१९८४ में रिलीज हुई गिरीश कर्नाड निर्देशित फिल्म ‘उत्सव’ से शेखर सुमन ने फिल्मों में डेब्यू किया था। फिल्म में उन्होंने रेखा के अपोजिट किरदार निभाया था। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुए संजय लीला भंसाली के वेब शो ‘हीरामंडी’ में नवाब जुल्फिकार का रोल निभाकर शेखर सुमन खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। पेश है, शेखर सुमन से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
-वेब शो ‘हीरामंडी’ को स्वीकारने की क्या वजह रही?
सबसे बड़ी अहम वजह हैं संजय लीला भंसाली। उनके साथ काम करना एक लाइफ टाइम अनुभव है इसे सभी जानते हैं। वैसे भंसाली के साथ काम करने का एक बड़ा मौका मैं पहले खो चुका हूं। फिल्म ‘देवदास’ में उन्होंने मुझे चुन्नीबाबू का किरदार ऑफर किया था, लेकिन टीवी शो में व्यस्त होने के कारण मैं एक शानदार किरदार और फिल्म से हाथ धो बैठा। जब उन्होंने ‘हीरामंडी’ का ऑफर मुझे दिया तो मैं जानता था कि किरदार की लेंथ कम होगी, लेकिन नवाब जुल्फिकार का किरदार कहानी में महत्वपूर्ण है। अब सिर्फ हीरो-हीरोइन ही नहीं, बल्कि किरदार भी मायने रखते हैं।
– नवाब जुल्फिकार के रोल के लिए आपने किस तरह की तैयारियां की?
‘मुगल-ए-आजम’, ‘पाकीजा’ जैसी फिल्मों के जरिए मेकर्स ने नवाबों को पर्दे पर उतारा है और उन्हें देखते हुए हमने बहुत कुछ सीखा है। अगर नवाब का किरदार निभाना है तो नवाबी पोशाक, अलंकार और मेकअप के बाद चाल-ढाल नवाबों जैसी खुद-ब-खुद हो जाती है। अगर संवाद पावर फुल हो तो किरदार अपनी छाप छोड़ देते हैं। ‘हीरामंडी’ की रिलीज के बाद भी मैं सुरूर में हूं। मेरी पत्नी अलका कहती है अब तो जुल्फिकार से बाहर निकलो।
-भंसाली के साथ आपके कैसे अनुभव रहे?
बड़े टास्क मास्टर हैं भंसाली। मतलब जिस तरह से वो शॉट चाहते हैं तो बस चाहते हैं, टेकिंग में कोई समझौता नहीं करते। पहले डांस की शूटिंग के दौरान कलाकार अगर डांस नहीं कर पाते थे तो कोरियोग्राफर वो स्टेप बदल देते थे, लेकिन भंसाली ने जो सोचा है मतलब उसे ही करना है। उनके पास गजब का पेशंस है। मैं तो कहता हूं कि हर मेकर को उनके जैसा परफेक्शनिस्ट होना चाहिए।
-आपके लिए कौन-सा सीन चैलेंजिंग रहा?
शो की शुरुआत में मेरा और मनीषा कोइराला का एक सीन है, जिसमें हम घोड़े की बग्घी में बैठे हैं। शॉट के मुताबिक नशे में धुत्त नवाब जुल्फिकार बातचीत करते अपनी इच्छाएं, अपने जज्बात, अपनी कुंठाओं को मनीषा के सामने व्यक्त कर रहा है। जुल्फिकार की तड़प, प्यार और जज्बात भी जाहिर हो इस तरह इसे निभाना था। यह सीन एक टेक में ओके हुआ तो भंसाली ने तालियां बजायीं और यह सीन ‘हीरामंडी’ का एक आयकॉनिक सीन बन चुका है।
– मनीषा कोइराला के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मेरे जितने भी सीन हैं वो मनीषा के साथ ही हैं। मुझे मनीषा पर फख्र है कि कुछ वर्ष पहले ही उन्होंने कैंसर पर विजय हासिल की और पूरी शिद्दत के साथ दोबारा अभिनय में जुट गईं। मनीषा ने अपने किरदार में जान डाल दी है।
– अध्ययन सुमन को आपने क्या टिप्स दिया?
अध्ययन की कास्टिंग मुझसे भी पहले हो चुकी थी। उसी वक्त मैंने उससे कहा, अपनी फिटनेस, संवाद अदायगी और परफॉर्मेंस शत-प्रतिशत देना। अपने संवादों को जानदार बनाने की प्रैक्टिस करो। पिता-पुत्र को एक साथ काम करने का मौका कम मिलता है और हम दोनों खुशकिस्मत हैं कि हमने भंसाली के साथ काम किया। एक पिता को और क्या चाहिए?
-४० वर्षों में ४० फिल्में करने की क्या वजह रही?
‘उत्सव’ के बाद जो ऑफर्स मेरे पास आए उनमें चंद फिल्में मैंने सिलेक्ट की। माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, जूही चावला, पद्मिनी कोल्हापुरे जैसी नामी-गिरामी अभिनेत्रियों के साथ मैं लीड एक्टर रहा हूं और बेहतरीन निर्देशकों के साथ मैंने फिल्में की। बेमतलब की फिल्मों में काम कर मैं अपनी फिल्मों की तादाद नहीं बढ़ाना चाहता था। टीवी ने मुझे स्टार बना दिया। मैंने दर्जनों शो को होस्ट किया और टीवी इंडस्ट्री के शिखर पर रहा।
– ‘मूवर्स एंड शेकर्स’ शो क्यों खत्म हुआ?
‘मूवर्स एंड शेकर्स’ के एक महीने में २२ शोज होते थे, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था। कई साल तक यह वन मैन शो करने के बाद मुझे लगा कि एक एक्टर के रूप में मेरी ग्रोथ नहीं हो रही है। मैंने रुकना चाहा और कई हिंदी-अंग्रेजी नाटकों में काम किया। नाटकों का सफर बेहद संतोषजनक और एक नई ऊर्जा भरनेवाला था। बतौर एक्टर जब नई चुनौती आएगी, उसमें मैं खुद को आजमा लूंगा।