहते हैं फिर, राष्ट्रवादी ने क्या घोंपा था, जिसकी वजह से तुमने राष्ट्रवादी भी फोड़ डाली? घोटालेबाजों को सरकार में क्यों लेना पड़ा?’

उद्धवजी, आप देख रहे हैं कि आपके पीछे ‘आवाज कुणाचा’ का स्लोगन लिखा है और उस पर ‘मशाल’ जल रही है। आज महाराष्ट्र में आवाज किसकी है?
– कुछ अलग कहने की आवश्यकता नहीं। हमने प्रस्तावना में घटनाओं का जिक्र किया है, यदि हम घट रही घटनाओं की बात करें तो इन घटनाओं को रचनेवालों का घड़ा अब फूटने वाला है।
मतलब?
-एक नए महाराष्ट्र का निर्माण हो रहा है और यही प्रकृति का नियम है। जब इन घटनाओं की शुरुआत हुई, उसी समय मैंने कहा था कि सड़े हुए पत्ते गिरने ही चाहिए। उन पत्तियों के गिरने के बाद नए अंकुर निकलते हैं। कोंपल फूटती हैं और पेड़ों पर ताजा, कोमल पत्तियों और फूलों के साथ फिर से बहार आती है। आज यही स्थिति शिवसेना की है। सड़े-गले पत्ते अब झड़ चुके हैं। नए अंकुर फूटे हैं।
लेकिन इन सड़े हुए पत्तों को कल तक आपने ही अंकुरित किया…
– हां, सही है।
आपने ही उन्हें पोषित किया। आप जिनको सड़े हुए पत्ते कह रहे हैं, ये पौधे आपने ही लगाए। उन्हें खाद-पानी आपने दिया…
– हां, आप जो कह रहे हैं, वह सत्य है। कई बार हमारे साथ धोखा हो जाता है। जिन्हें हम अपना समझते हैं, वे परजीवी निकलते हैं। फिर भी वे हमारे साथ हैं, ऐसा हमें लगता रहता है लेकिन असल में वे उसकी शाखाओं के जरिए मूल वृक्ष का रस सोखते रहते हैं। पेड़ को लगता है कि वे हमारे साथ हैं।
वृक्ष पर अब भी बहार है क्या?
– बिल्कुल!
शिवसेना के विचारों की मशाल ५० वर्षों से ज्यादा कालखंड से महाराष्ट्र को प्रकाशमय कर रही है। इसके पीछे की सभी घटनाओं के बीच लोगों के सामने यही सवाल है कि, धनुष-बाण या मशाल?
-धनुष-बाण और मशाल यह मेरे लिए बाद में आई हुई चीजें हैं। सबसे पहले शिवसेना आई। यह नाम बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख ने भी ये कहा है कि शिवसेना नाम प्रबोधनकार, मतलब मेरे दादा जी का दिया हुआ है। मैं बार-बार यह कहता आया हूं कि चुनाव आयोग का काम चुनाव चिह्न देना है। पार्टी का नाम देना या पार्टी का नाम बदलना नहीं। इसलिए अब हम चुनाव आयोग द्वारा दिए गए अजीब पैâसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गए हैं और मुझे यकीन है कि हमने सुप्रीम कोर्ट में अपना मामला पेश करते समय वे सभी आवश्यक पूर्तता की हैं, जो पूरी होनी चाहिए थीं। ऐसे में मुझे यकीन है कि ‘शिवसेना’ यह नाम हमें फिर से मिल ही जाएगा।

‘कई वर्षों बाद यह पता चला है कि इस देश में ‘एनडीए’ नामक कोई अमीबा जीवित है और हम जो देशभक्त राजनीतिज्ञ हैं, हमने ‘इंडिया’ नामक एक गठबंधन बनाया है। उसी दिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने ३६ दलों को दावत दी। सच कहें तो उन्हें उन ३६ दलों की कोई आवश्यकता ही नहीं है। उनके ‘एनडीए’ में अब ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई ये तीन दल ही मजबूत हैं।’

 संजय राऊत 
मुंबई। शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने ‘आवाज कुणाचा’
‘पॉडकास्ट’ के माध्यम से ‘सामना’ को प्रदीर्घ साक्षात्कार दिया। सालभर की सभी घटनाओं और राजनीतिक दुर्घटनाओं पर ‘ठाकरी शैली’ में टिप्पणी की। उद्धव ठाकरे ने दृढ़ता से कहा, ‘वर्ष २०२४ हमारे देश के जीवन को नया मोड़ देगा।’ उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य भी अंतत: अस्त हुआ ही था। हर किसी का अंत होता ही है, यह प्रकृति का नियम है।’ उद्धव ठाकरे ने मणिपुर की हिंसा से लेकर समान नागरिक कानून तक हर मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किए। उद्धव ठाकरे ने नए ‘एनडीए’ को लेकर कड़ा बयान दिया। ‘ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स यह तीन दल भी अब ‘एनडीए’ में शामिल हो गए हैं। यही उनकी शक्ति है!’
उद्धव ठाकरे ने किसी भी सवाल का जवाब टाला नहीं। इर्शालवाड़ी में दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्र का दौरा कर पीड़ित परिवारों को सांत्वना देने के बाद वे सीधे साक्षात्कार के लिए पहुंचे। उद्धव ठाकरे के पीछे ‘आवाज कुणाचा’ यह गर्जना और मशाल की तस्वीर स्पष्ट रूप से नजर आ रही थी। उसी से चर्चा की शुरुआत हुई।

कैसा अमृत महोत्सव? इंसानों के मौत के मुंह में समाते वक्त अमृत कैसा?

आप रायगढ़ जिले के दुर्घटनाग्रस्त इर्शालवाड़ी में जाकर आए। वहां एक बड़ा हादसा हुआ है, पूरी सरकार वहां पहुंच गई है। आप भी गए। पूर्व मुख्यमंत्री के नाते आप वहां दौड़कर गए। इस राज्य में अथवा देश में मौत इतनी सस्ती क्यों हो गई है? आपने कहा कि यह दुर्घटना शासकों और राजनेताओं के लिए शर्म की बात है। ऐसा आपको क्यों लगता है?
सही है। मैं अपनी उस राय पर दृढ़ हूं। मैंने यह राय सिर्फ इसलिए रखी, क्योंकि मैं भी मुख्यमंत्री था। मेरे मुख्यमंत्री पद पर रहने के दौरान प्राकृतिक आपदा एक-दो बार नहीं, बल्कि तीन-चार बार आई थी। दो तो चक्रवाती तूफान आए। आपको याद होगा। तलिये गांव की दुर्घटना एक ऐसी ही त्रासदी थी। चिपलूण के बाजार में पानी घुस गया था। कोल्हापुर में भी आपदा आई थी। सातारा में भी भूस्खलन हुआ था। इन सभी जगहों पर मैं स्वयं गया था। मैंने शर्मनाक इसलिए कहा, क्योंकि मैं जब इर्शालवाड़ी गया तो भीड़ में से एक युवक मुझसे चिल्लाकर सवाल पूछ रहा था, ‘हमारी आजादी के पचहत्तर वर्ष हो गए हैं फिर भी हम ऐसी ही जिंदगी जीएं क्या?’ और यह सवाल झकझोर देनेवाला है। हम पचहत्तर वर्षों का जश्न किस बात का मना रहे हैं?
आजादी का अमृत महोत्सव शुरू है…
– कैसा अमृत महोत्सव? यहां इंसानों के मौत के मुंह में जाने के दौरान अमृत कैसा?
मृत काल ऐसा भी कहते हैं…
– अमृत छोड़ो, लेकिन इन गरीबों की जान हम नहीं बचा सकते। आप ही देखो ना। इसलिए मैंने यह दुर्घटना शर्मनाक है, ऐसा कहा था। यह ऐसा क्षण होता है कि असल में किससे चूक हुई, क्या चूक हुई, ये देखते रहने की अपेक्षा मेरी राय है कि हर बार दुर्घटना घटित होने के बाद हम हड़बड़ाकर जागने जैसा ‘दिखाते हैं’। इस शब्द का प्रयोग मैंने जानबूझकर इर्शालवाड़ी में बोलते हुए किया और अब भी इस्तेमाल करता हूं। थोड़े दिनों के बाद हम ऐसे हादसों को भूल जाते हैं और फिर से हमारा काम शुरू हो जाता है। दो दिन पहले इतना बड़ा हादसा होने के बाद मुख्यमंत्री के दिल्ली दरबार में जाने की जानकारी मिली। ये वैâसी राजनीति है? आज भी वहां तलाशी अभियान जारी है। कई लोगों के वहां मलबे के नीचे दबे होने की आशंका है।
सौ के आसपास लोग मलबे में दबे हो सकते हैं, ऐसी आशंका व्यक्त की जी रही है…
– हां। ऐसा प्रारंभिक अनुमान है, लेकिन इतनी बड़ी दुर्घटना घटित होने के बाद भी मुख्यमंत्री सलामी ठोकने के लिए दिल्ली दरबार में गए हैं। देखो, तस्वीरें प्रसारित हुई हैं। किसे सलामी ठोक रहे हैं? किसलिए जी-हुजूरी कर रहे हैं? जिनकी जी-हुजूरी करने गए हैं उनकी डबल इंजन की सरकार में देश में क्या चल रहा है? मणिपुर में महिला पर अत्याचार की दूसरी घटना सामने आई है। महिला को निर्वस्त्र करके परेड निकालते हुए अत्याचार किया गया। इस पर शर्म करो। असल में यह वीडियो बाहर नहीं आया होता तो दुनिया को कुछ पता ही नहीं चला होता। यह घटना जहां की थी वहीं तुरंत खबर लेनी चाहिए थी, लेकिन वह नहीं ली गई इसे दुर्भाग्य ही कहना होगा। सामान्यत: मई महीने में यह घटना घटी थी। उसके बाद अब यहां आने के दौरान मैं पढ़ रहा था। ऐसी ही एक और घटना वहां घटी थी। अर्थात ऐसी और भी कई घटनाएं घटी हो सकती हैं। इतना होने के बाद भी हमारे प्रधानमंत्री वहां जाने को तैयार नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा चेतावनी दिए जाने के बाद ३६ सेकंड ही बोले और राजस्थान में प्रचार के लिए निकल गए। आज हमारे मुख्यमंत्री दिल्ली के लिए रवाना हुए। मतलब राज्य में इतनी बड़ी दुर्घटना घटी है, आपदा आई है, भूस्खलन हुआ है फिर भी ये दिल्ली दरबार में सलामी ठोकने जा रहे हैं। ये ऐसे जी-हुजूरी करनेवाले क्या इंसाफ करेंगे?
क्या आपको ऐसा लगता है कि राजनेताओं की संवेदनाएं मर चुकी हैं?
– पहले ऐसा कहा जाता था कि राजनेता की खाल गैंडे की खाल है। अब कदाचित गैंडा अपने शावकों से कह रहा होगा कि तुम्हारी खाल राजनेता की हो गई है! गैंडे की खाल से भी ज्यादा सख्त राजनेता की हो गई है।
आपने मणिपुर का जिक्र किया। इस देश में महिलाएं नग्न घुमाई जाती हैं। उस राज्य के मुख्यमंत्री या देश के प्रधानमंत्री इस पर बात करने को तैयार नहीं हैं।
– ठीक है, मुझे यह बताओ। मैंने ये महसूस किया है। महाराष्ट्र की जनता ने भी किया है। राज्यपाल नामक एक पद होता है और उस पद पर केंद्र के मार्फत एक व्यक्ति बैठाया जाता है। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में। महाराष्ट्र में एक राज्यपाल थे, ये हमने अनुभव किया है। तमिलनाडु में राज्यपाल हैं, वे वहां कुछ न कुछ करते रहते हैं। इसलिए समझ में आता है, लेकिन मणिपुर में कोई राज्यपाल है क्या?
मणिपुर में राज्यपाल हैं और वह महिला हैं।
– हां, वहां की राज्यपाल महिला हैं। देश के राष्ट्रपति कौन हैं?
वह भी महिला ही है।
– फिर मणिपुर की राज्यपाल महिला, देश की राष्ट्रपति महिला ऐसे देश में महिलाओं पर यह आफत क्यों आती है? फिर राष्ट्रपति महोदय से मैं आग्रह करता हूं कि आप महिला हो और एक महिला के तौर पर इस देश में जो कुछ चल रहा है, उस पर क्या भूमिका लेंगी। हम अपने देश को भारत माता कहते हैं। उस माता का अपमान और ऐसा तमाशा बन रहा होगा तो महिला के तौर पर आप क्या कर रही हैं? राष्ट्रपति के तौर पर क्या कर रही हैं? और यही सवाल मणिपुर के राज्यपाल से भी है। वे राज्यपाल के तौर पर ऐसी घटनाओं पर क्या भूमिका अपनाएंगी। यह सवाल पूछना चाहिए कि नहीं पूछना चाहिए?
मणिपुर के राज्यपाल अनुसुइया उइके ने ऐसा कहा कि मैंने अपने संपूर्ण जीवन में इस प्रकार की घटना, हिंसाचार नहीं देखा। ऐसा खुद राज्यपाल कहती हैं।
हां, इसलिए आप सिर्फ देखती रही हैं क्या? पिछले दो-तीन महीने से हिंसा जारी ही है। शिवसेना के वर्धापन दिन के मौके पर अपने विचारों में मैंने यह विषय उठाया था। सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मलिक को प्रमाणपत्र दिया गया। ये मलिक वहीं रहते हैं और उन्होंने अपने ‘ट्वीट’ में लिखा था कि यहां हर रोज ऐसी भयानक घटनाएं हो रही हैं कि कभी भी कुछ भी घट सकता है और कभी भी कुछ भी घटित हो रहा है, लेकिन देख कौन रहा है? जिस महिला पर अत्याचार हुआ वो कारगिल के जवान की पत्नी थी, अब यह बात सामने आई है। जो कि अधिक भयंकर है।
मणिपुर में ईडी, सीबीआई को क्यों नहीं भेज रही ये सरकार? क्योंकि इस देश में ईडी और सीबीआई कुछ भी कर सकती हैं। सरकारों को गिरा सकती हैं और लोगों पर लगाम लगा सकती हैं…
– पिछले सप्ताह कई वर्षों के बाद इस देश में ‘एनडीए’ नाम का कोई अमीबा जीवित है, ये पता चला और हम जो देशभक्त राजनेता हैं उनका ‘इंडिया’ नामक एक गठबंधन बनाया है, उन्हें जवाब देने के लिए। उसी दिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने अचानक अपनी यादों में संजोई गई बातों को बाहर निकाला, भंडार से। और छत्तीस दलों का भोज रखा। सही मतलब उन्हें छत्तीस पार्टियों की उन्हें जरूरत नहीं है। उनके ‘एनडीए’ में अब ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई ये तीन ही पार्टियां मजबूत हैं। बाकी पार्टियां बची कहां हैं? कुछ पार्टियों के पास तो एक भी सांसद नहीं हैं। असली शिवसेना ‘एनडीए’ में नहीं है।’ सारे गद्दार वहां चले गए हैं। ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई ये तीन ही पार्टियां अब बची रह गई हैं।
आपने पहले कहा कि इर्शालवाड़ी दुर्घटना ये लज्जित करनेवाली बात है। भूस्खलन से लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं और मुख्यमंत्री दिल्ली में जी-हुजूरी कर रहे हैं, ऐसा आपने कहा, उसी तरह पिछले महीनेभर में समृद्धि महामार्ग पर इतना बड़ा हादसा हुआ। उस हादसे में मृतकों की चिता…
– हां, यह विषय बहुत गंभीर है। उस चिता के धधकने के दौरान यहां शपथ विधि समारोह हुआ।
हां… उस दुर्घटना में मृतकों की चिता जलते समय तुरंत ही दूसरे दिन एक दल को फोड़ा जाता है। उन चिताओं की आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि मंत्री पद की शपथ ली जाती है, इसे आप क्या कहेंगे?
– मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। इस पर कोई प्रतिक्रिया देने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। मेरी अब अंतिम आशा रह गई है वो देश की जनता से, क्योंकि ये देश उनका है। अनेक क्रांतिकारियों ने खून बहाकर, बलिदान देकर, जिनकी शौर्य की गाथाएं हम गाते हैं उन्होंने बलिदान किसके लिए दिया? आज भी सरहद पर सेना खड़ी है तो देश की रक्षा के लिए। फिर वह देश मतलब कौन है? देश मतलब क्या है? देश मतलब सिर्फ कंकड़-पत्थर नहीं है। यह देश मतलब दरकनेवाली चट्टानें नहीं हैं, बल्कि उस चट्टान के नीचे कुचले जानेवाले लोग हैं। उन्हीं लोगों से ही अब उम्मीद है कि अपना देश अब बचाना पड़ेगा और उसके लिए एक आघाड़ी खड़ी हुई है – ‘इंडिया’। उस आघाड़ी से अपेक्षा है।
‘इंडिया’ पर मैं आऊंगा ही, लेकिन जिस तरह की सत्ता की राजनीति, हवस, स्वार्थ जो महाराष्ट्र में शुरू है। आप भी सत्ता में थे लेकिन अब की तस्वीर देखें तो ऐसा कहा जाता है कि उद्धव ठाकरे को सत्ता चलाना आया ही नहीं…
– ये देखो। मुझे जो करना था वह मैंने किया। मौजूदा तस्वीर आप कहते हैं वो देखें तो इस पद्धति से सत्ता चलाने की मेरी इच्छा नहीं है और मुझसे यह उस तरह से चलाई भी नहीं जाएगी। यदि मुझे सत्ता बचानी होती तो जो गद्दार थे, वे गद्दारी करने से पहले मेरे साथ ही दो-तीन दिन थे। उन्हें होटलों में अथवा अन्यत्र बंद करके रख सकता था, लेकिन ऐसे कितने दिन तक बंद करके रखूंगा। जो दिल से ही बिक गए हैं, वह लोग मुझे नहीं चाहिए। मेरे साथ जो केवल मुट्ठीभर लोग ही क्यों न हों, लेकिन निष्ठावान होंगे ऐसे ही लोग मुझे चाहिए। कारण यही असली ताकत होती है। गद्दारों का झुंड लेकर घूमने की बजाय मुट्ठीभर निष्ठावान लोग मुझे हमेशा ही पसंद रहे हैं। शिवसेनाप्रमुख का भी यही स्वभाव था।
उन निष्ठावानों की फौज आज भी हमारे पास है?
– है ही। इसीलिए तो मैंने कहा न कि उन्हें ऐसा लगा था कि इतना फोड़ने के बाद शिवसेना खत्म हो जाएगी लेकिन शिवसेना और जोर से अंकुरित हुई है। एक नजर से यह श्रीगणेश है। कई लोग कई जगहों पर सालों-साल से कब्जा जमाए बैठे थे। कई लोगों को मौका मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल रहा था। हम किसी व्यक्ति के बारे में बोलते थे कि यह व्यक्ति काम करता है। लेकिन मतदाता कहते थे कि कोई दिक्कत नहीं। एक बार हुआ, दो बार हुआ। इसे ही बार-बार मौका मिल रहा है। अंत में या शिवसेना ही है, ऐसा कहकर मत दे रहे थे, लेकिन अब वहां नए चेहरों को मौका मिल रहा है।

“महिला को निर्वस्त्र करके परेड निकालते हुए अत्याचार किया गया। इस पर शर्म करो। असल में यह वीडियो बाहर नहीं आया होता तो दुनिया को कुछ पता ही नहीं चला होता। यह घटना जहां की थी वहीं तुरंत खबर लेनी चाहिए थी, लेकिन वह नहीं ली गई इसे दुर्भाग्य ही कहना होगा।”

‘महाराष्ट्र की जनता मुझे अपने परिवार का सदस्य मानने लगी है’ यही मेरी कमाई है!

महाराष्ट्र में जोरदार बारिश हो रही है। सालभर पहले भी ऐसे ही मूसलाधार बारिश में आपके नेतृत्व वाली सरकार बह गई…
– बह नहीं गई थी। केकड़ों ने बांध फोड़ दिया था…
ये केकड़े कहां से आए?
– वे जलाशय में ही बैठे थे… मिट्टी में।
यह आपकी नजर में क्यों नहीं आए?
– आखिर केकड़ा, केकड़ा ही होता है। उसे कितना भी हम सीधे चलाने का प्रयत्न करें फिर भी वो टेढ़ा ही टेढ़ा चलता है और केकड़े की एक मानसिकता आपको पता होगी कि जिस टोकरी में केकड़े होते हैं, उस टोकरी पर ढक्कन रखने की जरूरत नहीं होती। कोई केकड़ा बाहर निकलने की कोशिश करता है तो बाकी केकड़े उसे नीचे खींचते रहते हैं। वैसे ही ये भी केकड़े ही हैं।
यह सालभर का समय कैसे गया।
– सबके साक्ष्य में सभी के समक्ष है। अनगिनत लोग मेरे सामने हैं। आ रहे हैं। बहुत भारी प्रतिसाद मिल रहा है। दस-पंद्रह दिन पहले दिग्रज गया था पोहरादेवी के दर्शन करने। दर्शन के लिए गया था तब भी वहां एक छोटी-सी सभा हुई। मुझे ऐसा लगा था कि बारिश में कार्यकर्ताओं से बंद हॉल में बात करूंगा, लेकिन उन कार्यकर्ताओं से बात करना भी हॉल जैसी सभा ही हो गई और सड़कों पर, नुक्कड़-नुक्कड़ पर, छोटे-बड़े गांवों में दोतरफा भीड़ थी। जहां रुकते थे, वहां लोग उमड़ पड़ते थे। खास बात यह है कि भीड़ में सर्वधर्मीय लोग थे। ये सभी लोग कहते थे कि आप ध्यान रखें, हम आपके साथ हैं।
मतलब शिवसेना नए सिरे से खड़ी हो रही…
– शिवसेना मजबूत थी ही, लेकिन अब ढाई सालों में मैं जो कुछ कर सका, उसके चलते महाराष्ट्र की जनता मुझे अपने परिवार का सदस्य मानने लगी है। यही मेरी कमाई है। बड़ी कमाई है। उस एक रिश्ते से शिवसेना के साथ जो पहले कभी नहीं थे, ऐसे लोग, ऐसी जनता भी शिवसेना के साथ जुड़ गई है।
आपने राज्य में मुख्यमंत्री का पद जिस तरह से ढाई साल संभाला, राज्य का नेतृत्व किया इसलिए मिल रहा है या शिवसेनाप्रमुख का पुत्र होने के नाते या फिर शिवसेनापक्षप्रमुख के तौर पर आपको मिल रहा है…
– इन सभी का समावेश होगा। शिवसेनाप्रमुख के पुत्र के रूप में तो मेरी पहचान है ही, लेकिन शिवसेनाप्रमुख का पुत्र शिवसेनाप्रमुख की विरासत को आगे ले जा सकता है, यह विश्वास जनता में मेरे प्रति होगा।
आप लोगों में घूमते हैं। उनसे संवाद साधते हैं। लोगों में भारी उत्साह है, ऊर्जा देखने को मिल रही है। उन लोगों से आप क्या कहते हैं?
– मुझे कुछ कहना ही नहीं पड़ता, बल्कि लोग ही मुझसे कहते हैं। लोगों का कहना है कि जो आपके साथ घटित हुआ, वह अयोग्य है। यह संस्कृति, यह संस्कार महाराष्ट्र का नहीं है। आप चिंता न करें। हम आपके साथ हैं। अर्थात मुझे लोगों से कुछ कहना ही नहीं पड़ता है।
उद्धवजी, पिछले सालभर में पुल के नीचे से काफी पानी बह गया है, ऐसा कहते हैं। क्या बह गया है और क्या रह गया, यह आनेवाला समय बताएगा, पर इस प्रवाह में आज भी आप मजबूती से खड़े हैं। शिवसैनिक डटे ही हैं। मुख्य बात यह है कि महाराष्ट्र की रीढ़ टूटी नहीं है।
-इसी को तो महाराष्ट्र कहते हैं।
इस महाराष्ट्र में जो राजनीति सालभर में कराई गई उसका श्रेय, फिलहाल मैं जानबूझकर ठीकरा शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं। फिलहाल, इसे श्रेय ही कहेंगे… तो इसका श्रेय आप किसे देंगे?
-सत्तालोलुपता
किसकी?
– जो सत्ता में बैठे हैं उनकी।
किसने बैठाया?
– जिन्होंने बैठाया उन्होंने। देखिए, मेरा एक सवाल है। अब जिस तरह से पार्टी तोड़कर सरकार बनाई जा रही है यह योग्य है क्या? अब पार्टी तोड़ना… पार्टी चोरी करने का प्रयास किया जाने लगा है। मुझे इस पर हैरानी होती है कि शिवसेना पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से भाजपा के साथ थी ही न। अर्थात जब हमारे देश की सियासत में भाजपा और शिवसेना को अछूत माना जाता था। राजनैतिक दृष्टि से कोई पास आने को तैयार नहीं था। उस समय से हिंदुत्व की एक मजबूत विचारधारा के लिए ये दोनों दल एक साथ आए थे। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि हालात इतने बदल गए। २०१४ में शिवसेना ने गठबंधन नहीं तोड़ा था, वो भारतीय जनता पार्टी ने तोड़ा था। २०१९ में जो कुछ भी वचन मुझे दिए गए थे, उसके अनुसार भाजपा के नेताओं ने बर्ताव किया होता तो क्या तस्वीर ऐसी रही होती? ढाई साल के मुख्यमंत्री पद का फॉर्मूला तय हुआ था। इस हिसाब से ढाई साल पहले शिवसेना का मुख्यमंत्री होता या ढाई साल पहले भारतीय जनता पार्टी का मुख्यमंत्री बना होता और अब जिनका समय बचा होता उनका मुख्यमंत्री अधिकृत तौर पर बैठा होता। शान से बैठा होता। चोर मार्ग से अथवा चुराकर ये उपद्रव नहीं करना पड़ा होता। जिन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल सकता था, उन्हें किसी और को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकारना पड़ रहा है और उपमुख्यमंत्री पद हिस्से में आने के बाद भी उसमें पार्टनर बनाना पड़ रहा है। ऐसी नौबत तो उन पर नहीं आई होती।
लेकिन देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि उद्धव ठाकरे ने हमारी पीठ में छुरा घोंपा…
– ठीक है। फिर एनसीपी ने क्या घोंपा था कि तुमने राष्ट्रवादी तोड़ दी। शिवसेना ने खंजर घोंपा, मैंने खंजर घोंपा कहते हो, फिर राष्ट्रवादी ने क्या घोंपा था कि तुमने उन्हें भी तोड़ दिया? आपकी सरकार आई थी न, शिवसेना तोड़कर। इसके अलावा निर्दलियों को साथ लेकर आपकी सरकार मजबूत होने के बाद भी राष्ट्रवादी क्यों तोड़ी? ठीक है, राष्ट्रवादी तोड़ने से चार-पांच दिन पहले उन पर भ्रष्टाचार के भयानक आरोप प्रधानमंत्री ने लगाए थे। अब उन आरोपों का अब क्या हुआ? उन घोटालों के पैसों का क्या हुआ? किसलिए तोड़-फोड़ की? इसलिए कहता हूं कि इतनी भ्रष्टाचारी राष्ट्रवादी पार्टी है अथवा थी तो उन्होंने आपके साथ असल में कौन-सी गद्दारी की थी कि आपने उन्हें तोड़ दिया।
हां, लेकिन उस पर भाजपा का ऐसा कहना है कि राष्ट्रवादी से जो उन्होंने युति की है कहो या पार्टी तोड़ दी ऐसा कहो, वह हमारी कूटनीति है, अधर्म नहीं…
– यह कूटनीति है, या पहले से ही बनी घात नीति है, यह मुझे नहीं पता। लेकिन कूटनीति को अब कूट डालने का वक्त आ गया है। सत्तालोलुपता, सत्ताभक्षक शब्द ही मुझे उचित लगता है। जैसे नरभक्षी होता है। वैसे, यह सत्ताभक्षक! एक बार जब ये सत्ता से चिपक गए तो उन्हें कुछ भी नजर नहीं आता है। यह सत्तालोलुपता इन सत्ताधारियों में आ गई है। उन्हें इंसान नजर नहीं आते। महिलाओं पर होनेवाले अत्याचार दिखाई नहीं देते। बढ़ती महंगाई आदि की तो बात ही न करें। यह विषय तो इनके लिए तो कुछ है ही नहीं। ऐसे झूठे भ्रम में सत्ता चला रहे हैं।
राष्ट्रवादी से गठबंधन भाजपा ने किया अथवा शिंदे के बागी गुट ने किया, यह कूटनीति है, लेकिन जब तुमने राष्ट्रवादी के साथ सरकार बनाई तब फडणवीस और फूटकर गए लोगों की भूमिका अलग थी, वह वैâसे बदल गई?
– यही मेरा कहना है न कि पहले से ही घात नीति है। यानी पहले से जो कुछ भी चल रहा था, उसी का यह परिणाम है। हमारे साथ आए तो भ्रष्ट और उनके साथ गए तो संत, यह कौन-सी नीति है?
महाराष्ट्र की एक महान परंपरा है, राजनैतिक संस्कृति की है, सामाजिक कार्यों की है। हम हमेशा शाहू, फुले, यशवंतराव चव्हाण, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, बालासाहेब ठाकरे, वसंतदादा पाटील, शरद पवार इन दिग्गज राजनीतिज्ञों ने, समाज सुधारकों ने इस राज्य का, समाज का नेतृत्व किया है लेकिन यह राज्य राजनीति के मामले में इतने निचले स्तर तक, रसातल में कभी भी नहीं गया था। क्या इस मिट्टी में आपको दोष नजर आ रहा है।
– नहीं। मिट्टी में कभी भी दोष नहीं होता। महाराष्ट्र की मिट्टी में तो है ही नहीं। एक उदाहरण देता हूं, जैसे किसानों के नसीब में नकली बीज आते हैं। उसमें मिट्टी का दोष नहीं होता। मिट्टी वही होती है। किसान वही होता है। उसे अंकुर फूटने तक पता नहीं होता कि ये बीज नकली हैं। वह एक विश्वास के साथ खेत को जोतता है, जमीन को जोतता है, खेती करता है, उसमें खाद डालता है। उसके लिए पसीना बहाता है। अब तो दिन में बिजली नहीं रहती है। इसलिए रात-बेरात अंधेरे में भी जाकर वह सिंचाई करता है और बाद में देखता है कि मेरे बीज तो नकली निकले। उसी तरह से यह बोगस बीजों की फसल है।
इसका क्या इलाज है?
– इलाज एक ही है कि इन तनों को उखाड़ फेंकना होगा और अपनी पुन: निष्ठा की, संस्कार की मिट्टी है, उसके अनुरूप बीजों को हमें बोना होगा?
आपके एक समय के सहयोगी रहे एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बने एक साल हो गया है। मैं ऐसा देखता हूं कि आप इतने साल भाजपा के साथ रहे। ढाई साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे। आपको भी मोदी-शाह के साथ रहने का इतना मौका नहीं मिला, जितना मुख्यमंत्री को मिल रहा है… इसके पीछे क्या रहस्य है?
– मैं वैâसे बताऊं… उनके नजदीकियों का राज!
यह सरकार स्थिर है क्या? 
– स्थिर किस नजरिए से। अगर आपको छोटी-छोटी जानकारियों के लिए दिल्ली के चक्कर लगाने पड़ते होंगे तो यहां सरकार हो, न हो क्या मतलब? फर्क क्या पड़ता है? खैर, देश का क्या हाल है आज? मणिपुर में देखो। मैं लगातार मणिपुर का जिक्र करता रहता हूं। उसका कारण है। मणिपुर हमारे देश का हिस्सा है। यह टूट जाएगा क्या, ऐसा डर लगने लगा है। वहां भी डबल इंजन के होश फाख्ता हो गए हैं। दोनों इंजन फेल हो गए हैं।

-२०२४ में ये सरकार दोबारा आई तो मुझे नहीं लगता कि देश में लोकतंत्र बचेगा उद्धवजी, मणिपुर एक गंभीर मुद्दा है। कल तक जम्मू-कश्मीर का मुद्दा गंभीर था।
– इसमें मणिपुर बढ़ गया है।
अब दो राज्य जल रहे हैं। दो राज्यों में एक ही समय अस्थिरता है। कश्मीर में तो पिछले छह साल से चुनाव ही नहीं हुए हैं, इस सरकार की चुनाव कराने की इच्छा ही नजर नहीं आती है।
– सही है, इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि वर्ष २०२४ हमारे देश के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोड़ देनेवाला वर्ष होगा, क्योंकि अगर २०२४ में ये सरकार दोबारा आई तो मुझे नहीं लगता कि इस देश में लोकतंत्र जीवित बचेगा और दोबारा चुनाव होंगे।
अभी हमारा एक विषय अधूरा रह गया था। केंद्र सरकार मतलब है मोदी-शाह की सरकार है ऐसा आप मानते हो क्या?
– अगर नहीं तो फिर ये सरकार किसकी है? चुनाव आया तो वो ‘एनडीए’ बन जाते हैं और चुनाव होने के बाद में मोदी ही होते हैं।
इस राज्य या देश में जो भी घटनाएं चल रही हैं, वह सिर्फ मोदी-शाह के नाम पर चल रही हैं। सरकारें तोड़ना, केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करना… क्या यह लोकतंत्र के खतरे में आने के संकेत हैं?
– अभी मेरे पास वह कार्टून नहीं है। माननीय बालासाहेब ने एक कार्टून बनाया था और यदि मैं भूला नहीं हूं तो उस समय मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। एक महिला हाथ थामे हुए है और उसका नाम दिया है ‘लोकतंत्र’ और उसे खाई में ले जाया जा रहा है…वापसी का सफर!
फिर वापसी का सफर शुरू हो गया है…
– उसी दिशा में सफर चल रहा है, ऐसा नजर आ रहा है।
यह लोकतंत्र बचेगा वैâसे?
– लोकतंत्र को आम जनता बचाएगी! आम जनता लोकतंत्र को बचाएगी। ये देश सभी का है। इस देश में रहनेवाले हर एक का देश है। उसी को अब धैर्य के साथ खड़ा होना चाहिए। अभी आपने पूछा कि ये सरकार किसकी है, ये सरकार मेरी है। यह एक सामान्य जनता की सरकार है। ये सरकार उस सामान्य आदमी के वोट से चुनी गई है। सामान्य आदमी को अब सोचकर वोट करना चाहिए। क्योंकि वह सिर्फ अपना वोट नहीं दे रहा है, वह अपना पूरा जीवन उनके हाथों में सौंप रहा है। न केवल उसका जीवन, बल्कि अगली पीढ़ी का भविष्य भी उनके हाथों में सौंपता है। क्योंकि अब उन्हें सत्ता में दस वर्ष हो गए हैं यानी एक पीढ़ी आगे बढ़ गई है। इस भावी पीढ़ी के लिए लोगों को अब होशियार हो जाना चाहिए।
आज जब हम बात कर रहे हैं तो राज्य के दोनों उप मुख्यमंत्रियों का जन्मदिन एक ही दिन मनाया जा रहा है।
– वे शायद यह भी देखना चाह रहे थे कि क्या इस तारीख को किसी और का भी जन्म हुआ है। सौभाग्य से, मैं उस दिन पैदा नहीं हुआ था। कुछ दिन बाद का हूं।
तो ये दोनों उपमुख्यमंत्री यानी अजीत पवार और देवेंद्र फडणवीस कभी आपके सहयोगी हुआ करते थे।
– अजीत पवार तो मेरे सहयोगी थे, लेकिन देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे तब मैं सत्ता में नहीं था। मेरा कभी सत्ता में आने का इरादा भी नहीं था।
आपने इन दोनों में से किसे शुभकामना दी?
– मैं सुबह इर्शालवाड़ी गया। इसलिए उन्हें फोन करने का मौका नहीं मिला लेकिन शुभेच्छा दूंगा ही और शुभेच्छा देते हुए यही कहूंगा कि ये शुभेच्छा सिर्फ मेरी नहीं है, बल्कि तमाम जनता के रूप में दे रहा हूं। इसे आप सत्कर्म में लगाएं। आपकी कुर्सी के मोह के कारण उस कुर्सी के नीचे जनता कुचली नहीं जा रही है न, इतना भी ध्यान रखें।
फिलहाल, राज्य में दो होर्डिंग देखने को मिलते हैं। कुछ भागों में अजीत पवार के भावी मुख्यमंत्री होने के होर्डिंग्स दिखाए देते हैं तो विदर्भ के कुछ हिस्सों में देवेंद्र फडणवीस के भावी मुख्यमंत्री के रूप में होर्डिंग लगे हैं। और फिलहाल, जो मुख्यमंत्री अस्तित्व में हैं वह एक मजाक हैं।
– जिसके-जिसके सपने हों उन्हें लाख-लाख मुबारक। मेरा जो विषय है वह सामान्य जनता के सपनों का है। उस सामान्य इंसान को मुख्यमंत्री के पद वगैरह से कुछ लेना-देना नहीं है। उसे आज का दिन बीत गया, कल का दिन वैâसे बीतेगा, इसी की चिंता है। हाल ही में मैंने एक सर्वे देखा, उसके अनुसार मराठवाड़ा में आज कम-से-कम एक लाख किसान आत्महत्या करने की सोच रहे हैं। ऐसे हालात में आप किस तरह के होर्डिंग्स लगाओगे, क्या होर्डिंग्स लगाओगे?

जिस पर प्रधानमंत्री ने ७० हजार करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था उन्हीं के हाथ में राज्य के
तिजोरी की चाबी दे दी! यह डबल इंजिन की सरकार है। तेज सरकार है।
– डबल इंजिन कहते हैं, लेकिन अब ये तीसरा जुड़ गया है ये इंजिन है या कुछ और? या डालडे का डिब्बा है? बीच में कोई डिब्बे नहीं हैं…
किसान, महिला, बेरोजगार युवा…
– अरे, अगर एक लाख किसान आत्महत्या करने की मानसिकता में हैं तो वैâसी आपकी सरकार और किस बात पर आप भावी मुख्यमंत्री का होर्डिंग लगा रहे हो। कौन भावी और क्या! अरे किसान की फसल का दाम नहीं मिल रहा और आपका तमाम भावीपन जोरदार ढंग से चल रहा है।
आप अजीत पवार से मिलकर आए?
– हां, परसों जाकर आया। क्योंकि वह ढाई साल तक बतौर उपमुख्यमंत्री मेरे साथ रहे थे इसलिए। वित्त विभाग उन्होंने संभाला था। मैंने उनसे यही कहा कि सत्ता की इस लड़ाई में राज्य को मत भूलो, यही मेरा कहना था। जनता को मत भूलो। वित्त विभाग राज्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण विभाग है। एक मजेदार बात देखें, जिस पर प्रधानमंत्री ने ७० हजार करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, उन्हीं के हाथ में राज्य के तिजोरी की चाबी दे दी। फिर आरोप सही है या अजीत पवार सच्चे?
आपको क्या लगता है?
– जिसने आरोप लगाया, उन्हीं से यह पूछा जाना चहिए।
आपका ये कहना सही है, लेकिन अजीत पवार आपके सहयोगी थे। आपने उनसे मुलाकात की, लेकिन कतार में और भी कई मंत्री थे, जिन्होंने आपके साथ सहयोगी के रूप में काम किया है। उनसे कभी मिलने की आपकी इच्छा नहीं हुई क्या?
– वे रोज ही मिलते थे लेकिन अजीत पवार के बारे में मैंने आपको बताया उसी तरह। ईमानदारी के साथ एक दायरे में रहकर काम करनेवाला व्यक्ति। प्रशासन और अपना विभाग उन्होंने बेहतरीन ढंग से संभाला था और मुझे ऐसा लगा कि मौजूदा भोंदूगीरी में इस व्यक्ति से कुछ अच्छा हो जाए तो प्रयास करते हैं। नहीं तो अब कभी भी चुनाव हो सकता है, ऐसी तस्वीर है।
बगल में ही नीलम गोर्‍हे का केबिन है?
– छोड़ो, ऐसे तो सभी के केबिन हैं।
लेकिन इन्हीं नीलम गोर्‍हे को आपने ४ बार विधायक बनाया?
– हां, चार बार विधायक बनाया। उपसभापति बनाया। जाने दीजिए। मुझे इस पर अब कुछ कहना नहीं है। बालासाहेब के आशीर्वाद से शिवसैनिकों की मेहनत पर जो दे सकते थे, वह हमने दिया।
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि जब आपके पास देने के लिए बहुत कुछ था, साधन थे, सत्ता थी तब आपने जिन्हें सर्वाधिक देने का प्रयास किया…
– मैं एक मजेदार बात बताता हूं, परसों विधान भवन में मुझे एक पत्रकार मिले बोले, उद्धवजी, कभी तो वक्त दो। इस पर मैंने कहा, फिलहाल मैं इतना ही दे सकता हूं। देने के लिए वक्त ही है मेरे पास, दूसरा क्या है!
लेकिन जिन्हें आपने सर्वाधिक दिया, वे सभी लोग आपको छोड़कर चले गए और जिन्हें आप कुछ नहीं दे सके वे आपके साथ रहे। आम शिवसैनिक होंगे, असंख्य पदाधिकारी होंगे। जिन्हें मिलता गया वो दूर होते गए। ये कौन-सी प्रवृत्ति है?
– फिर भी आज असंख्य लोग ऐसे हैं जिन्हें देने के बाद भी वे नहीं गए, वे मेरे साथ हैं। इसी पॉडकास्ट में नितिन देशमुख आकर गए हैं। वैâलाश पाटील आकर गए हैं। और बाकी ऐसे कई हैं। मुंबई के रवींद्र वायकर हैं। अजय चौधरी, सुनील प्रभु… कितने लोगों का नाम लूं। मुंबई के बाहर के भी कई लोग हैं।
इनमें से कई लोग बाहर से आए थे। वह आए और चले गए।
– नहीं, वे ऐसे नहीं आए- गए, ये एक हिस्सा है। लेकिन जिनकी राजनीति का जन्म ही शिवसेना में हुआ है। उन्होंने भी शिवसेना रूपी मां पर वार किया न!
सबसे बड़ा सवाल इस महाराष्ट्र और देश के सामने खड़ा हुआ है, यह सवाल कब तक रहेगा और कब हल किया जाएगा इस विषय में आज भी भ्रम है। वह सवाल मतलब शिवसेना किसकी?
– किसके समक्ष यह सवाल है। और किसके समक्ष यह सवाल पूछ रहे हैं।
यह लोगों का सवाल है।
– यह लोगों का सवाल नहीं है क्योंकि लोगों ने तय कर ही लिया है। जहां शिवसेनाप्रमुख और ठाकरे हैं वही सच्ची शिवसेना।
अभी आपने चुनाव आयोग का संदर्भ दिया था। एक विचित्र निर्णय उसने दिया ऐसा आप कहते हैं…
– यह उनका अधिकार नहीं है। कल मैंने चुनाव आयोग के अधिकारियों का नाम बदला तो? शिवसेना का नामकरण उन्होंने नहीं किया है। चुनाव आयोग कोई शिवसेना की बुआ नहीं लगती है कि आकर कान में नाम बताए। यह नाम दमदार तरीके से मेरे दादाजी ने दिया है। यह शिवसेनाप्रमुख ने रखा है। इसलिए तो उन्हें शिवसेनाप्रमुख कहा जाता है। कोई ऐसे उठे और शिवसेनाप्रमुख बनने लगे तो लोग जूते से मारेंगे।
ये जूते से मारने की नौबत कब आएगी?
– जब जोड़े में घूमेंगे तब…
सर्वोच्च न्यायालय इस पूरे प्रकरण पर पैâसला सुनानेवाला है। इस देश में आज ऐसी परिस्थिति है कि न्यायालय के निर्णयों की भी नहीं सुनी जाती है। न्यायालय द्वारा आदेश दिए जाने पर उसके खिलाफ अध्यादेश जारी करके एक अलग पैâसला सुनाया जाता है। ऐसे में आपको न्याय मिलेगा क्या?
– आखिरकार, हर चीज की एक सीमा होती है। जनता में सहनशीलता नाम की जो कुछ चीज है, उसका भी अंत होगा ही और है ही। इससे पहले अंग्रेजों की जैसी मस्ती दुनियाभर में थी कि हमारे साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता है आज वे अंग्रेज तो गए ही लेकिन उनके साम्राज्य पर उनका सूर्य था अथवा हमारा ही, उदाहरण ले लो। हमारे देश पर भी उनका ही राज था। मतलब कि हमारे देश का सूर्य उनके साम्राज्य पर चमक रहा था। उन अंग्रेजों के देश पर भी आज हिंदुस्थानी वंश का प्रधानमंत्री बन गया है। इसलिए हर किसी का अंत होता ही है, यह प्रकृति का नियम है। और घड़ा भरने के करीब पहुंचता है और भर गया तो फूटता भी है। यह याद रखो।
वह समय आ गया है?
– हां, वह समय आ ही गया है।
विधायकों द्वारा गद्दारी करने पर, बेईमानी करने पर एक बड़ी कानूनी लड़ाई लड़ी गई।
– हां, वह अभी जारी है।
लेकिन इस न्यायालयीन लड़ाई में सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ विधायकों के अपात्र होने संबंधित निर्देश दिए हैं। इस निर्देश का पालन विधानसभा अध्यक्ष को करना है। इस पैâसले को ३ महीने पूरे होने को आए हैं। इसके बावजूद विधानसभा अध्यक्ष ने अभी तक निर्णय नहीं लिया है।
– एक चीज की मुझे निश्चित तौर पर उम्मीद है। रामशास्त्री वाला स्वाभिमान यह महाराष्ट्र का स्वाभिमान है। रामशास्त्री के स्वाभिमान की तर्ज पर न्याय देनेवाले न्यायमूर्ति सर्वोच्च न्यायालय में हैं, यह मेरा विश्वास है और वे केवल हमारे पक्ष में निर्णय देंगे, इससे उनका स्वाभिमान सिद्ध होगा, ऐसा मैं नहीं कहता, बल्कि शिवसेना ने जो कोर्ट में बातें रखीं, वह संविधान के अनुरूप हैं। संविधान में जो लिखा है, उसे कोई मिटा नहीं सकता। शिवसेना की जो कुछ मांग है, वह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप ही है। इन प्रावधानों को मिटाया नहीं जा सकता फिर आपको संविधान बदलना होगा, अनुच्छेद बदलना होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने जो पैâसला दिया है इसका अर्थ ऐसा है कि उससे क्या होना चाहिए, क्या-क्या हुआ है। यह सब उन्होंने तय कर दिया है। सिर्फ योग्य-अयोग्य ठहराने का पहला अधिकार पहले विधानसभा अध्यक्ष को होता है। इस हिसाब से शिवसेना किसकी, यह आपका पिछला सवाल था। वह सवाल लेकर हम न्यायालय में गए तब न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग आदि स्वायत्त संस्था हैं। इसलिए यह तय करने का पहला अधिकार चुनाव आयोग का है। पहले उनके पास जाओ। वहां न्याय नहीं मिला तो हमारे पास वापस आओ। चुनाव आयोग के खिलाफ हम न्यायालय में गए हैं। इसी तरह यहां विधानसभा अध्यक्ष ने संविधान के अनुरूप न्याय नहीं दिया तो सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे खुले हैं और वहां पूरी सुनवाई हो चुकी है। साल-छह महीने सुनवाई हुई है। उसके बाद आप जो कह रहे हो वही पैâसला उन्होंने दिया है।
अभी भी आपका संविधान में विश्वास है?
– संविधान पर विश्वास क्यों नहीं होगा? संविधान को माननेवाले और न माननेवाले ये मुद्दे हो सकते हैं।
इस देश में कानून है, लेकिन न्याय नहीं ऐसा कहा जाता है इसलिए मैं यह प्रश्न आपसे पूछ रहा हूं।
– ये सब थोड़ा-बहुत अंतर सभी जगह है। इसलिए एकदम आशा छोड़ना उचित नहीं है। अन्यथा फिर हमारा दायरा ही खत्म हो जाएगा। इस तरह से दायरे को तोड़ दिया तो तालिबान और पाकिस्तान जैसा देश हमें मंजूर होगा क्या? वहां किसी तरह का संविधान वगैरह नहीं है। फिर भी पाकिस्तान में न्यायालय की अभी भी थोड़ी-बहुत चलती है। लेकिन अफगानिस्तान अथवा अन्य कुछ ऐसे देश हैं, वैसे देश हमें योग्य लगेंगे क्या? उसे हम अपना भारत अथवा भारत माता कह सकेंगे क्या?

 

गोवंश हत्या बंदी महाराष्ट्र में है,
बगल के राज्य में नहीं कश्मीर से कन्याकुमारी तक गोवंश हत्याबंदी करके दिखाओ! अब भारत माता का विषय निकला ही है तो उसकी पृष्ठभूमि पर कुछ पूछता हूं। भारत माता के संदर्भ में कुछ राजनीतिक दल हमेशा कहते हैं कि भारत माता हमारी ही है, हम ही इस भारत माता के स्वामी हैं…
– माता के स्वामी?
हां। माता के स्वामी हैं, ऐसा ही भाव दिखाते हैं।
– माता का स्वामी, ऐसा जो खुद को दिखाते हैं उन्हें मिट्टी में गाड़ना चाहिए।
सही बात है, लेकिन हिंदुत्व का विषय आया तो भी कहते हैं कि हम ही हिंदुत्व के मालिक…
– यह पाखंड है।
आप हिंदुत्व पर कितने दृढ़ हैं!
– पहली बार मैं अपने हिंदुत्व के एक दायरे, जो मेरे पिताजी और दादाजी द्वारा दिए गए हैं, उस दायरे के बारे में मैं कह चुका हूं। इस देश से जो प्यार करता है, देश के लिए मरने को तैयार है वह हिंदू और हमारा हिंदुत्व शिखा और जनेऊ अथवा मंदिर में घंटा बजाने वाला हिंदुत्व नहीं है। यह कोई कर्मकांड आदि पर विश्वास करनेवाला हमारा हिंदुत्व नहीं है। अब अरुणाचल में चीन घुस आया है।
मणिपुर में…
– हां। मणिपुर में भी घुस आया है ऐसा मैंने सुना है।
मणिपुर के दंगे के पीछे चीनी ड्रैगन है, उनका संगठन है।
– हां। अब अगर तुम उन पर गौमूत्र छिड़कोगे तो क्या वे वापस चले जाएंगे? यह हिंदुत्व नहीं है। देश की रक्षा करना यह हिंदुत्व है। इसलिए हमारा हिंदुत्व एकदम स्पष्ट है। इसलिए मैंने एक बार बताया था कश्मीर में अपना एक सैनिक शहीद हुआ था…
गनमैन मारा गया था। उसका नाम औरंगजेब था…
– मैं यह जान-बूझकर बता रहा हूं, वह औरंगजेब अपने देश के लिए लड़ा। आतंकवादियों ने यह विचार नहीं किया कि औरंगजेब है मतलब अपना है, हिंदुस्थान की ओर से जो लड़ रहा है वह कोई भी होगा तो हमारा शत्रु है, ऐसा मानकर उसकी दुर्गति करके उसे मार डाला। फिर क्या वह हमारा नहीं था? ये हमारा हिंदुत्व है। मेरा तो यह कहना है कि जैसा कि मैं बताता हूं कि मेरा हिंदुत्व वैâसा है, उसी तरह उन्हें बताना चाहिए कि वास्तव में उनका हिंदुत्व वैâसा है। उसका शिरा-आधार है क्या? उनका हिंदुत्व वास्तव में है तो क्या? अभी गोवंश हत्या बंदी महाराष्ट्र में है। बगल के राज्य में नहीं। त्रिपुरा में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष कहते हैं कि मैं गोमांस खाता हूं। आरएसएस के होसबोले कहते हैं कि गोमांस खानेवालों के लिए दरवाजे नहीं बंद किए जा सकते हैं। तो फिर आपका हिंदुत्व वास्तव में है तो क्या है? एक जगह आप गोवंश हत्या बंदी करते हो। दूसरी जगह किसी के पास गोवंश मिला तो उसे संदेह के आधार पर मार डालते हो।
मॉब लिंचिंग…
– हां, यह मॉब लिंचिंग है और अन्य राज्यों में तुम गोमांस खाने की छूट देते हो। रिजिजू ने कहा था मैं गोमांस खाता हूं। जो कार्रवाई करनी है करो।
पूरे ईशान्य के राज्यों में गोमांस उनका रोज का भोजन है।
– यही नहीं, गोवा में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पर्रिकर ने कहा था मैं यहां गोमांस की कमी नहीं होने दूंगा। कम पड़ने पर मैं बाहर से लाऊंगा। फिर एक तरफ मॉब लिंचिंग होती है और यहां यह ऐसा बोलनेवालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती।
राम मंदिर का मुद्दा अब लगभग खत्म होने को आ गया है। ट्रिपल तलाक का मुद्दा भी खत्म हो गया है। अनुच्छेद-३७० और जम्मू-कश्मीर का मुद्दा खत्म हो गया है, परंतु कश्मीरी पंडितों का मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है।
– यही मेरा कहना है। अनुच्छेद-३७० हटाने में शिवसेना ने समर्थन दिया। लेकिन अनुच्छेद हटाए जाने के बाद अभी भी वहां टार्गेट किलिंग हो रही है। कश्मीरी पंडित घाटी में वापस नहीं जा सकते। वहां जाकर कोई जमीन नहीं खरीद सकता। चुनाव नहीं हो रहे हैं। कश्मीर के वैसे तो टुकड़े किए हैं। लेह-लद्दाख अलग कर दिया। जम्मू अलग किया, फिर अब आप चुनाव क्यों नहीं कराते हो? जब महबूबा मुफ्ती को लेकर बीच में काफी विवाद खड़ा करने का प्रयास किया गया।
हां, आपकी उनसे चर्चा हुई…
– पहली मीटिंग में मैं ही उनके बगल में जाकर बैठा था। लेकिन भाजपा भी उनके साथ सत्ता में बैठी थी न। तब फडणवीस ने कहा था कि उस समय आतंकियों ने धमकी दी थी। आप कश्मीर में चुनाव वैâसे कराते हो देखेंगे। कराकर दिखाओ। इसलिए हमने चुनाव कराकर दिखाया। सरकार वैâसे स्थापित करते हो, देखते हैं। ऐसी धमकी आतंकियों ने दी थी, तब हम महबूबा के साथ गए और सरकार बनाई। तब पाकिस्तान ने धमकी दी इसलिए चुनाव कराकर दिखाया, फिर अब कश्मीर में चुनाव क्यों नहीं हो रहे हैं? अब महबूबा के बारे में बोलते हो। वो तो आपके साथ ही थी न। अब परिस्थिति ऐसी है भारत-पाक क्रिकेट का मुकाबला अमदाबाद में हो रहा है, मतलब पाकिस्तान के साथ भी आपकी दोस्ती हो गई होगी।
२०२४ के चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है समान नागरिक कानून का।
– मतलब क्या?
लोगों के मन में भी यही सवाल उठ रहा है कि मतलब क्या? तब शिवसेना की भूमिका क्या होगी?
– समान नागरिक कानून के मुद्दे पर हम बात करेंगे ही, क्योंकि उसके संबंध में शिवसेनाप्रमुख ने अपनी भूमिका बेहद दृढ़तापूर्वक और स्पष्ट व्यक्त की है। समान नागरिक कानून बनाते होंगे तो पहला जो मैंने आपको कहा वही फिर कहूंगा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक गोवंश हत्याबंदी करके दिखाओ। मणिपुर में शांति अमल में लाकर दिखाओ। तुम वहां कुछ कर नहीं सकते हो और समान नागरिक कानून का अर्थ तुम सिर्फ किसी की शादी भर के लिए रखते होगे तो यह अलग हिस्सा है। फिर कानून के समक्ष सब समान होंगे तो आपके बीच के भ्रष्टाचारियों को भी सजा मिलनी ही चाहिए। मुझे लगता है यह समान नागरिक कानून का अर्थ आम जनता से जुड़ा है। दूसरी तरफ है तो वह व्यभिचारी अथवा भ्रष्टाचारी और उनकी तरफ होगा तो तुरंत संत बन गया लॉन्ड्री में जाकर।

यह समान नागरिक कानून नहीं हो सकता।
उनके पास वॉशिंग मशीन है?
– वॉशिंग मशीन है, पाउडर किस ब्रांड का है और वह पाउडर कहां से आता है। लेकिन यह ऐसा समान नागरिक कानून मुझे स्वीकार नहीं है।

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