मुख्यपृष्ठनए समाचार९ साल में केंद्र सरकार नहीं बना पाई ठोस आधार...करोड़ों बेरोजगार!

९ साल में केंद्र सरकार नहीं बना पाई ठोस आधार…करोड़ों बेरोजगार!

  • देश में सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं कर रही हैं संघर्ष

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
२०२३ की जिस पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था ने ६.१ प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज की, उसी तिमाही के पहले महीने यानी जनवरी में देश में बेरोजगारी दर ७.१४ प्रतिशत थी। देश में मार्च में बेरोजगारी दर ७.८ प्रतिशत तो बीते अप्रैल माह में बढ़कर ८.११ प्रतिशत हो गई। बीते एक वर्ष में देश में औसत बेरोजगारी दर ७.६ प्रतिशत या उसके ऊपर रही। ये आंकड़े यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि विकास के आंकड़े सबको रोजगार देने में असफल साबित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि केंद्र की भाजपा सरकार ९ साल में रोजगार का कोई ठोस आधार बनाने में असफल रही। चूंकि, जीएसटी कर संग्रह वस्तुओं-सेवाओं की बिक्री और खरीद पर आधारित है। इसी दौर में विश्व की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष कर रही हैं। यूरोप और अमेरिका ऊंची मुद्रास्फीति से परेशान हैं और उनका महंगाई कंट्रोल करने का कोई तरीका काम करता दिखाई हीं पड़ रहा है।
बेहतर बताने की कोशिश में सत्यता नहीं
बता दें कि जिन आंकड़ों के आधार पर देश की अर्थव्यव्यवस्था को बेहतर बताने की कोशिश केंद्र की मोदी सरकार द्वारा की जा रही है, ये पूरी सत्यता नहीं बयां करते। ये आंकड़े संगठित क्षेत्र की उन बड़ी कंपनियों के होते हैं, जिनकी सूचना सरकार के पास उपलब्ध हो पाती है। इनमें देश की कुल कार्यशील क्षमता के केवल ६ प्रतिशत लोग ही काम करते हैं। हिंदुस्थान के असंगठित क्षेत्र में देश के लगभग ९४ प्रतिशत कामगार काम करते हैं, लेकिन इनका कोई आधिकारिक आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध ही नहीं है।
१९ करोड़ लोगों को काम की तलाश
चीन की तुलना में कम मशीनीकृत भारत में यह अनुपात केवल ४३ प्रतिशत के करीब है। ऐसे में माना जा सकता है कि भारत में लगभग २० प्रतिशत के करीब लोग ऐसे हैं जो काम कर सकते हैं, लेकिन उनके पास कोई काम नहीं है। एक अनुमान के अनुसार यह आंकड़ा १९ करोड़ के करीब है। अर्थव्यवस्था की यह तस्वीर भयावह है जिसका सच इन आंकड़ों में सामने आ गया। रिपोर्ट के अनुसार, १९ करोड़ लोग वे हैं, जिन्हें काम न मिलने के कारण अब उन्हें काम की तलाश करना ही छोड़ दिया है। इनका भार भी उसी कार्यबल पर है जो स्वयं छिपी हुई बेरोजगारी के शिकार हैं। इससे परिवार की आर्थिक स्थिति और ज्यादा खराब होती जा रही है।
संगठित-असंगठित क्षेत्र में भी अंतर
केंद्र सरकार की गलत नीतियों के चलते देश में ई कॉमर्स कंपनियों का बड़ा जाल दिखाई पड़ रहा है। लोग घर बैठे मोबाइल पर मोबाइल, कपड़े, मशीनों के साथ-साथ खाने-पीने का सामान तक ऑर्डर कर रहे हैं। जब तक ई कॉमर्स कंपनियां बाजार में नहीं थीं, लोगों को यही सामान खरीदने के लिए बाजार जाना पड़ता था। इससे छोटे-छोटे दुकानदारों को बिजनेस मिलता था। लेकिन अब यह पूरा बाजार शिफ्ट होकर ई कॉमर्स कंपनियों के पास चला गया है।

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