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हाट न्यूज: टमाटर और ट्रेन!

अनिल तिवारी

देश में टमाटर महंगे हुए तो काफी हो-हल्ला मचा। लोगों ने विरोध किया, प्रदर्शन हुए। शुरुआत में सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, परंतु जब हालात हद से बाहर होने लगे तब केंद्र सरकार ने आम लोगों को राहत देने के कुछ प्रयास किए। टमाटरों की सरकारी खरीद के आदेश हुए। हालांकि, उस वक्त तक बाजार में प्राकृतिक रूप से ही टमाटरों की कीमतें गिरने लगी थीं। इसका सबसे बड़ा कारण था पब्लिक द्वारा टमाटरों की खरीद का कम करना। जब उपभोक्ता टमाटर खरीदेगा ही नहीं तो भला उसके दाम चढ़ेंगे वैâस? यही बाजार का नियम भी है। डिमांड कम हो तो कीमत खुद-ब-खुद कम हो जाती है। तब सप्लाई को संतुलित रखना जरूरी होता है। अब भारतीय रेलवे के सबसे महत्वाकांक्षी रेल प्रोजेक्ट को ही ले लीजिए। मामला आपको टमाटर की तरह एकदम लाल-लाल समझ आ जाएगा।
पिछले कुछ महीनों से केंद्र सरकार एक के बाद एक वंदे भारत ट्रेनों का दनादन उद्घाटन कर रही थी। पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। उद्घाटनों का सिलसिला अब भी जारी है। इसके पीछे चुनावी वर्ष एक कारण हो सकता है, पर दूसरा महत्वपूर्ण कारण है रेलवे को गति प्रदान करना, उसका चेहरा-मोहरा बदलना। चेहरा-मोहरा तो कुछ बदला, लेकिन वंदे भारत से भी अपेक्षित गति नहीं मिल पाई। ट्रेक कंजेशन से तमाम ट्रेनों को स्पीड ही नहीं मिली। भला, जब रफ्तार ही नहीं होगी तो लोग एयर फेयर जितनी महंगी टिकटें खरीदेंगे क्यों? टमाटर की तर्ज पर हाई स्पीड के लिए हाई फेयर से लोगों ने मुंह मोड़ लिया। डिमांड कम हुई तो सप्लाई को बनाए रखने के प्रयास होने लगे। रेलवे ने दो प्रयास किए। पहला वंदे भारत के किरायों को कम किया, दूसरा १६ कोच के रैक को काटकर कुछ चुनिंदा रूट्स पर आधा कर दिया। अब सवाल यह था कि जब रफ्तार कम, रिवेन्यू कम, सीटें भी कम तो फिर इसे चलाने का औचित्य क्या बचा? शायद प्रश्न प्रतिष्ठा का शेष रह गया हो। फिलहाल, ४ रूट पर ८ डिब्बों का वंदे भारत प्रयोग शुरू है, जो जल्द ही ४० रूट्स तक बढ़ाने की योजना है, ताकि डिमांड और सप्लाई का संतुलन बना रहे। यह संतुलन बिगड़ा तो हो सकता है कि ‘वंदे भारत’ के कोच भी डिमांड के अभाव में टमाटर की तरह बाजार में सड़ने लगें। वैसे, रेलवे के माहिर नीतिकर्ता ऐसा होने नहीं देंगे। फिर भी उन्हें आगामी दौर में आनेवाले वंदे भारत के स्लीपर वर्जन के साथ भी यही सोच रखनी होगी। रूस की टीएमएच के साथ रेल विकास निगम लिमिटेड का १२० वंदे भारत स्लीपर ट्रेनों का अनुबंध फाइनल तो हो गया है। अगर उसमें भी मुनाफे का लालच रहा तो फिर हाल इन्हीं वंदे भारत ट्रेनों जैसा होगा। संकेत देश दे ही चुका है। लिहाजा, सचेत रहिए। टमाटर की दुर्दशा देश ने सह ली, ट्रेन की नहीं सह पाएगा।

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