भोजपुरी फिल्मों के साथ-साथ कई टीवी शोज में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाने वाले पप्पू यादव भोजपुरी फिल्म ‘इमली की घुटाई’ में महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे हैं। फिल्म ‘बोल राधा बोल’ के लिए बेस्ट विलेन का अवॉर्ड जीतनेवाले पप्पू यादव न सिर्फ अभिनेता, बल्कि समाजसेवक के रूप में भी लोगों के दिलों में गहरी पैठ बना रहे हैं। पेश है, पप्पू यादव से यू.एस. मिश्रा की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
• सबसे पहले तो आप अपने बारे में कुछ बताएं?
मैं जौनपुर (उ.प्र.) जिले के पिपरा गांव का निवासी हूं। मेरे बाबूजी रामदुलार यादव पहलवानी में महाराष्ट्र चैंपियन रह चुके हैं। भाई प्रेम नारायण बाबा जिला पंचायत के अध्यक्ष और मेरी धर्मपत्नी रेखा यादव मड़ियाहूं ब्लॉक प्रमुख हैं। फिल्मों का शौक होने के कारण मुंबई में पांचवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान क्लास बंक कर मैं वीडियो फिल्म देखने पहुंच गया। बाबूजी को जब पता चला तो मेरी जमकर कुटाई हुई और पहलवानी के लिए उन्होंने मेरा नाम कोल्हापुर के एक अखाड़े में लिखवा दिया। लेकिन तीन महीने बाद बिना किसी को कुछ बताए मैं चुपचाप वहां से गांव चला गया और जौनपुर में स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद रामलीला और नौटंकी में भाग लेने लगा।
•फिल्मों में आपकी कैसे एंट्री हुई?
मुंबई आने के बाद एक दिन मेरी मुलाकात रविकिशन से हुई। वे फिल्म ‘पंडितजी बताई न बियाह कब होई-२’ की प्लानिंग कर रहे थे। मेरी पर्सनैलिटी से प्रभावित होकर रवि भैया मुझसे बोले, ‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरी फिल्म में विलेन का किरदार निभाओ।’ खैर, इस फिल्म के बाद ‘आशिकी’, ‘जोड़ी नं. १’, ‘सइयां जी दगाबाज’, ‘शादी हो तो ऐसी’, ‘मेरी जंग’ जैसी कई भोजपुरी फिल्मों के साथ ही मैंने ‘ससुराल सिमर का’, ‘उड़ान’, ‘सीआईडी’ जैसे कई शोज किए।
•फिल्म ‘इमली की घुटाई’ आपको कैसे मिली?
डायरेक्टर देव पांडे ने फोन कर मुझे इस फिल्म में तांत्रिक का रोल ऑफर किया। किरदार की अहमियत को समझने के बाद मैंने फिल्म साइन कर ली। इस फिल्म में मुझे पर्दे पर देखने के बाद दर्शक दंग रह जाएंगे।
•पॉजिटिव की बजाय निगेटिव भूमिका निभाने की क्या वजह रही?
फिल्मों में दो ही स्तंभ मजबूत होते हैं एक हीरो और दूसरा विलेन। अब मैं हीरो बनने से तो रहा। अपने डील-डौल को देखते हुए आखिरकार मैंने विलेन बनना स्वीकार कर लिया।
•फिल्मों में बढ़ रही अश्लीलता के बारे में आप क्या कहेंगे?
नजरें बदलेंगी तो नजरिया भी बदल जाएगा। लोग देखते हैं इसलिए फिल्मवाले दिखाते हैं। दर्शकों का भी इसमें कहीं-न-कहीं योगदान है। अगर दर्शक नहीं देखें तो निर्माता इस तरह की फिल्में क्यों बनाएगा।
•फिल्म ‘बोल राधा बोल’ के लिए बेस्ट विलेन का अवॉर्ड मिलने के बाद आप क्या कहना चाहेंगे?
मैं प्रोड्यूसर विजय यादव, हीरो खेसारीलाल यादव और फिल्म की टीम सहित अपने दर्शकों का शुक्रगुजार हूं। समाज में अच्छा मैसेज जाए, ऐसी फिल्में मैं करना चाहता हूं। अगर हमारी फिल्मों से समाज में बदलाव होता है तो ये हम सबकी बहुत बड़ी जीत है।
•आज भारतीय फिल्मों का डंका ऑस्कर में बज रहा है?
‘ऑस्कर’ में भारतीय फिल्मों के बज रहे डंके को देखते हुए आज निर्माता-निर्देशकों सहित हम कलाकारों की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है। बेहतरीन और उम्दा फिल्मों का निर्माण हो, ताकि ‘ऑस्कर’ में हमारी फिल्में नॉमिनेट हों। हमारा काम इतना अलहदा हो कि हॉलीवुड में हर साल भारतीय फिल्मों का डंका बजे।
•कोई ऐसा इंसिडेंट, जो भुलाए न भूलता हो?
कुछ ही दिनों पहले मैं अपने जीजाजी को ट्रेन में बैठाने कुर्ला स्टेशन गया था। जीजाजी को लेकर मैं जैसे ही बी-१ बोगी में चढ़ा सामने से एक महिला अपनी बच्ची का हाथ पकड़े आ रही थी। बच्ची आगे-आगे चल रही थी और महिला पीछे-पीछे। अचानक बच्ची मुझे देखकर जोर-जोर से रोने लगी। जब महिला ने बच्ची से रोने का कारण पूछा तो बच्ची ने डरते हुए कहा, ‘अंकल ने सीरियल में लड़की का किडनैप किया था। अब मेरा भी किडनैप कर लेंगे!’ बच्ची ने शो ‘ससुराल सिमर का’ में मुझे किडनैपर के रूप में देखा था। खैर, बच्ची को जब उसकी मां ने बहुतेरा समझाया और मैंने उसे बिस्किट और पानी का बोतल लाकर दिया, तब कहीं जाकर उसे यकीन हुआ कि मैं किडनैपर नहीं एक्टर हूं।
•सुना है, आप बढ़-चढ़कर समाजसेवा करते हैं?
मेरी मां कहती हैं, ‘बेटा, पैसा तो सब कमाते हैं तुम नाम कमाना।’ हर वर्ष ठंड के मौसम में मैं गरीबों को कंबल और बच्चों को किताबें बांटता हूं। जो बच्चा पढ़ने में होशियार है और अपनी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकता, उसकी पढ़ाई का खर्च उठाता हूं। किसी गरीब के घर मौत हो जाए तो क्रिया-कर्म का सारा खर्च मैं वहन करता हूं। अब आप ये सब पूछ रहे हैं इसलिए मैं आपको बता रहा हूं, वरना जीवन में अपनी मां के ‘नेकी कर दरिया में डाल’ वाले सिद्धांत पर मैं अमल करता हूं।