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महिला सुरक्षा को लेकर भी जगे उम्मीदें

डॉ. रमेश ठाकुर

19वीं सदी में अमेरिका की धरती से महिलाओं के मताधिकार के लिए जो अलख जगी थी उसका प्रत्यक्ष फायदा समूचे संसार की महिलाओं को हुआ था, तभी से सालाना 26 अगस्त को पूरे विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला समानता दिवस’ मनाने का प्रचलन शुरू हुआ। भारत में इस दिन को राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस का मकसद होता है महिलाओं के मताधिकार आंदोलन के महत्व तथा आधी आबादी के लिए एक-समान अधिकारों को सुरक्षित करने को लेकर जनमानस में जागरूक पैदा करना। महिला समानता दिवस वैसे 19वें संशोधन के पारित होने की याद भी दिलाता है। जब अमेरिका में महिलाओं के लिए मतदान के अधिकार स्थापित किए गए। साथ ही महिला समानता में शेष अंतरों की ओर भी ये दिवस ध्यान आकर्षित करवाता है, जिसमें लिंग वेतन अंतर, घर में महिलाओं से अपेक्षित अतिरिक्त श्रम, कार्यस्थल और सरकार में महिलाओं का असमान प्रतिनिधित्व शामिल है।
वक्त की दरकार यही है कि महिला अधिकारों की समानता की भांति अब उनकी सुरक्षा संबंधी आंदोलन भी चलाया जाना चाहिए। महिला अपराध दिनोंदिन बढ़ रहे हैं। घर, स्कूल, कार्यक्षेत्र कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। महिला सुरक्षा की अलख ऐसे जगे, जिसकी गूंज पूरे संसार में सुनाई पड़े। चाहे भारत हो या अन्य कोई भी मुल्क हर जगह आधी आबादी के प्रति जुल्मों की भरमार है। इसलिए महिलाओं की समानता के साथ-साथ उनकी सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करने की सख्त जरूरत है। अमेरिकी कांग्रेस ने 1973 में प्रतिनिधि बेला अब्ज़ुग के प्रयासों के बाद 26 अगस्त को महिला समानता दिवस घोषित हुआ, उन्हीं के प्रयासां की भांति किसी क्रांतिकारी व्यक्ति को महिला सुरक्षा आंदोलन की अलख जगाने के लिए भी आगे आना होगा। महिला समानता दिवस 26 अगस्त को इसलिए चुना गया, क्योंकि ये 1920 के उस दिन की याद दिलाता है। जब 19वें संशोधन को आधिकारिक रूप से प्रमाणित करके सार्वजनिक किया गया। इस दिन वोटिंग के अधिकार से वंचित महिलाओं ने जश्न मनाया था। अमेरिका के बाद सभी देशों ने महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देना आरंभ किया था।
डॉ. भीमराव आंबेडकर हमेशा महिलाओं के लिए एक समानता की बात करते थे। भारतीय संविधान के मसौदे की समिति में उन्होंने शुरुआत में इन बिंदुओं का जिक्र भी किया था, लेकिन भारत में महिला समानता को लेकर कुछ देरी जरूर हुई थी, लेकिन हालात ज्यादा खराब कभी नहीं रहे। पूर्ववर्ती हुकूमतों ने इस संदर्भ पर सभी ने ध्यान दिया, लेकिन अब दरकार महिला सुरक्षा को लेकर है। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो कोलकाता या निर्भया जैसी घटनाएं यूं ही घटती रहेंगी। महिला समानता से तात्पर्य है कि महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान अधिकार जैसी समानताएं। पर सवाल यही उठता है कि जब महिलाएं ही सुरक्षित नहीं रहेंगी, तो उन्हें मिलने वाले समान अधिकारों का क्या मतलब?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य देश है, जहां सभी नागरिकों के लिए समानता की गारंटी देने वाले मौलिक अधिकार मौजूद हैं। हालांकि, अमेरिका में 19वें संशोधन से केवल श्वेत महिलाओं को ही लाभ हुआ था, क्योंकि विभिन्न नस्लवादी नीतियों के कारण गैर-श्वेत महिलाओं को मतदान करने से रोका गया था। मूल अमेरिकियों को 1924 तक मतदान का अधिकार नहीं मिला, एशियाई महिलाओं को 1952 तक मतदान का अधिकार नहीं मिला और 1965 के मतदान अधिकार अधिनियम तक अश्वेत महिलाओं के लिए मतदान के अधिकार की कानूनी गारंटी नहीं थी, तब मताधिकार को लेकर महिलाएं आंदोलित थी और सुरक्षा को लेकर सड़कों पर उतरी हुई हैं। कोलकाता में महिला चिकित्सक के साथ दरिंदगी की घटना ने पूरे संसार को गहरी नींद से जगाया हुआ है। भारतीय महिला अपने लिए सुरक्षित समाज की मांग कर रही हैं।

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