हृदयनारायण दीक्षित
कर्नाटक सरकार ने पंथ मजहब आधारित आरक्षण निरस्त कर दिया है। विषय न्यायायिक विचार में है। देश की संविधान सभा ने अल्पसंख्यक मूल अधिकारों संबंधी समिति का गठन किया था। इसके सभापति सरदार पटेल बनाए गए थे। पटेल समिति ने आरक्षण संबंधी विषय पर गंभीर विचार-विमर्श किया। संविधान सभा में सरदार पटेल ने २५ मई, १९४९ के दिन समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। पटेल समिति के प्रतिवेदन पर (२५ व २६ मई, १९४९) गंभीर बहस हुई। संविधान सभा के सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि किसी प्रकार के रक्षण स्वस्थ राजनीतिक विकास के प्रतिकूल हैं। उनसे एक प्रकार की हीन भावना प्रकट होती है। श्रीमान जी, रक्षण ऐसा रक्षा उपाय है, जिससे वह वस्तु जिसकी रक्षा की जाती है, नष्ट हो जाती है। जहां तक अनुसूचित जातियों का संबंध है, हमें कोई शिकायत नहीं है।’ लेकिन जेड.एच. लारी ने मजहब आधारित मुस्लिम आरक्षण की पैरवी करते हुए कहा, ‘आपको अनुसूचित जाति के हितों की चिंता है। मुसलमानों के हितों की परवाह नहीं है। अनुसूचित जाति के स्थान आरक्षण सिद्धांत के साथ क्या आप यह भी नहीं स्वीकार करते कि आरक्षण राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नहीं है।’ इसका अर्थ यह हुआ कि स्थाई आरक्षण राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध होता है। आरक्षण एक विशेष अस्थाई उपाय है। जगत नारायण लाल ने कहा ‘हिंदुस्थान एक सेकुलर राज्य होगा। इसके बाद रक्षणों की कोई मांग नहीं होनी चाहिए। संविधान सभा के ज्यादातर सदस्यों ने अनुसूचित जाति के अस्थाई आरक्षण को सही बताया। संविधान सभा में काफी नोक-झोंक हुई। ब्रिटिश सत्ता ने मुसलमानों को विशेषाधिकार दिए थे। मुस्लिम लीग ने अलग कौम का नारा दिया। इसी आधार पर द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत चला। देश बंट गया। बावजूद इसके संविधान सभा में मजहब रिलीजन आधारित आरक्षण की मांग उठी। संविधान निर्माता द्विराष्ट्रवाद के राष्ट्र तोड़क सिद्धांत के भुक्तभोगी थे। आरक्षण पर अगस्त १९४७ व मई १९४९ को दो बार बहस हुई। पी.सी. देशमुख ने अगस्त १९४७ की बहस में कहा, ‘इतिहास में अल्पसंख्यक से अधिक क्रूरतापूर्ण और कोई शब्द नहीं है। अल्पसंख्यक रूपी शैतान के कारण ही देश बंट गया। एस. नागप्पा ने कहा, ‘अल्पसंख्यक बहुत समय से हमारी स्वतंत्रता का मार्ग रोके हुए थे।’ आर.के. सिंधवा ने कहा, ‘अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग इतिहास से मिट जाना चाहिए।’ एक मुस्लिम सदस्य बी. ओकर ने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की और कहा, ‘मुसलमान शक्तिशाली और संगठित हैं। यदि उन्हें महसूस हुआ कि उनकी आवाज नहीं सुनी गई, तो वे उद्दंड हो सकते हैं। विधिवेत्ता एम.ए. आयंगर ने कहा, ‘मेरा खयाल था कि पाकिस्तान प्राप्त कर लेने के बाद मेरे मुस्लिम मित्र अपना व्यवहार बदल लेंगे।’ आयंगर ने तुर्की के अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए बनाए गए संधि पत्र (१९२३) का हवाला दिया, ‘गैर मुसलमान तुर्की नागरिक भी मुसलमानों के समान ही नागरिक व राजनैतिक अधिकारों का उपभोग करेंगे। तुर्की के बहुसंख्यकों, अल्पसंख्यकों के अधिकार एक समान थे। लेकिन हिंदुस्थान में अल्पसंख्यक विशेषाधिकार मांग रहे थे। आयंगर ने कहा, ‘मैं अल्पसंख्यक शब्द ही नहीं पसंद करता।‘ २५ व २६ मई, १९४९ को हुई बहस में सभा ने मजहबी आरक्षण को गलत बताया। मोहम्मद इस्माइल ने मजहबी मुस्लिम आरक्षण पर पुनर्विचार की मांग की। संविधान सभा के उपाध्यक्ष एच.सी. मुखर्जी ने कहा, ‘यदि हम एक राष्ट्र चाहते हैं तो हम मजहब के आधार पर अल्पसंख्यक को मान्यता नहीं दे सकते।’ तजम्मुल हुसैन ने कहा, ‘हम अल्पसंख्यक नहीं हैं। यह शब्द अंग्रेजों ने निकाला था। वे चले गए। अब इस शब्द को डिक्शनरी से हटा देना चाहिए। संविधान सभा में मौलाना हजरत मोहानी, तजम्मुल हुसैन और बेगम एजाज रसूल ने असांप्रदायिक राष्ट्र का पक्ष लिया। लेकिन कुछ मुस्लिम सदस्यों ने अल्पसंख्यक अस्मिता के बहाने मुसलमानों के लिए विशेष रक्षा कवच की मांग की। सबका उत्तर सरदार पटेल ने दिया, ‘आपके अनुसार आपका समाज सुसंगठित है और अल्पमत मजबूत है। तो आप विशेष सुविधाएं क्यों मांगते हैं, जो अल्पमत देश का विभाजन करा सकता है। वह हरगिज अल्पमत नहीं हो सकता। आप स्वयं को अल्पसंख्यक क्यों मानते हैं? आप अतीत भूलिए। अगर आपको ऐसा असंभव लगता है तो आप अपने खयाल के मुताबिक सर्वोत्तम स्थान पर चले जाइए। पं. नेहरू ने कहा कि सभी वर्ग अपनी- अपनी विचार प्रणाली बनाकर गुट बना सकते हैं। लेकिन मजहब आधारित अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। मैं यहां तक कहता हूं कि जो रक्षण रह गए हों, वह भी समाप्त किए जाएं। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में अनुसूचित जाति के आरक्षण को हटाना सही नहीं रहेगा।’ संविधान निर्माता सांप्रदायिकता के विरुद्ध थे। अल्पसंख्यकवाद के विरुद्ध थे। वे भारतीय समाज के प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र का अंगभूत मानने में विश्वास रखते थे।
राष्ट्र से भिन्न कोई भी सामाजिक राजनैतिक अस्मिता सांप्रदायिकता है। गांधी जी खिलाफत आंदोलन के नेता थे। लेकिन कुछ मौलवी गांधी को नेता मानने के खिलाफ थे। पहले स्वतंत्रता दिवस के दिन हिंदुस्थान में उत्सव था। लेकिन देश विभाजन को लेकर लोग आहत भी थे। दारुल उलूम देवबंद के तत्कालीन कुलपति ने अपने भाषण में कहा, ‘हम पाकिस्तान को एक इस्लामी राज्य होने और हिंदुस्थान को मूल देश होने के नाते बधाई देते हैं। चिंता यह है कि जो मुसलमान अब हिंदुस्थान में रह गए हैं, उनके सामाजिक जीवन का क्या होगा।’ जिन्ना की मुस्लिम लीग मजहब आधारित अलगाववाद बढ़ा रही थी। लीग पाकिस्तान की मांग कर रही थी। गांधी जी ने पाकिस्तान की मांग वापस लेने के लिए जिन्ना को पत्र लिखा था। (१५-०९-१९४४) पूछा था कि मजहब के अलावा मुसलमान बाकी हिंदुस्थानियों से अलग राष्ट्र क्यों हैं? जिन्ना मुसलामानों को अलग राष्ट्र बता रहे थे। जिन्ना ने गांधी जी को जवाबी पत्र लिखा, ‘मुसलमान और हिंदू राष्ट्र किसी भी परिभाषा के अनुसार दो अलग-अलग कौमें हैं। हमारी संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, भाषा, साहित्य, कला और रीति नीति सब अलग है। हम किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर अलग राष्ट्र हैं।’ मजहब आधारित अलगाववाद के आधार पर ही देश बंट गया था।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)