मुख्यपृष्ठग्लैमर‘नशा काम का हो तो सोने पे सुहागा!’-नवाजुद्दीन सिद्दीकी

‘नशा काम का हो तो सोने पे सुहागा!’-नवाजुद्दीन सिद्दीकी

उत्तर प्रदेश के मुज्जफरपुर जिले के बुढ़ाना गांव से बॉलीवुड में कदम रखनेवाले एक बेहद काबिल, सक्षम अभिनेता नवाजुदीन सिद्दीकी के करियर का ग्राफ किसी जादुई तिलिस्म की तरह आगे बढ़ा है, जो अविश्वसनीय लगता है। तकरीबन १२ वर्षों के संघर्ष के बाद उनकी किस्मत का सितारा बुलंद हुआ। फिलहाल, नवाजुद्दीन फिल्म ‘टीकू वेड्स शेरू’ में एक रोमांटिक कॉमिक किरदार निभा रहे हैं। पेश है, नवाजुद्दीन सिद्दीकी से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

• फिल्म ‘टीकू वेड्स शेरू’ साइन करने की क्या वजह रही?
जब मैंने ‘टीकू वेड्स शेरू’ की स्क्रिप्ट सुनी तो मुझे एहसास हुआ कि इस रोल के लिए मैं बेहद परफेक्ट हूं। यह एक रॉमकॉम-रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है।

• फिल्म में आपकी दुल्हन बनी अवनीत कौर आपसे उम्र में बहुत छोटी हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
इस बात पर कोई जजमेंट पास करना गलत ही होगा। क्या समाज में हम ऐसे दंपति नहीं देखते, जिनकी उम्र में बेहद फासला है। कई बार लव मैरिजेस में पति की उम्र ज्यादा तो कभी पत्नी की उम्र पति से अधिक होती है। यह जीवन की एक सच्चाई है, कोई परियों की कहानी नहीं, जहां पति-पत्नी सुंदर और उम्र में एक से होते हैं।

• सुना है आपने आपने घर में पेट्स रखने के बारे में सोचा है?
चंद महीने पहले मैंने वर्सोवा में एक बड़ा-सा घर लिया है। मुंबई मेरे लिए कभी अजनबी शहर था। रहने के लिए कोई घर नहीं था और मैं बतौर पेइंग गेस्ट रहता था। कई मुश्किलों से गुजरते और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए घर लेने का आर्थिक इंतजाम पूरा हुआ और मैंने अपना मनचाहा घर खरीदा। घर छोटा हो या बड़ा, घर की सुरक्षा निहायत जरूरी होती है। इसलिए मैंने सोचा की घर की सेफ्टी के लिए जर्मन शेफर्ड कुत्ते पाल लूं। अकेलेपन में कुत्ते अपनों की तरह साथ देते हैं और अजनबियों से घर के मालिक को बचाते हैं। यही वजह है मैंने पेट्स पालने का निर्णय लिया है।

• क्या आपने कभी सोचा था कि आपको इस हद तक सफलता मिलेगी?
मेरी जिंदगी अजीबोगरीब दौर से गुजरी है। अब मैं सफल हूं लेकिन एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक ग्रुप में मुझे एक सीनियर एक्टर के साथ खड़े रहना था, लेकिन बगल के दूसरे एक्टर ने मुझे अपनी कोहनी से धक्का देना शुरू किया, ताकि वो पूरे प्रâेम में रहे और मैं साइड हो जाऊं। ऐसा कई मर्तबा हुआ और आखिरकार जब शॉट खत्म हुआ मैंने उससे पूछ लिया क्यों भाई, मुझे क्यों धक्का दे रहे थे? कहने का मतलब यही है कि संघर्ष के रास्ते पर न जाने क्या-क्या हादसे, क्या अफसाने होते रहते हैं। लोग कहते थे मैं गोरा चिट्टा नहीं, हैंडसम नहीं, लंबा-चौड़ा नहीं, जो हीरो की टिपिकल परिभाषा होती है, मैं उनमें नहीं हूं। दुनिया के लिए मैं व्यक्तित्व के हिसाब से खोटा सिक्का था, शायद मेरे भीतर अभिनय का खरा सिक्का था इसलिए आगे बढ़ता गया।

• आर्ट फिल्म और कमर्शियल फिल्म के हीरो का यह अंतर आपने वैâसे तय किया?
श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी जैसे मेकर्स आर्ट फिल्म बनाया करते थे। अब तो वह मामला रहा ही नहीं। समीक्षकों की राय में इसके क्या मायने हैं मैं नहीं जानता, लेकिन अब ऐसा है नहीं। वही मैंने कहा, कमर्शियल स्टार के जो प्लस पॉइंट्स होते हैं उसका अभाव था लेकिन ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों की सफलता मेरी कमर्शियल सक्सेस बढ़ती गई। मैंने बालासाहेब ठाकरे की जीवनी पर आधारित फिल्म ‘ठाकरे’ की, उसे भी सफलता मिली और लोगों को यकीन हुआ कि मैं बायोग्राफिकल फिल्मों को न्याय दे सकता हूं।

• खुद को एक्टर कहलाना पसंद करते हैं या स्टार?
मुझे लगता है मुझमें ग्लैमर जैसी कोई बात ही नहीं है। मैं खुद को एक्टर मानता हूं और एक्टर रहना ही पसंद करूंगा। एक्टर की लाइफ फिल्मों में निरंतर रहती है, स्टार की कम। स्टार की तरह मेरी पर्सनैलिटी करिश्माई नहीं है। सच्चाई को स्वीकारने में हर्ज क्या है?

• विश्व नशा मुक्ति दिन पर आप क्या कहना चाहेंगे?
अगर नशा काम का हो तो सोने पे सुहागा। लेकिन अगर नशा शराब, ड्रग्स का हो तो इससे बुरी बात क्या होगी? मुझसे सिगरेट का नशा नहीं छूट रहा। इसे छोड़ने की बड़ी कोशिश की।

अन्य समाचार