हृदयनारायण दीक्षित
लखनऊ
उत्सव और उल्लास आनंद देते हैं। भारत ने २६ जनवरी १९५० को पहला गणतंत्र दिवस मनाया था। संविधान २६ जनवरी के दिन पूरा प्रवर्तित हुआ। भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक (२६ नवंबर १९४९) में डॉ.आंबेडकर के प्रस्ताव पर मतदान हुआ और संविधान पारित हो गया। भूमि, जन और शासन से ही राष्ट्र नहीं बनते। जाति, मजहब, राजनीति और क्षेत्रीय आग्रह समाज तोड़ते हैं, संस्कृति ही इन्हें जोड़ती है। संविधान निर्माता सनातन सांस्कृतिक क्षमता से परिचित थे। उन्होंने संविधान की हस्तलिखित प्रति में सांस्कृतिक राष्ट्रभाव वाले २३ चित्र सम्मिलित किए। मुखपृष्ठ पर राम और कृष्ण तथा भाग १ में सिंधु सभ्यता की स्मृति वाले मोहनजोदड़ो काल की मोहरों के चित्र हैं। भाग-२ नागरिकता वाले अंश में वैदिक काल के गुरुकुल आश्रम का दिव्य चित्र है। भाग-३ मौलिक अधिकार वाले पृष्ठ पर श्रीराम की लंका विजय व भाग-४ राज्य के नीति निर्देशक तत्वों वाले पन्ने पर कृष्ण-अर्जुन उपदेश वाले चित्र हैं। भाग-५ में महात्मा बुद्ध, भाग-६ में स्वामी महावीर और भाग-७ में सम्राट अशोक के चित्र हैं। भाग-८ में गुप्त काल, भाग-९ में विक्रमादित्य, भाग-१० में नालंदा विश्वविद्यालय, भाग-११ में उड़ीसा का स्थापत्य, भाग-१२ में नटराज, भाग-१३ में भगीरथ द्वारा गंगावतरण, भाग-१४ में मुगलकालीन स्थापत्य, भाग-१५ में शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह, भाग-१६ में महारानी लक्ष्मीबाई, भाग-१७ व १८ में क्रमश: गांधी जी की दांडी यात्रा व नोआखाली दंगों में शांति मार्च, भाग-१९ में नेताजी सुभाष, भाग २० में हिमालय, भाग-२१ में रेगिस्तानी क्षेत्र व भाग-२३ में लहराते हिंद महासागर की चित्रावली है।
संविधान पारण के बाद अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि अब सदस्यों को संविधान की प्रतियों पर हस्ताक्षर करने हैं एक हस्तलिखित अंग्रेजी की प्रति है, इस पर कलाकारों ने चित्र अंकित किए हैं, दूसरी छपी हुई अंग्रेजी व तीसरी हस्तलिखित हिंदी की।’ (संविधानसभा कार्यवाही खंड १२ पृष्ठ ४२६१) भारतीय संस्कृति और इतिहास के छात्रों के लिए संविधान की चित्रमय प्रति प्रेरक हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा के आखिरी भाषण (२६.११.१९४९) में कहा, ‘संविधान किसी बात के लिए उपबंध करे या न करे, देश का कल्याण उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा, जो देश पर शासन करेंगे।’ उन्होंने दो बातों को लेकर खेद व्यक्त किया, ‘केवल दो खेद की बाते हैं। मैं विधायिका के सदस्यों के लिए कुछ योग्यताएं निर्धारित करना पसंद करता। असंगत है कि विधि के शासन में सहायकों के लिए हम उच्च अर्हता का आग्रह करें, लेकिन विधि निर्मिताओं के लिए निर्वाचन के अलावा कोई अर्हता न रखें। विधि निर्माताओं के लिए बौद्धिक उपकरण अपेक्षित हैं। सामर्थ्य व चरित्र बल भी। दूसरा खेद यह है कि हम अपना संविधान भारतीय भाषा में नहीं बना सके।’
संविधान सभा के आखिरी भाषण में डॉ. आंबेडकर ने भी प्राचीन भारतीय परंपरा की याद दिलाते हुए कहा था कि एक समय था जब भारत गणराज्यों से सुसज्जित था। यह बात नहीं है कि भारत पहले संसदीय प्रक्रिया से अपरिचित था। भारत संसदीय प्रक्रिया से पहले भी सुपरिचित था। यहां वैदिक काल से ही एक परिपूर्ण गणव्यवस्था थी। गणेश गणपति थे। प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख ऋग्वेद में ‘गणांना त्वां गणपतिं’ आया है। मार्क्सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है कि गण पुराना शब्द है, यह पुरानी समाज व्यवस्था का द्योतक है। गण और जन ऋग्वेद में पारिभाषिक हो गए हैं। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने भीष्म से आदर्श गणतंत्र के सूत्र पूछे। भीष्म ने (शांतिपर्व: १०७.१४) बताया कि भेदभाव से ही गण नष्ट होते हैं। उन्हें संघबद्ध रहना चाहिए। गणतंत्र के लिए बाहरी की तुलना में आंतरिक संकट बड़ा होता है-‘आभ्यंतरं रक्ष्यमसा बाह्यतो भयम्’ बाह्य उतना बड़ा नहीं।
संविधान निर्माताओं ने संसदीय जनतंत्र अपनाया है। उन्होंने अनेक संवैधानिक संस्थाओं का प्राविधान किया है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत लागू है। निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाएं सारी दुनिया में प्रतिष्ठित हैं। संसद विधायी और संविधायी अधिकारों से लैस है। संवैधानिक संस्थाएं आदरणीय हैं।
संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की प्रतिभूित है, लेकिन इसी के साथ संविधान के अनुच्छेद-५१क में मूल कर्तव्यों की भी सूची है। इस सूची में कहा गया है कि प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है कि वह संविधान के पालन के साथ उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज व राष्ट्रगान का आदर करें। स्वाधीनता के राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों को हृदय में संजोये और उनका पालन करें। राष्ट्र की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे। किसी भी तरह के भेदभाव से परे भारत के सभी लोगों में समरसता और भाईचारा की भावना का विकास करे। पर्यावरण की रक्षा करे, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करे। हिंसा से दूर रहें। मूल कर्तव्यों की यह सूची भारत के लोक जीवन को आनंदित करने का दस्तावेज है। संविधान दिवस के अवसर पर इसका पा’ और पुनर्पा’ बहुत जरूरी है।
संविधान की उद्देशिका स्मणीय है। उद्देशिका में ‘हम भारत के लोग’ शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। भारत की जनता के लिए किसी जाति संप्रदाय या वर्ग शब्द का प्रयोग नहीं है। हम सबकी पहचान भारत है। ‘हम सब भारत के लोग’ हैं। उद्देशिका में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त कराने के लिए संकल्प है। इनमें प्रतिष्ठा और अवसर की समता है। उद्देशिका एक तरह से हमारी राजव्यवस्था का स्वप्न है। यह बारंबार विचारणीय और माननीय है। संविधान भारत का राजधर्म है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)