मुख्यपृष्ठस्तंभकैसे रुकेगा आत्महत्याओं का सिलसिला?

कैसे रुकेगा आत्महत्याओं का सिलसिला?

रमेश सर्राफ धमोरा
झुंझनू, राजस्थान

देश-दुनिया में शिक्षा नगरी के नाम से प्रसिद्ध राजस्थान के कोटा शहर में कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथ ही आत्महत्याओं की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है। कोचिंग की बड़ी मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है। यहां शिक्षा के साथ ही मौत का कारोबार भी हो रहा है। कोटा, एक तरफ जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है तो वहीं इन दिनों छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। कोटा पुलिस के अनुसार, साल २०१८ में १९ छात्रों ने, २०१७ में ७ छात्रों ने, २०१६ में १८ छात्रों ने, २०१५ में ३१ छात्रों ने और २०१४ में ४५ छात्रों ने आत्महत्या की थी। जबकि पिछले जून माह में कोटा में पढ़ने वाले पांच छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी।
कोटा संभाग में कोचिंग छात्रों के आत्महत्या के मामलों को लेकर २४ जनवरी २०२३ को विधायक पानाचंद मेघवाल ने विधानसभा में प्रश्न पूछा था। जिसके जवाब में सरकार की ओर से कहा गया था कि कोटा संभाग में विगत चार साल में २०१९ से लेकर २०२२ में स्कूल-कॉलेज और कोचिंग सेंटर के विद्यार्थियों की आत्महत्या के कुल ५३ मामले दर्ज हुए हैं। सरकार ने आत्महत्या का कारण कोचिंग सेंटर में होने वाले टेस्ट में छात्रों के पिछड़ जाने के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी होना, माता-पिता की छात्रों से उच्च महत्वाकांक्षा होना, छात्रों में शारीरिक-मानसिक और पढ़ाई संबंधित तनाव उत्पन्न होना, आर्थिक तंगी, ब्लैकमेलिंग और प्रेम-प्रसंग को बताया।
कोटा में राजीव गांधी नगर इलाके के तलवंडी, जवाहर नगर, विज्ञान विहार, दादा बाड़ी, वसंत विहार और आसपास के इलाके में करीब पौने दो लाख व लैंडमार्क इलाके में ६० हजार छात्र रहते हैं। इसी तरह हजारों की संख्या में छात्र कोरल पार्क, बोरखेड़ा में भी रहते हैं। कोटा में करीबन ढाई लाख छात्र पढ़ रहें हैं, जिनमें सर्वाधिक उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं। कोटा में सात नामी व कई अन्य कोचिंग सेंटर हैं। शहर में करीबन साढ़े तीन हजार हॉस्टल और पीजी हैं। कोटा शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग ही सब कुछ है। यह सही है कि कोटा में सफलता की दर तीस प्रतिशत से ऊपर रहती है। देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप टेन में पांच छात्र कोटा के ही रहते हैं।
आज कोटा देश में कोचिंग का सुपर मार्वेâट है। एक अनुमान के मुताबिक, कोटा में कोचिंग मार्वेâट का सलाना चार हजार करोड़ का टर्नओवर है। कोचिंग सेंटरों द्वारा सरकार को अनुमानत: सालाना २००-३०० करोड़ रुपए से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है। कोटा में देश के तमाम नामी-गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे-मोटे २०० कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। यहां तक कि दिल्ली, मुंबई के साथ ही कई विदेशी कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं। लगभग ढाई लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं।
कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं। आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में पढ़नेवाले छात्र बड़ी-बड़ी कंपनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोड़कर यहां के कोचिंग संस्थाओं में पढ़ा रहे हैं। तनख्वाह ज्यादा होने से अकेले कोटा शहर में ७५ से ज्यादा आईआईटी छात्र पढ़ा रहे हैं। कोटा में पुलिस, प्रशासन, कोचिंग संस्थानों ने छात्रों में पढ़ाई का तनाव कम करने के बहुत से प्रयास किए, मगर आत्महत्या की घटनाएं नहीं रुक रही हैं।
इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए देशभर से छात्र कोटा आते हैं और यहां के विभिन्न निजी कोचिंग सेंटरों में दाखिला लेकर तैयारी में लगे रहते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के दबाव में आकर पिछले कुछ वर्षों में काफी छात्रों ने आत्महत्या की है, जिसके लिए अत्याधिक मानसिक तनाव को कारण माना जा रहा है। कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कह रहे हों, लेकिन कोटा के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें, ऐसा संभव नहीं है।
कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था कोचिंग पर ही टिकी है, ऐसे में कोचिंग सिटी के सुसाइड सिटी में बदलने से यहां के लोगों में घबराहट है कि कहीं छात्र कोटा से मुंह न मोड़ लें। इसे देखते हुए प्रशासन, कोचिंग संस्थाएं और आम शहरी इस कोशिश में लग गए हैं कि आखिर छात्रों की आत्महत्याओं को वैâसे रोका जाए? यदि शीघ्र ही कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं पर रोक नहीं लग पाएगी तो यहां का एक बार फिर वही हाल होगा, जो कुछ साल पहले यहां के कल-कारखानों में ताला बंदी होने के चलते व्याप्त हुए आर्थिक संकट के कारण हुआ था।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं)

 

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