-भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मोनो को बचाने के प्रयास केवल दिखावटी रहे
सामना संवाददाता / मुंबई
२० साल पहले धूमधाम से चलाई गई मोनोरेल अब भंगार हो गई है। इसका कारण है कि भाजपा सरकार में इसे चलाने की इच्छा शक्ति है ही नहीं। असल में जैसे ही मोनोरेल की शुरुआत हुई, सरकार बदल गई थी। भाजपा के सत्ता में आने के बाद मोनो रेल के लिए जितनी भी घोषणाएं हुईं, सब दिखावटी रहीं। यही कारण है कि न तो मोनोरेल के नए रेक आए और न ही इसकी ट्रिप्स बढ़ाए जा सके। इससे मोनो रेल का घाटा बढ़ता गया। पैसे की कमी के चलते रख- रखाव प्रभावित हुआ और मोनो भंगार होती चली गई। कल एक बार फिर मोनो रेल खराब हो गई। इस कारण जो चंद यात्री इसकी सेवा का लाभ उठाते हैं, उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।
‘मौत’ की ओर बढ़ रही है मोनो!
सरकार ने मोनोरेल को सही तरीके से चलाने के लिए अनेक दिखावटी प्रयास किए, परंतु मोनोरेल प्रति माह २५ करोड़ रुपए के घाटे में चल रही है।
ा उपेक्षा धीरे-धीरे इसे ‘मौत’ की ओर धकेल रही है। असल में मोनो रेल एक फेल टेक्नोलॉजी है। इस कारण इसमें बार-बार खराबी आती है। दूसरा, इसे ऐसे रूट पर चलाया गया , जहां यात्रियों की संख्या कम थी। ऐसे में यह घाटे की ओर बढ़ती गई, जबकि इसके आसपास ही शुरू मुंबई मेट्रो यात्रियों की भारी भीड़ के साथ सफलतापूर्वक चल रही है।
बता दें कि मोनो रेल २०१४ में चेंबूर से वडाला और फिर वडाला से जैकब सर्कल तक दो चरणों में शुरू की गई थी। मोनो ने आरंभ से ही तकनीकी समस्याओं और वित्तीय घाटे का सामना किया है। मोनो की वर्तमान स्थिति चिंता का विषय है। एमएमआरडीए के प्रयासों के बावजूद तकनीकी समस्याओं और वित्तीय घाटे ने मोनोरेल की छवि को प्रभावित किया है। सरकार ने मोनोरेल को सही तरीके से चलाने के लिए अनेक दिखावटी प्रयास किए, परंतु मोनोरेल प्रति माह २५ करोड़ रुपए के घाटे में चल रही है। कल दोपहर वडाला-सात रास्ता मार्ग पर चलने वाली मोनोरेल में तकनीकी खराबी के कारण यात्रियों को बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ा। दोपहर १२ बजे के आस-पास हुई इस खराबी के कारण दो गाड़ियों को वडाला डिपो में लाना पड़ा, जिससे अन्य मोनोरेल सेवाओं पर भी असर पड़ा। एमएमआरडीए के अधिकारियों के अनुसार, मोनोरेल का एक ही ट्रैक होने के कारण अन्य गाड़ियों के समय पर भी इसका असर पड़ा। मोनोरेल की फ्रीक्वेंसी हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है। एक ट्रेन जाने के बाद यात्रियों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है, जिससे वे यात्रा के अन्य माध्यमों का सहारा लेते हैं। यात्रियों ने इस मुद्दे पर नाराजगी व्यक्त की है और एमएमआरडीए से फ्रीक्वेंसी बढ़ाने की मांग की है। मोनो के १० नए रेक मंगाए जाने थे ताकि फ्रीक्वेंसी बढ़ सके। पर ये अभी तक नहीं आए। एमएमआरडीए ने पिछले वर्ष के गणेशोत्सव के दौरान मोनोरेल यात्रियों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया था।