मुख्यपृष्ठग्लैमरमुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है!-कृतिका कामरा

मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है!-कृतिका कामरा

वैसे तो कृतिका कामरा फैशन डिजायनर बनना चाहती थीं, लेकिन इसे संयोग ही कहना होगा कि टीवी शो ‘कितनी मोहब्बत है’ के लिए उनका सिलेक्शन हुआ। इसके बाद कृतिका ‘झलक दिखला जा’, ‘रिपोर्टर्स’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे सफल शोज के बाद ओटीटी पर सफल अभिनेत्री के रूप में छा गईं। ‘तांडव’, ‘बंबई मेरी जान’, ‘कौन बनेगी शिखावती’ जैसे वेब शो के बाद ‘जी फाइव’ के नए क्राइम थ्रिलर शो ‘ग्यारह ग्यारह’ से वे सुर्खियां बटोर रही हैं। पेश है, कृतिका कामरा से
पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
 शो ‘ग्यारह ग्यारह’ में यूनिक क्या है?
लोगों को थ्रिलर, क्राइम, सस्पेंस ड्रामा बेहद पसंद आने लगा है। शो ‘ग्यारह ग्यारह’ शो की यूनिक बात यह है कि १९९० में हुए मर्डर की जड़ें १५ वर्ष बाद हुई एक और मर्डर मिस्ट्री से जुड़ी हैं।
 आपके किरदार वामिका की क्या विशेषता है?
वामिका पुलिस सब इंस्पेक्टर है, जो जल्द ही डीसीपी बन जाती है। बतौर पुलिस अफसर मुझे बर्फीले पहाड़ों में एसयूवी चलाने के साथ ही पुलिसवालों के जज्बे को महसूस करना था। वैसे यूनिफॉर्म पहनकर यह जज्बा अपने आप आता है।

 गुनित मोंगा के साथ कैसा अनुभव रहा?
गुनित मोंगा और करण जौहर का यह जॉइंट कोलैबरेशन है। करण जौहर के साथ काम करने की महत्वाकांक्षा सभी की होती है। गुनित को अब तक दो बार ‘ऑस्कर’ मिल चुका है। उनकी कहानियों में औरतों का काफी सशक्त किरदार होता है। गुनित बहुत क्रांतिकारी हैं, जिन पर सभी को नाज है।
 आप फैशन डिजायनर बनना चाहती थीं न?
पैâशन डिजाइनिंग सीखने के लिए मैंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग में एडमिशन लिया, लेकिन टीवी धारावाहिक में लीड रोल मिलने के बाद अभिनय में शुरू हुआ सफर आज तक थमा ही नहीं।
 आपने फिल्मों को तवज्जो क्यों नहीं दी?
मैं अपने मन का काम करती हूं। टीवी में मुझे शोहरत के साथ ही मनचाहे किरदार मिलते रहे। आज से १०-१२ वर्ष पहले एक अलग संघर्ष था। फिल्मों में आप तभी सफल कलाकार बनते, जब आपकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट होती। मैंने इक्का-दुक्का फिल्में जरूर की, लेकिन फिल्मों के मामले में मैं किस्मत की धनी नहीं रही। मेरा कोई मेंटॉर नहीं था, जो मेरा मार्गदर्शन करता। टीवी का मेरा सफर शुरू से ही कामयाब रहा। लिहाजा, फिल्मों में कामयाबी न मिलने का मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है।
 आप ओटीटी को काफी अहमियत दे रही हैं?
ओटीटी पर फिल्मों जैसा फंडा नहीं है। ओटीटी पर सच्ची डेमोक्रेसी है। यहां कोई भेदभाव नहीं है। यहां स्टार्स नहीं अच्छे एक्टर्स चाहिए, जो किरदारों को न्याय दे सकें। ओटीटी पर धांसू किरदार और कहानियां हैं, जो परफॉर्मेंस का पूरा मौका देते हैं। ओटीटी पर काफी अच्छा बजट है। टीवी की इमेज से बाहर निकलकर ओटीटी मुझे बेहतरीन किरदार दे रहा है। फिल्मों में महज एक-दो डांस और दो-चार संवादों वाले किरदार करने से ओटीटी पर काम करना कई गुना ज्यादा अच्छा है।
 क्या आगे चलकर आप टीवी पर काम करेंगी?
इस वक्त तो मेरे पास समय ही नहीं है क्योंकि मैं लगातार ओटीटी पर व्यस्त हूं। खैर, टीवी, फिल्म, ओटीटी के बीच अब दूरियां खत्म हो चुकी हैं।

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