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मैं लिखना चाहता हूं

मैं लिखना चाहता हूं कविता
सत्ता के दम्भ की
लोगों के संघर्ष की
बदलते भूगोल की
मौन होते सच की
मैं लिखना चाहता हूं कविता
बारूदों के गंध की
मिटती सभ्यता की
खंडहर होती संस्कृति की
खत्म होती मानवता की
मैं लिखना चाहता हूं कविता
युद्ध के विभीषिका की
चिथडों में बिखरे बचपन की
इतिहास को मिटाती भीड़ की
आतंक और नक्सलवाद की
मैं लिखना चाहता हूं एक कविता
रावण के दम्भ की
हिटलर के अंत की
सुलगति क्रांति की
युद्ध के शांति की
मैं लिखना चाहता हूं कविता
खत्म होती वेदना की
टूटती संवेदना की
सुखते आंसुओं की
विखरते रिश्तों की
मैं लिखना चाहता हूं एक कविता
श्रीराम के त्याग की
भरत के परित्याग की
गांधी के अहिंसा की
बुद्ध के शांति संदेश की।

प्रभुनाथ शुक्ल

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