मुख्यपृष्ठस्तंभनशे की खिलाफ जंग…कितनी कामयाब होगी?

नशे की खिलाफ जंग…कितनी कामयाब होगी?

योगेश कुमार सोनी
पहली बार केंद्र सरकार ने नशे के खिलाफ कोई बयान दिया है और एक्शन लेने की बात कही है, लेकिन यह कितनी सार्थक होगी यह कहना मुश्किल है। जितनी सरलता से यह बात कही है यह उतनी ही मुश्किल है चूंकि नशे का कारोबारियों ने बहुत बड़े स्तर पर अपना जाल बिछा दिया है। आज मादक पदार्थ गली-गली में इतनी आसानी से मिल रहे हैं जैसे परचून की दुकान पर टॉफी-बिस्कुट। मादक पदार्थ बहुत तेजी से युवाओं को निगल रहा है। आज युवाओं की पार्टी में चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन व ब्राउन शुगर के अलावा कई प्रकार के नशे होना बेहद आम बात हो गई। यह सभी मादक पदार्थ पार्टी के पर्यायवाची बन चुके हैं। स्कूल व कॉलेज के बच्चों में इस नशे का क्रेज लगातार बढ़ रहा है। कॉलेज में लड़के व लड़कियां जमकर इस तरह के नशे कर रहे हैं। हम भली-भांति देखते आ रहे हैं कि नशे की वजह से हर रोज हजारों घर बर्बाद हो रहे हैं। यदि इस पटकथा के निर्माता की बात करें तो वह है पुलिस-प्रशासन हैं चूंकि इस तरह के मादक पदार्थ बिना प्रशासन के नहीं बिक सकता।

सूत्रों के अनुसार मादक पदार्थ बिकवाने की अनुमति पुलिस लाखों रुपए लेती है। यह मादक पदार्थ बेचने वाले एक कॉल पर डिलीवरी देने आ जाते हैं और खुला खेल प्रशासन की नाक के नीचे चलता है। विशेषज्ञों के अनुसार नशा मनुष्य के सोचने समझने की शक्ति के साथ ही पूरे शरीर पर प्रहार करता है। इसका प्रहार ऐसा होता है कि धीरे-धीरे शरीर ही नष्ट हो जाता है। यह एक ऐसा धीमा जहर होता है कि लोग जब तक इसके दुष्परिणामों को समझ पाते हैं तब तक उनका अंत हो जाता है। नशा कई रूपों में किया जाता है शराब, तंबाकू, पाउच व आर्टिफिशल मादक पदार्थ आदि सभी नशे की श्रेणी में आते हैं। आज नशे का सेवन भारत में सबसे अधिक होता है। लाखों संस्थाए भले ही नशे पर प्रतिबंध को लेकर जागरूकता कार्यक्रम करती हो लेकिन वास्तव में यह दुनिया भर में एक वर्ष में 54 लाख जानें ले रहा है। दुनिया में एक अरब लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। भारत की बात करें तो सालाना 9 लाख मौतें तंबाकू व लगभग चार लाख मौतें चरस, गांजा, अफीम व हेरोईन से होती हैं। दस में से एक मौत में तंबाकू वजह बनती है। वहीं विश्व में सभी तरह के नशे को लेकर सेवन में भारत का दूसरा स्थान है। यह बेहद पीड़ा देने वाला आंकड़ा है।

विशेषज्ञों के अनुसार 2030 तक 80 लाख लोगों की नशे की वजह से मौतें होंगी। डब्ल्यूएचओ द्वारा वर्ष 1988 से दुनिया को नशे के घातक दुष्परिणामों से सचेत करने के लिए 31 मई को विश्व तंबाकू दिवस मनाया जाता है। बावजूद इसके लोग जागरूक होने की बजाय नशे के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। इसके अलावा कॉरपोरेट जगत में सिगरेट के अलावा बड़े स्तर के नशे करना एक स्टेटस सिंबल बन गया। जैसे आज से लगभग दशक भर पूर्व लोग सिगरेट पीने के लिए एक-दूसरे का कहते थे चल सिगरेट पीने चलें लेकिन अब कहते हैं कि चल माल फूंकने चले। अब चिंता का विषय यह बनता जा रहा है कि स्कूल व कॉलेज की बच्चे नशे करने लगे। नशे के क्षेत्र में हर रोज परिस्थितियां विपरीत होती जा रही हैं। बीते दिनों भारत में एक पाकिस्तानी नौका से छह सौ करोड़ मूल्य की हेरोइन पकड़ी गई थी जिससे पाकिस्तान के नशा माफियाओं को करोड़ों रुपयों का फायदा होता और वह पैसा आतंकवाद में प्रयोग होता। जैसा कि भारत में कुछ मादक पदार्थ गैर-कानूनी तरीके से बाहरी देशों से आते हैं। दरअसल, कई देशों के सत्ता प्रतिष्ठानों की मिलीभगत से नार्को-आतंकवाद के एक बड़े पैटर्न को अंजाम दिया जा रहा है। निश्चित तौर पर यह साजिश हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। पुरानी घटनाओं के अनुसार जम्मू-कश्मीर व पंजाब में नशे के कारोबार से कमाया हुआ पैसा आतंकवाद में लगता आया है। इस तरह का पैसा आतंकवादियों को हथियार व पैसा उपलब्ध कराता है। इस खेल में पैसा बहुत है जिसमें शासन-प्रशासन के बड़े-बड़े लोग शामिल हैं यदि सही से जांच की जाए तो न जाने कितने बड़े नामों के खुलासे हो सकते हैं।इसलिए इस तंत्र को भेदना आसान नहीं होगा।

वरिष्ठ पत्रकार

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