मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनारात भर चांद को मैं बुलाती रही

रात भर चांद को मैं बुलाती रही

रात भर चांद को मैं बुलाती रही
नींद आंखों से बस दूर जाती रही
ख़्वाब नैनों में आने को बेताब थे
बेकली रात भर ही जगाती रही
टूट कर उनको चाहा मैंने सदा
उनकी यादें मुझे फिर रुलाती रही
टूट कर इश्क में दिल के टुकड़े हुए
आंसुओं में उन्हें मैं बहाती रही
किसकी आवाज आई मुझ को कनक
किसके गीतों को मैं गुनगुनाती रही।
-डॉ. कनक लता तिवारी

अन्य समाचार