मुख्यपृष्ठस्तंभशिलालेख : प्राकृतिक नियम शाश्वत होते हैं!

शिलालेख : प्राकृतिक नियम शाश्वत होते हैं!

हृदयनारायण दीक्षित
राज संचालन की अनेक संस्थाएं हैं। सभी संस्थाएं संविधान से निकली हैं। संविधान राजव्यवस्था धारक है। विधायिका विधि निर्मात्री है। संविधान संशोधन भी करती है। न्यायपालिका ने न्यायायिक निर्वचन में कुछ विषयों को संविधान का मूल ढांचा बताया है। मूल ढांचे में संशोधन नहीं होता। ठीक इसी प्रकार हिंदुत्व है। हिंदुत्व हिंदुस्थानी समाज व्यवस्था का मूलभूत तत्व है। हिंदुत्व हिंदुस्थान की प्रकृति है और संस्कृति भी। यह हिंदुस्थान के लोगों की जीवनशैली है। इस जीवन शैली में सभी विश्वासों के प्रति आदर भाव है। संविधान के आधारिक लक्षणों की तरह इसमें भी संशोधन नहीं हो सकता। हिंदुत्व समग्र दार्शनिक अनुभूति है। लेकिन हिंदुस्थानी राजनीति के आख्यान में हिंदुत्व के अनेक चेहरे हैं। उग्र हिंदुत्व, मुलायम (सॉफ्ट) हिंदुत्व, सांप्रदायिक हिंदुत्व आदि अनेक विशेषण मूल हिंदुत्व पर आक्रामक हैं। वे इसे वाद या विचार की तरह निशाने पर लेते हैं। अंग्रेजी भाषांतर में हिंदुत्व को हिंदुइज्म कहा जाता है। इज्म विचार होता है। विचार ‘वाद‘ होता है। वाद का प्रतिवाद भी होता है। पूंजीवाद – कैप्टलिज्म है। समाजवाद सोशलिज्म है। इसी तरह कम्युनिज्म है। अंग्रेजी का हिंदुइज्म भी हिंदूवाद का अर्थ देता है। लेकिन हिंदुत्व, हिंदूवाद नहीं है। हिंदुत्व समग्र मानवीय अनुभूति है। प्रश्नाकुल आस्तिकता हिंदू जीवन की मूल प्रकृति है। हिंदू होना हिंदुता या हिंदुत्व है।
हिंदू धर्म वैदिक धर्म का विकास है। हिंदू, हिंदुस्थानी जीवन शैली है। इस्लाम और ईसाईयत पंथ है। वे हिंदुस्थान के बाहर विकसित हुए। हिंदुस्थान में उनका परिचय हिंदू धर्म से हुआ। हिंदुओं के लिए भी इस्लाम व ईसाईयत सर्वथा नए विश्वास थे। हिंदुस्थान जनता के एक बड़े हिस्से ने इस्लाम व ईसाईयत को भी धर्म कहा। लेकिन हिंदू धर्म ईसाईयत या इस्लामी पंथिक विश्वास नहीं है। ईसाईयत और इस्लाम में एक ईश्वर, एक देवदूत या पैगंबर और एक पवित्र पुस्तक के प्रति विश्वास की धारणा है। हिंदू धर्म किसी एक पवित्र पुस्तक या देवदूत से बंधा नहीं है। हिंदुओं का कोई एक धर्म ग्रंथ नहीं है। कोई एक पैगंबर नहीं। कुछ विद्वान हिंदुस्थान में सभी धर्मों में समन्वय की बातें करते हैं। वे इस्लाम और ईसाईयत को भी धर्म कहते हैं। सच यह नहीं है। धर्म एक है। इसे सनातन धर्म भी कहते हैं। इसे वैदिक धर्म भी कहते हैं। हिंदुस्थान में धर्म का सतत् विकास हुआ है। यहां धार्मिक विकास की यात्रा मजेदार है। यहां दर्शन और वैज्ञानिक विवेक का जन्म पहले हुआ। धर्म संहिता का बाद में। जिज्ञासा और प्रश्नाकुलता हिंदू धर्म व दर्शन की विशेषता है। यहां साधारण हिंदू भी आस्था पर प्रश्न करते हैं और संवाद भी। प्रश्नाकुलता हिंदू समाज कि बड़ी पूंजी है। वैदिक पूर्वजों ने प्रकृति का गहन अध्ययन किया था।
प्रकृति शाश्वत है। प्राकृतिक नियम शाश्वत होते हैं। प्रकृति सुंदर है। आनंदरस से भरी-पूरी है। यह सत्य है। शिव है। कल्याणकारी है। इसमें शिव और सुंदर का संवर्द्धन हम सबका कर्तव्य है। ब्रह्मांड विराट है। यह ज्ञान पूर्ण संरचना है। यह प्रतिपल सृजनशील है। नया आता है। विहंसता है। शिशु होता है। अरुण होता है। तरुण होता है। सूर्य आते हैं, चंद्र आते हैं। नदियां नित्य नई जलराशि लेकर प्रवाहमान रहती हैं। गृह नक्षत्र सुनिश्चित नियम में गतिशील रहते हैं। प्रकृति के गोचर प्रपंच नियमों में गति करते हैं। सूर्य का उगना और ऊषा का मुदित मन खिलना नियमों में है। चंद्र का उगना, बढ़ना, बढ़ते हुए पूर्णिमा होना और घटते हुए अमावस्या होना नियम बंधन में है। वनस्पतियों का उगना, पौध बनना, कली खिलना, फूल होना और बीज होना भी सुसंगत नियमों में है।
वैदिक ऋषियों ने प्रकृति के संविधान को ‘ऋत‘ कहा है। ऋत वैज्ञानिक अनुभूति है। पूर्वजों ने प्रकृति की शक्तियों को अनेक देवनाम दिए है। इंद्र, अग्नि, पृथ्वी, पर्जन्य, मरुत, रूद्र आदि अनेक वैदिक देवता हैं। वरुण प्राकृतिक नियमों के संरक्षक – ऋताव हैं। ऋत प्रकृति के सभी प्रपंचों की नियम संहिता है। देवता भी नियम पालन करते हैं। मरुत वायु देव हैं। वे भी नियमानुसार गतिशील ऋतजाता है (ऋ०३-१५-११) अग्नि ऋतस्य क्षत्ता हैं (ऋ० ६-१३-२)। हिंदू देवतंत्र में किसी भी शक्तिशाली मनुष्य या देवता को नियम पालन न करने की छूट नहीं है। ऋत के संरक्षक शक्तिशाली वरुण को भी नहीं। ऋग्वेद के अनुसार धरती और आकाश वरुण के नियम से धारण किए गए हैं – वरुणस्य धर्मणा(६-७०-१)। ऋत नियमों का धारण करना धर्म है। बताते हैं कि शक्तिशाली वरुण ने सूर्य का मार्ग निर्धारित किया है। यह है ऋत नियम। सूर्य ने यह नियम पालन किया। यह हुआ सूर्य का धर्म। वैदिक काल के बाद ऋत और धर्म एक ही अर्थ में कहे जाने लगे। ऋत मार्गदर्शी है। इसके अनुसार कर्म करना धर्म है। विष्णु बड़े देवता हैं। उन्होंने तीन पग चलके पूरी धरती नाप ली। ऋग्वेद के अनुसार वे धर्म धारण करते हुए तीन पग चले। सूर्य, सविता प्रकाश और ऊर्जा के देवता हैं। वे भी द्युलोक, अंतरिक्ष और पृथ्वी को धर्मानुसार प्रकाश से भरते हैं। (४-५३-३) प्रजापति सत्यधर्मा है (१०-१२१-९) सूर्य भी सत्यधर्मा है। प्रकृति की सभी शक्तियां ऋतबद्ध धर्म आचरण करती हैं। इसलिए मनुष्य का आचरण भी ऋतबद्ध नियमबद्ध होना चाहिए। सुख आनंद का आधार सत्य है। सत्य नित्य है। झूठ अनित्य है। सत्य बोलना धर्म है। वैदिक काल से ही झूठ के लिए ‘अनृत‘ शब्द प्रयुक्त होता रहा है। ऋत सत्य है। अनृत झूठ है। पूर्वजों ने मानव समाज के लिए भी नियमों का विकास किया। देशकाल के अनुसार इसमें नया जुड़ता रहा है। काल बाह्य छूटता रहा है। इसी आचार संहिता का नाम धर्म पड़ा। हिंदू धर्म सतत् विकासशील है। हिंदू ईश्वर को भी मानने या न मानने के लिए स्वतंत्र है। बृहदारण्यक उपनिषद् (२-५-११) में कहते हैं, ‘धर्म सभी भूतों का मधु है। समस्त भूत इस धर्म के मधु हैं।’ इसी मधु का नाम हिंदुत्व है।
धर्म को फिर से व्यवस्थित करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है। हिंदू मन पूरे विश्व को परिवार मानता है। प्रकृति के अंश हैं हम सब। प्रकृति में रहते हैं। इसी के अंगभूत घटक हैं। प्रकृति से हमारे व्यवहार की आत्मीयता भी हिंदुत्व है। हिंदुत्व धर्म संपूर्णता के प्रति हमारा सत्यनिष्ठ प्रेमपूर्ण आचरण है। कठोपनिषद् में नचिकेता और यम के बीच प्रश्नोत्तर हैं। यम ने उसे सत्यधृति कहा है। नचिकेता ने यम से पूछा, ‘जो धर्म से पृथक है, अधर्म से पृथक है, भूत भविष्य से भी पृथक है, कृपा करके आप मुझे वही बताइए।‘ यहां धर्म राष्ट्र जीवन की आचार संहिता है। इस आचार संहिता का मूल केंद्र हिंदुत्व है। नचिकेता धर्म अधर्म और देशकाल – भूत, भविष्य से परे संपूर्ण सत्य का जिज्ञासु है। ऐसी जिज्ञासा हिंदुत्व में ही संभव है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के
पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)

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