सामना संवाददाता / भोपाल
कूनो नेशनल पार्क में कल दो और चीता शावकों ने दम तोड़ दिया। इस तरह कुल मिलाकर अब तक ६ चीतों की मौत हो चुकी है। इन चीतों को पीएम मोदी की अगुवाई में बड़ी धूमधाम से नामिबिया से लाया गया था। ऐसे में अब लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक सजेगी चीतों की चिता?
बता दें कि एक के बाद एक चीतों की मौत होने से देश में चीता बसाने की योजना को बड़ा धक्का लगा है। नामिबिया की बिल्लियों को नागवार गुजर रहा है ‘कूनो’ का माहौल। कल मादा चीता ज्वाला के दो और शावकों की मौत हो गई, जबकि एक शावक का अस्पताल में इलाज हो रहा है। वन विभाग का कहना है कि इन दोनों शावकों की मौत की वजह प्रदेश में पड़ रही भीषण गर्मी भी है। इससे पहले मंगलवार को भी एक शावक की मौत हो गई थी। हालांकि, जिस देश से इन चीतों को लाया गया है वहां भी काफी गर्मी पड़ती है। ऐसे में ज्यादा गर्मी की बात हजम नहीं हो रही है। उधर दक्षिण अप्रâीकी वन्यजीव विशेषज्ञ विंसेट वान डेर मर्व ने कहा है कि हिंदुस्थान को चीतों के दो से तीन निवास स्थलों पर बाड़ लगानी चाहिए क्योंकि इतिहास में बिना बाड़ वाले अभयारण्य में चीतों को फिर से बसाए जाने के प्रयास कभी सफल नहीं हुए हैं। मर्व ने सचेत किया कि चीतों को फिर से बसाए जाने की परियोजना के दौरान आगामी कुछ महीनों में तब और मौत होने की आशंका है, जब चीते कूनो में अपना क्षेत्र स्थापित करने की कोशिश करेंगे और तेंदुओं एवं बाघों से उनका सामना होगा।
बता दें कि कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता ज्वाला ने २७ मार्च को चार शावकों को जन्म दिया था, लेकिन ये सभी कम वजन और डिहाइड्रेशन के शिकार हो गए। प्रमुख वन संरक्षक जे.एस. चौहान ने कहा कि मादा चीता के बच्चों की हम लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
मोदी सरकार का पैâसला कटघरे में
चीतों की जिस तरह से मौत हो रही है, उससे मोदी सरकार द्वारा चीता लाने का पैâसला कटघरे में आ गया है। कहा जा रहा है कि क्या बिना होमवर्क किए जल्दबाजी में ये चीते हिंदुस्थान ले आए गए? शायद यही वजह है कि अप्रâीकी परिवेश में रहनेवाले चीते यहां हिंदुस्थान के परिवेश में खुद को ढाल नहीं पा रहे हैं।