मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनामैं खुद को लिखूंगी।

मैं खुद को लिखूंगी।

 

मैं लिख पाऊं कुछ तो खुद को लिखूंगी।
कुछ ख्वाब अधूरे, कुछ शिकायतें लिखूंगी।
अपनों का शोर , खुद का सन्नाटा लिखूंगी।
वो हंसता हुआ दिन वह रोती हुई रातें लिखूंगी।
हर बार गिर कर मैं खुद को लापरवाह लिखूंगी।
अपने डर को जितने दिया, मैं अपनी एक और हार लिखूंगी।
सब कुछ जानते हुए भी मैं खुद को अनजान लिखूंगी।
प्यार पर लिखी अपनी हर कविता को आज बदनाम लिखूंगी।
मेरे बहते हुए आंसुओं में,मैं खुद को अकेला लिखूंगी।
सबको समझती हुई शेजल आज खुद को कमजोर लिखूंगी।
जो मैं लिख पाऊं कुछ तो खुद को अधूरा लिखूंगी।

शेजल यादव
नालासोपारा पूर्व

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