- दुनिया में १० फीसदी खुदकुशी कर रहे बच्चे
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई से सटे ठाणे के भायंदर में दो दिन पहले एक १३ साल के किशोर ने आत्महत्या कर लिया। इतना बड़ा कदम उठाने की वजह बहुत छोटी थी। उसका बड़ा भाई किशोर के बाल को कटवा दिया था, तभी से वह तनाव में था। इस तरह की कई घटनाएं महाराष्ट्र और हिंदुस्थान में सामने आ चुकी हैं, जिसमें मानसिक तनाव में बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं। इस संबंध में शहर के मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चे मानसिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। इंटरनेट, सोशल मीडिया, मोबाइल और पढ़ाई के दबाव के चलते वे परिवार और समाज से कटते जा रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार, दुनिया में करीब १० फीसदी बच्चे डिप्रेशन में आकर खुदकुशी कर रहे हैं, जो समाज के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सुवर्णा माने ने कहा कि आज के बच्चे मानसिक तौर पर मजबूत नहीं हैं। पढ़ाई-लिखाई के ज्यादा प्रेशर के चलते वे तनाव में रहते हैं। वे परिवार में रहकर भी अलग रहते हैं। माता-पिता भी उन्हें तनाव से निपटने के लिए तैयार नहीं करते। उन्होंने कहा कि परिवार, समाज, स्कूल और दोस्त सभी के सामूहिक प्रयास से ही इस तरह की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में कई बुराइयां हैं। आज की पढ़ाई कमर्शियल हो रही है। शिक्षक भी बच्चों को तनाव से नहीं उबार पा रहे हैं। बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने की बड़ी वजह उनका सोशल मीडिया की तरफ अत्याधिक लगाव और नशे की लत है। किशोर गांजा, सिगरेट और शराब जैसे मादक पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। बच्चों में खुदकुशी का एक यह भी कारण बनता जा रहा है।
परिस्थितियों से नहीं लड़ पा रहे बच्चे
मनोचिकित्सक डॉ. सुवर्णा माने के मुताबिक, मोबाइल, टेलीविजन और सोशल मीडिया के एडिक्शन ने किशोरों के मन पर बड़ा असर डाला है। कई मामलों में बच्चे कमरों में बंद कर दिए जाने, पैरेंट्स से मनमुटाव, मित्रों द्वारा हंसी का पात्र बनाए जाने, मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया की लत के चलते डिप्रेशन में आ रहे हैं। लिहाजा वह अपनी समस्याएं भी साझा नहीं कर पाते। इसके चलते बच्चे तनाव में आकर खुदकुशी करने जैसे गलत फैसले लेने लगे हैं।
इस तरह रखें ध्यान
डॉ. सुवर्णा माने ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। स्कूल-कॉलेजों में बच्चों की स्क्रीनिंग की जाए, जिससे यह पता चल सके कि कौन सा बच्चा डिप्रेशन में है? माता-पिता बच्चों पर नजर रखें। बहुत अच्छे तरीके से किसी बात के लिए मना करें। बच्चा डिप्रेशन में जा रहा है अथवा नहीं, इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए स्कूलों में अध्यापकों और अभिभावकों की भी काउंसलिंग की जानी चाहिए, ताकि डिप्रेशन के कारणों को पहचाना जा सके।
इन हरकतों को गंभीरता से लें
बच्चों में बात-बात में चिड़चिड़ापन दिखना, चुपचाप रहना, अकेले रहना, जिद करना, उदास रहना, अचानक खाना-पीना कम कर देना, अधिक भोजन से परेशानी होना आदि समस्याएं दिखाई देने पर उसे गंभीरता से लें। साथ ही जरूरत पड़ने पर उन्हें मनोचिकित्सक के पास लेकर जाएं।