राजेश विक्रांत
किसी शायर की उपरोक्त पंक्तियां उन लोगों को आइना दिखाने के लिए उपयोग की जा सकती हैं, जो ये समझते हैं कि उर्दू अरब या फारस से आई है। यह मुस्लिमों या पाकिस्तान की भाषा है। पिछले दिनों मशहूर फिल्म गीतकार व शायर जावेद अख्तर ने पाकिस्तान के लाहौर में उर्दू के बहाने पूरे पाकिस्तान को धो डाला था। जावेद अख्तर का कहना था कि उर्दू हिंदुस्थान की भाषा है। पाकिस्तान के जन्म से भी कई सौ साल पहले से हिंदुस्थान में उर्दू का जन्म हो गया था। जावेद अख्तर के इस बयान की मिली जुली प्रतिक्रिया हुई थी। कुछ लोग हायतौबा मचाने लगे कि उर्दू पाकिस्तान की राजभाषा है जबकि विद्वान व्यक्तियों ने डंके की चोट पर कहा कि उर्दू हिंदुस्थान की भाषा है। वह यहीं जन्मी।
अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब कुछ नासमझों ने हल्दीराम भुजिया के पैकेट पर अरबी में लिखे कुछ शब्दों को उर्दू कहकर नाराजगी जताई थी, तब भी उर्दू का विरोध शुरू हो गया था। और तो और हल्दीराम के खिलाफ सोशल मीडिया पर हैशटैग भी चलाए गए।
उर्दू को मुसलमानों की भाषा या पाकिस्तान की भाषा कहने वाले जान लें कि हिंदी और उर्दू दो इंडो-आर्यन भाषाएं हैं, जो उत्तर भारत में संस्कृत से विकसित हुई थीं। उर्दू का जन्म १२ वीं सदी में उत्तर पश्चिम भारत की स्थानीय आम बोलचाल की भाषा के रूप में हुआ था। यह नई भाषा १२ वीं से १६ वीं शताब्दी के दौरान हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के गठजोड़ से जन्मी भाषा की एक नई नस्ल थी, जिसे गंगा-जमुनी तहजीब का एक मिला हुआ रूप माना गया। १९ वीं शताब्दी तक इन दोनों भाषाओं के बीच कोई खास अंतर नहीं था। इन्हें `हिंदुस्थानी’ कहा जाता था, जो संस्कृत से ली गई भाषा थी, लेकिन अरबी, फारसी और कुछ हद तक, तुर्क प्रभाव के कारण इन भाषाओं में थोड़ा बहुत अंतर आ गया। दोनों में प्रमुख अंतर यह है कि उर्दू अरबी लिपि में लिखी जाती है जबकि हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। उर्दू में हिंदी की तुलना में बहुत अधिक फारसी और अरबी के शब्दों का इस्तेमाल होता हैं।
यहां पर यह भी ध्यान रखें कि उर्दू के ७५ फीसदी शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत और प्राकृत भाषा से और सिर्फ २५ से ३० प्रतिशत फारसी और अरबी से हुई है। उर्दू भारत या हिंदुस्थान में अलग-अलग समय पर
हिंदवी, हिंदुस्तानी, जबान-ए-हिंद, हिंदवाई, जबान-ए-दिल्ली, रेख्ता, गुजरी, दक्खनी, जबान-ए-उर्दू और जबान-ए-उर्दू-ए-मुआला जैसे नामों से प्रचलित रही है।
देश में ब्रिटिश शासन के दौरान हिंदू और मुस्लिम दोनों अपनी व्यक्तिगत पहचान के प्रति अधिक जागरूक हो गए थे। हिंदुओं ने अपनी भाषा के कई इस्लामी प्रभावों से खुद को दूर करना शुरू कर दिया। उन्होंने देवनागरी लिपि का उपयोग करना शुरू कर दिया। हिंदी में प्रचलित कई अरबी और फारसी शब्दों को संस्कृत से प्राप्त शब्दों से बदल दिया गया। ठीक इसी तरह, मुसलमानों ने अरबी या फारसी के शब्दों के साथ `विशुद्ध रूप से’ संस्कृत मानी जाने वाली अधिकांश शब्दावली को अपनी भाषा में प्रयोग करना बंद कर दिया। यही वो समय था जब भाषा के लिए `उर्दू’ और `हिंदी’ नामों का विशेष रूप से उपयोग किया जाने लगा। तो आप अपने मन से यह गलतफहमी निकाल दीजिए कि उर्दू गैर मुल्क की जबान है। यह शुद्ध हिंदुस्थानी जबान वक्त के साथ फलती-फूलती गई। इसका विस्तार होता गया। इसे राजकाज में अपनाया गया तो इसी में हिंदी भाषा के बड़े कवियों ने भी अपनी रचनाएं लिखीं, मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने भी लिखा। बाद में बॉलीवुड ने भी इसे खूब अपनाया। क्योंकि एक शायर का कहना है-
मैं जब हिंदी से मिलती हूं, तो उर्दू साथ आती है
और जब उर्दू से मिलती हूं, तो हिंदी घर बुलाती है
मुझे दोनों ही प्यारी हैं, मैं दोनों की दुलारी हूं
इधर हिंदी-सी माई है, उधर उर्दू-सी खाला है
यह भी ध्यान दें कि वर्तमान समय में भारत में ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है, जो उर्दू को देवनागरी लिपि में पढ़ते हैं और इसी लिपि से उर्दू सीखते भी हैं। इसलिए उर्दू हिंदुस्थान की भाषा है और यह सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्थान में पैâली हुई संस्कृति की मिठास का एक रंग है, इंसानियत की अनुपम खुशबू है। यह हमारी अपनी हमारे देश की भाषा है।