मुख्यपृष्ठग्लैमर‘मैं वैसी नहीं हूं!'-हिमानी शिवपुरी

‘मैं वैसी नहीं हूं!’-हिमानी शिवपुरी

जाने-माने सिनेमैटोग्राफर ज्ञान शिवपुरी की पत्नी हिमानी शिवपुरी को दर्शक जानते और पहचानते हैं। हिमानी शिवपुरी एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने पॉजिटिव हो या निगेटिव दोनों किरदारों में उन्होंने खुद को प्रूव किया। २०२१ में कोविड से जूझने वाली हिमानी शिवपुरी की गाड़ी जीवन के अनेकों पड़ाव से होकर गुजरी है। पेश है, हिमानी शिवपुरी से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

करियर के इस मुकाम पर आप कैसा महसूस करती हैं?
मैं शुक्रगुजार हूं विधाता और फिल्म इंडस्ट्री की, जो मुझे अभिनय के ऑफर मिलते रहे। पिछले ४० सालों से मैं लगातार काम कर रही हूं। कभी दुष्ट बुआ, कभी ममतामयी मां, कभी कॉमेडी करती पत्नी हर तरह के किरदार मैंने निभाए। मुझे बेहद खुशी है कि दर्शकों ने मुझे बेतहाशा प्यार देने के साथ ही मुझे पसंद भी किया। मेरे दिल में अभी सिर्फ कृतज्ञता की भावना है। यह भाग्य हर किसी की किस्मत में नहीं होता। चाहे कितना भी उम्दा कलाकार हो अगर वो दर्शकों के सामने किरदारों के जरिए नहीं आता तो दर्शक उसे भूलने में देरी नहीं करते।

लेकिन जो कलाकार अभिनय के जरिए एक्टिव नहीं होते, उनके लिए सोशल मीडिया है न अपनी पहचान को जिंदा रखने के लिए?
यह बात तो है ही। मैंने अपना इंस्टाग्राम अकाउंट २०२२ से शुरू किया और इस अकाउंट से मैं भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने लगी हूं। अब लगता है सोशल मीडिया जरूरी बन चुका है, देश और दुनिया से जुड़े रहने के लिए। मेरा सोशल मीडिया अकाउंट हैक होने के बाद उसे वैâसे रिवाइव करना है, यह मैं नहीं जानती थी। अपने किसी जानकार व्यक्ति के माध्यम से मैंने इसे दोबारा शुरू करवाया। बस, यही एक झंझट है।

सोशल मीडिया पर आप क्या पोस्ट करती हैं?
मैं अपने वर्किंग स्टील्स डालती हूं, अपनी किसी फिल्म या टीवी शो से संबंधित जानकारी, फोटोज और कभी अपने ट्रैवलिंग के फोटोज भी शेयर करती हूं।

एक्टिंग को करियर बनाना कैसे संभव हुआ?
मैं देहरादून के स्कूल में पढ़ी हूं। इस स्कूल ने देश को कई बड़ी शख्सियतें दी हैं। अभिनय, नाटक, कविता, स्पोर्ट्स कई गतिविधियों के लिए यह स्कूल प्रख्यात है। मैं जब स्कूल में पढ़ रही थी, उस वक्त स्कूल में ही एक वर्कशॉप का आयोजन हुआ था, इस वर्कशॉप में हिस्सा लेने के लिए मुझे मेरे कल्चरल एक्टिविटीज के शिक्षकों ने प्रोत्साहित किया। जब मैंने एक सप्ताह चले इस वर्कशॉप में हिस्सा लिया, तब मुझे एहसास हुआ कि ये खुशियां तो जुनून पैदा करती हैं। मैंने मन ही मन एक्टिंग को अपने जीवन का अंग अर्थात करियर मान लिया। आगे चलकर मैंने दिल्ली के ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ (एनएसडी) में खुद को एनरोल किया और फिर धीरे-धीरे एक्टिंग को अपना जीवन मान लिया।

आपने अब तक पॉजिटिव और नेगेटिव सभी किरदार सफलतापूर्वक निभाए हैं। कौन से किरदार आपको सबसे ज्यादा रिलेटेबल लगे और क्यों?
यह कहना इतना आसान नहीं। अनगिनत किरदार मैंने नाटकों, टीवी शोज और फिल्मों के लिए निभाएं हैं। यकीन मानिए, वैसे कोई किरदार रिलेटेबल नहीं होता। हम हकीकत में जैसे होते हैं, क्या ऑनस्क्रीन हम जो किरदार निभाते है वैसे हूबहू होते हैं? नहीं? कोई एकाध गुण एक सा हो सकता है। किरदारों में कभी मैं बहुत बुरी औरत होती हूं, एक बात दस जगह पैâलाती हूं, अक्सर बुराई से पेश आती हूं। हकीकत में वैसी हूं नहीं। अमिताभ बच्चन को फिल्म ‘नमक हलाल’ में बातूनी दिखाया गया है लेकिन हकीकत में वो बहुत कम बोलते हैं। आपको याद होगा देवकी भौजाई के मेरे किरदार को स्क्रीन पर कितनी बड़बोली दिखाया गया था लेकिन मैं वैसी नहीं हूं।

विश्व सूखा दिवस पर आप क्या कहना चाहेंगी?
विश्व सूखा दिवस एक चिंता का विषय है, जिस पर लड़ना सभी देशों का सार्वजनिक दायित्व है।

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फेक आलिया