यकीं ना मुझको हुआ,
और ना मेरे दिल को ।
वेवफा हो गये ‘वो’ ,
और दीवानों की तरह,
मैं तो हर लम्हों को,
दिल में सवारतां ही रहा ,
प्यारे इस रिश्ते को
बस निगहवानों की तरह ।
*
तरस न आया ‘उन्हें’,
कैसे है ‘वो’ दिलवाले,
मिले वो ऐसे मुझसे,
बस मेहरवानों की तरह।
है,अगर दोस्ती ‘पूरन’
तो जुदाई भी रहे,
निभाई जाती रहे ,दोनो,
इमानों की तरह।
पूरन ठाकुर ‘जबलपुरी’
कल्याण ईस्ट