अभिनेत्रियों के लिए पारंपरिक खूबसूरती के जो मापदंड हैं, उन मापदंडों पर शायद बनिता संधू खरी नहीं उतरतीं लेकिन उनकी भावपूर्ण आंखें और गजब का आत्मविश्वास उन्हें एक अच्छी अभिनेत्री के गुणों से परिपूर्ण बनाता है। इंग्लैंड से हिंदुस्थान आकर साउथ के साथ ही हिंदी फिल्मों और ओटीटी पर काम करना उनके लिए आसान नहीं था। खैर, फिल्म ‘सरदार उधम सिंह’ के बाद बनिता की फिल्म ‘मदर टेरेसा एंड मी’ रिलीज हुई है। पेश है, बनिता संधू से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
• फिल्म ‘मदर टेरेसा एंड मी’ करने की क्या वजह रही?
फिल्म की कहानी मुझे समाज को जोड़नेवाली लगी। फिल्म में मेरे किरदार का नाम कविता है। कविता जिस लड़के से प्यार करती है, प्रेग्नेंट होने के बाद उससे उसका ब्रेकअप हो जाता है। अब कविता पसोपेश में पड़ जाती है। कविता को एक भली महिला दीप्ति नवल मिलती है, जिसे वो नानी कहती है। दीप्ति नवल के साथ काम करना मेरे लिए बहुत बड़ा आकर्षण है।
• दीप्ति नवल से आपने क्या सीखा?
दीप्ति नवल को सेट पर परफॉर्म करते हुए देखना किसी पाठशाला में पढ़ने से कम नहीं है। दीप्ति ने मुझे हर बार गाइड किया और पूरी फिल्म के दौरान वो मेरे लिए एक बड़ी सपोर्ट सिस्टम थीं। श्रेष्ठ कलाकार के साथ ही मैंने उनमें दयालु, आत्मीयता से भरी एक सुलझी हुई स्त्री महसूस की। यह कोई साधारण गुण नहीं है।
• क्या आपको अपने किरदार के लिए होमवर्क करना पड़ा?
प्रेम के दौरान कविता प्रेग्नेंट हो जाती है और उसका ब्रेकअप हो जाता है और वो बिखर सी जाती है। मुझमें और कविता में कुछ बातें समान हैं, जैसे कविता जीवन में उधेड़बुन में पड़ जाती है, ठीक वैसे ही मैं भी जिंदगी में ‘लॉस्ट’ हो चुकी थी, जब मैं यूके से बॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने आई। हर तीसरे एक्टर की तरह मुझे भी असफलता का सामना करना पड़ा और मैं असफलता से घिरे बादलों में खो गई। आगे क्या करूं, यह चिंता मुझे परेशान कर रही थी। जब मुझे अपना ही किरदार निभाना था तो कोई होमवर्क नहीं करना पड़ा।
• बीच के दिनों में आप कहां गायब थीं?
ऐसा नहीं है कि फिल्म ‘अक्टूबर’ से फिल्म करियर शुरू करने के बाद मैं मेंं आगे नहीं बढ़ सकी। फिल्म के असफल होने के बाद मैंने यूरोपियन एनिमेटेड फिल्म, अमेरिकन टीवी शोज, कुछ वेब शोज, कुछ मॉडलिंग प्रोजेक्ट्स किए। साउथ की फिल्मों में अभिनय किया। हां, ये और बात है कि मैं स्टारडम से दूर रही लेकिन एक परफॉर्मर के रूप में आगे बढ़ती गई।
• इंग्लैंड से अकेले हिंदुस्थान आने के बाद क्या आपको कभी निराशा का सामना करना पड़ा?
फिल्मी बैकग्राउंड न होने की वजह से मुझे बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा, यह सच्चाई है। डेब्यू फिल्म ‘अक्टूबर’ से मुझे बहुत उम्मीदें थीं, वरुण धवन एक पॉप्युलर एक्टर हैं, जिनके अपोजिट मैं थी। सेंसेटिव कहानी होने के बावजूद फिल्म नहीं चली। इसका गहरा सदमा मुझे लगा और मैं डिप्रेशन में चली गई। इसी दौरान मेरी कॉलेज की पढ़ाई लंदन में चल रही थी, मेरे माता-पिता इंग्लैंड में थे। मैं अपना फिल्मी करियर बनाने मुंबई आई थी। एक साथ मेरे जीवन में बहुत कुछ हो रहा था, जो मुझसे संभल नहीं जा रहा था और मैं कुंठा से घिर गई। मेरे माता-पिता ने मुझे संबल दिया और वक्त सबसे बड़ा मरहम है। धीरे-धीरे मैं काम करती गई और मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया।
• आपके लिए खुशियों वाले पल कौन से हैं?
जब भी मैं अपने परिवार और करीबी दोस्तों के साथ होती हूं। इससे मुझे ऊर्जा मिलती है और कोई नेगेटिव मोमेंट्स मेरे पास नहीं फटकते। इन सभी का साथ मुझमें खुशियां भर देता है।