मेरा तो तय है वहां जाना
जहां रूह ले जाए चाहे अलग हो रिश्ते
बंजर हो आंखें, बीते सदी मेरी याद में
तब भी मैं लौटने का जिक्र नहीं करूंगा
भले टुकड़े होके जमीं पे बिखर जाऊंगा
भले पानी गवाह हो आंखों के
भले यादें चले सांसों से
जाऊंगा वहां, जहां प्यासे वक्त गए थे
जाऊंगा वहां, जहां कलेजे तड़प गए थे
सुनने के लिए, समझने के लिए
वक्त बिताने के लिए, जाऊंगा वहां
जहां रोटी कपड़ा मकान के मोहताज होते हैं लोग
मेरे जेहन में एक ही शरारतें हैं
वो है जिद…।
– मनोज कुमार, गोण्डा-उत्तर प्रदेश