सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर सुबह लगाई एसबीआई को कड़ी फटकार; दिया अल्टीमेटम
तो शाम होते-होते चुनाव आयुक्त चयन प्रकिया भेदभाव पर भी सुनवाई की दर्शाई तैयारी
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा देश में प्रजातंत्र के हर स्ांस्थान को नष्ट करने पर तुली हुई है। मगर इसके बचने की उम्मीद अभी कायम है। कल सुप्रीम कोर्ट ने २४ घंटे में केंद्र सरकार को दो-दो झटके दिए। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट में एक-एक करके भाजपा की शासकीय साजिशें खुलने लगीं। चुनावी बॉन्ड के जरिए भाजपा चंदा देनेवालों का नाम छिपाना चाहती है, पर सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को कड़ी फटकार लगाते उसे आज शाम तक चंदा देनेवालों का विवरण सुप्रीम कोर्ट में जमा कराने को कहा है। दूसरी तरफ शाम होते-होते चुनाव आयुक्त के चयन का मामला भी सुप्रीम कोर्ट की नजरों में आ गया और वह इस चयन प्रकिया में भेदभाव पर भी सुनवाई को तैयार हो गया। इस समय चुनाव आयुक्त के दो पद खाली हैं और सरकार अपनी मनमानी करते हुए इसी सप्ताह उसे भरनेवाली है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरकार को कल एक ही दिन में दो बड़े झटके लगे हैं। एक तो न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड मामले में डाटा देने के लिए समय बढ़ाने की मांग वाली एसबीआई की याचिका खारिज कर दी।
दूसरा न्यायालय उस याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए तैयार हो गया है जिसमें मांग की गयी है कि केंद्र सरकार को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति नए कानून के तहत करने से रोका जाए।
१५ मार्च को खुल जाएगी
मोदी सरकार की कलई!
१५ मार्च को मोदी सरकार की कलई खुल जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार एसबीआई द्वारा चुनावी बॉन्ड के देनदारों की जानकारी दिए के बाद चुनाव आयोग को उसे अपने वेबसाइट पर सार्वजनिक करना है। इसके बाद भाजपा को किसने कितना पैसा दिया है, इसका खुलासा हो जाएगा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनावी बॉन्ड संबंधी जानकारी का खुलासा करने के लिए समय सीमा बढ़ाए जाने का अनुरोध करने वाली एसबीआई की याचिका खारिज करते हुए उसे आज १२ मार्च को कामकाजी घंटे समाप्त होने तक निर्वाचन आयोग को चुनावी बॉन्ड संबंधी विवरण उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने निर्वाचन आयोग को भी एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी १५ मार्च को शाम पांच बजे तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। सुनवाई के दौरान, पीठ ने एसबीआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों पर गौर किया कि विवरण एकत्र करने और उनका मिलान करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है क्योंकि जानकारी इसकी शाखाओं में दो अलग-अलग कक्षों में रखी गई थी। उन्होंने कहा कि अगर मिलान प्रक्रिया नहीं करनी हो तो एसबीआई तीन सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा कर सकता है। पीठ ने कहा कि उसने एसबीआई को चंदा देने वालों और चंदा प्राप्त करने वालों के विवरण का अन्य जानकारी से मिलान करने का निर्देश नहीं दिया है। पीठ ने कहा कि एसबीआई को सिर्फ सीलबंद लिफाफा खोलना है, विवरण एकत्र करना है और निर्वाचन आयोग को जानकारी देनी है। पीठ ने बैंक से यह भी पूछा कि उसने शीर्ष अदालत के १५ फरवरी के पैâसले में दिए गए निर्देशों के अनुपालन के लिए क्या कदम उठाए हैं? पीठ ने कहा, ‘पिछले २६ दिन में आपने क्या कदम उठाए हैं? आपकी अर्जी में इस बारे में कुछ नहीं बताया गया।’
गौरतलब है कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने १५ फरवरी को एक ऐतिहासिक पैâसला सुनाते हुए केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का १३ मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई की उस याचिका पर सुनवाई की थी जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए समय-सीमा ३० जून तक बढ़ाए जाने का अनुरोध किया गया था। इसके अलावा, पीठ ने एक अलग याचिका पर भी सुनवाई की जिसमें एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है। उधर, अदालत के पैâसले के बाद याचिकाकर्ता जया ठाकुर और वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह ऐतिहासिक पैâसला है जोकि लोकतंत्र को मजबूत करेगा।
निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति का मामला
जहां तक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति वाली बात है तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह केंद्र सरकार को २०२३ के एक कानून के अनुसार नए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करने से रोकने का अनुरोध करने वाली यचिका को सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा। इस कानून के प्रावधानों को पहले ही न्यायालय में चुनौती दी गई है। उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे और अनूप चंद्र पांडे की सेवानिवृत्ति के बाद निर्वाचन आयुक्तों के दो पद खाली हो गए हैं। बता दें कि निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने २०२४ के लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से कुछ दिन पहले शुक्रवार सुबह पद से इस्तीफा दे दिया था।