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कोविड में उद्धव जी ने कुटुंब प्रमुख जैसे महाराष्ट्र को संभाला-विट्ठल मोरे, नई मुंबई जिलाप्रमुख

दशहरा सम्मेलन में माननीय शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने मेरा सत्कार किया। जनवरी में विधानसभा के चुनाव थे। उद्धव जी ने नागपुर में मीटिंग ली इसी संदर्भ में। वहां पर मैं भी था। वे मेरे पास आए और मुझे बोले ‘विजयाचा शिलालेख लिहणार का? (जीत की शिलालेख लिखोगे क्या)? वह मेरे लिए जिंदगी का अनमोल तोहफा था।

उद्धव ठाकरे जी के बारे में सभी जानते हैं। जब सारी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी, तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य में कोरोना महामारी के संकट से निपटने की उपाय योजनाओं से सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। जब अन्य मुख्यमंत्रियों के हाथ-पांव फूले हुए थे, उद्धव जी ने एक अभिभावक, कुटुंब प्रमुख के तौर पर शांति, विनम्रता और दूरदर्शिता के साथ महाराष्ट्र को संभाला। उनके सुपुत्र व कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे ने अपनी टीम के साथ जिस तरह से महाराष्ट्र को संभाला, उसकी तारीफ पूरी दुनिया में हुई। मुझे याद है राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी फिल्म निर्माता पंकज शंकर का वो ट्वीट: ‘मुख्यमंत्री के विनम्र और सरल शब्द वाकई मायने रखते हैं। यह इस संकट के दौरान आपके विश्वास प्रणाली को आश्वस्त करता है। धन्यवाद।’
भाजपा की कट्टर समर्थक, जिनका मैं नाम नहीं लूंगा, ने कहा था, ‘वे बहुत दयालु हैं। वे लगातार हम सभी से कह रहे हैं कि घरेलू सहायकों, ड्राइवरों आदि के वेतन में कटौती न करें। वह संगठनों से अनुरोध कर रहे हैं कि वे अपने निचले दर्जे के कर्मचारियों को न निकालें और उन्हें कम से कम न्यूनतम वेतन दें। मैं सीएम की करुणा को महसूस कर सकती हूं। यह हमारे लिए नया है।’
पुलिस की कड़ाई को लेकर उन्होंने जो ट्वीट करवाया था उसकी बानगी देखिए, ‘अगर लोग जरूरी सामान के लिए बाहर निकल रहे हैं तो उनके साथ नरमी से पेश आएं और उन्हें बिना वजह बाहर न निकलने के लिए कहें। मैं पुलिस से कह रहा हूं कि हम लोगों को जीने से नहीं रोक रहे हैं, बस उनकी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव कर रहे हैं।’ २७ जुलाई १९९४ शिवसेना भवन में उद्धव साहेब ठाकरे के सुझाव पर मुझे विदर्भ के बुलढाणा जिला संपर्कप्रमुख के तौर पर नियुक्त किया गया। मेरे साथ-साथ ८-१० लोगों की नियुक्ति की गई, जिनमें अनंत गिते जी को रत्नागिरी, अरविंद सावंत जी को जलगांव का संपर्कप्रमुख नियुक्त किया गया था। उसी दोपहर को हमने आदरणीय बालासाहेब का आशीर्वाद लिया और अपने-अपने क्षेत्र की ओर रवाना हुए। हम ट्रेन में सफर कर रहे थे। मन में हल्की सी कसक इस बात की थी कि उद्धव साहेब ने मेरे उस निवेदन को हंसते हुए टाल दिया था कि मुझे नई मुंबई की जिम्मेदारी दी जाए। उन्होंने मुझे मुंबई से ६०० किलोमीटर दूर बुलढाणा भेज दिया।
अगले दिन आदेशानुसार अपने निर्धारित क्षेत्र में पहुंचा। वहां पर सिंदखेड छत्रपति शिवाजी महाराज की माताश्री जीजाबाई की जन्मस्थली है। उनके पिता थे लाखोजी राजा। वहां पर एक शिलालेख था, जिस पर माता जिजाऊ के तारुण्य का अश्लील भाषा में वर्णन था, जिसे लेकर स्थानीय मराठाओं में काफी रोष था। अगले दिन देवलगाव राजा की जिलास्तरीय मीटिंग में एक पत्रकार कुलकर्णी ने मुझसे कहा, ‘आप जैसे नेता मुंबई से आते हैं और बड़ी-बड़ी बातें कर के निकल जाते हैं।’ मैं समझ गया कि उनका इशारा किस तरफ था। मैंने वादा किया कि वह शिलालेख वहां से हट जाएगा। दो दिन बाद ‘सामना’ में बड़े-बड़े अक्षरों में जो छपा था, उसे देखकर मुझे समझ में आ गया कि उद्धव साहेब कितने दूरदर्शी हैं। राष्ट्रमाता जीजाबाई पर अश्लील टिप्पणी वाली शिलालेख तोड़े जाने वाली खबर छपी थी। दशहरा सम्मेलन में माननीय बालासाहेब ठाकरे ने मेरा सत्कार किया। जनवरी में विधानसभा के चुनाव थे। उद्धव जी ने नागपुर में मीटिंग ली इसी संदर्भ में। वहां पर मैं भी था। वे मेरे पास आए और मुझे बोले ‘विजयाचा शिलालेख लिहणार का? (जीत की शिलालेख लिखोगे क्या)? वह मेरे लिए जिंदगी का अनमोल तोहफा था। उन्होंने अपना विश्वास दर्शाया था। गंभीर से गंभीर विषय को हल्के-फुल्के ढंग से हैंडल करना उनके स्वभाव का एक महत्वपूर्ण पहलू है। उनका विश्वास आज भी हम पर बना हुआ है और हमारी निष्ठा हमेशा से उन पर एवं उनके साथ है। २०२१ में गुवाहाटी से एकनाथ शिंदे ने जब फोन कर मुझे अपने साथ शामिल होने के लिए कहा था उस वक्त भी मैंने यही कहा था कि मेरी श्रद्धा ‘मातोश्री’ के साथ है।

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