–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू, 12 अप्रैल। रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का कब्जा है। यह भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह है कि इस युद्धस्थल पर भारत व पाक की सेनाएं एक दूसरे के सामने वर्षों से डटी हैं। ३९ साल पहले आज ही के दिन यह जंग शुरू हुई थी। यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है, जहां होनेवाली जंग में लड़नेवाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता। इस व्यर्थ की लड़ाई के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है, जिसने अपने मानचित्रों में पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा को एलओसी के अंतिम छोर एनजे-९८४२ से सीधी रेखा खींचकर कराकोरम दर्रे तक दिखाना आरंभ किया था। इससे चिंतित भारत सरकार ने तब १२-१३ अप्रैल १९८४ की रात को ऑपरेशन मेघदूत आरंभ कर उस पाक सेना को इस हिमखंड से पीछे धकेलने का अभियान आरंभ किया, जिसके इरादे इस हिमखंड पर कब्जा कर नुब्रा घाटी के साथ ही लद्दाख पर कब्जा करना था।
हिंदुस्थानी सेना का ऑपरेशन मेघदूत नामक सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में पहली बार जंग शुरू हुई थी। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे। ये ऑपरेशन १९८४ से २००२ तक चला था यानी पूरे १८ साल तक। भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक-दूसरे के सामने डटी रहीं। इस ऑपरेशन में कई वीर अफसर और जवानों को शहादत स्वीकार करनी पड़ी थी, कारण स्पष्ट था। गोलाबारी के साथ-साथ मौसम की परिस्थिति उनके कदम रोक रही थी। कई बार इस ऑपरेशन को बंद करने की बात भी हुई और इरादा भी जगा था। लेकिन कमान हेडक्वार्टर से एक ही संदेश था, ‘जीत हासिल करना अन्यथा जिंदा वापस नहीं लौटना।’ और वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों ने इसी संदेश को स्वीकार किया था। इस ऑपरेशन में चीता हेलिकॉप्टरों ने अहम भूमिका निभाई थी। करीब ४०० बार उन्होंने उड़ानें भरकर और दुश्मन के तोपखाने से अपने आपको बचाते हुए जवानों और अफसरों को बंकर के करीब पहुंचाया था। इस लड़ाई का एक कड़वा और दिल दहला देनेवाला सच यह था कि २१,००० फुट की ऊंचाई पर शून्य से ६० डिग्री नीचे के तापमान में भारतीय जवानों ने तीन दिन भूखे रहकर फतह हासिल की थी और पाकिस्तानी बंकर में मोर्चा संभालने वाले ६ पाकिस्तानियों को मारने के बाद बचे हुए भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी स्टोव को जलाकर पाकिस्तानी चावल पकाकर पेट की भूख शांत की थी। अर्थात जीत भारत की हुई।
दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर ३९ सालों के कब्जे के दौरान २१ हजार फुट की ऊंचाई पर आज तक सिर्फ एक ही लड़ाई हुई है। यह लड़ाई दुनिया की अभी तक की पहली और आखिरी लड़ाई थी, जिसमें एक बंकर में बनी पोस्ट पर कब्जा जमाने के लिए जम्मू के ऑनरेरी वैâप्टन बाना सिंह को परमवीर चक्र दिया गया था और उस पोस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है। आज भारतीय सेना ७० किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, ३ प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है। इस अभियान में हिंदुस्थान के करीब एक हजार जवान शहीद हुए थे। ऑपरेशन मेघदूत के ३९ साल बाद आज भी विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जानेवाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं। हर रोज सरकार सियाचिन की हिफाजत पर करोड़ों रुपए खर्च आता है। यह उत्तर पश्चिम भारत में कराकोरम रेंज में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर ७६.४ किमी लंबा है और इसमें लगभग १०,००० वर्ग किमी वीरान मैदान शामिल हैं। सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है। ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती। चीन और पाकिस्तान का यह गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था। सबसे अहम यह कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है। इसलिए भारत सरकार कभी भी सियाचिन हिमंखड से अपनी फौज को हटाने के बारे में सोच भी नहीं सकती है क्योंकि पाकिस्तान भी इस क्षेत्र पर घात लगाए रहता है। नतीजतन, आज जबकि इस हिमखंड पर सीजफायर ने गोलाबारी की नियमित प्रक्रिया को तो रुकवा दिया गया है पर प्रकृति से जूझते हुए मौत के आगोश में जवान अभी भी सो रहे हैं, पाकिस्तान सेना हटाने को तैयार नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)