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इनसाइड स्टोरी: सारनाथ और श्रावस्ती बनने की प्रतीक्षा में खंडहर में तब्दील `केशपुर’! गढ़ा में महात्मा बुद्ध ने किया था छह माह प्रवास. केंद्र और यूपी सरकार कर रही है उपेक्षा

विक्रम सिंह

`तुम लोग स्वयं ये जानो कि ये बातें बुरी हैं, इन पर चलने से अहित होगा तो उन्हें छोड़ दो। जब ये जानो कि ये बातें अच्छी हैं इन पर चलने से हित होगा तो उन्हें ग्रहण कर लो।’ ये शब्द भगवान बुद्ध के हैं, जो उन्होंने बौद्धकालीन गणराज्य केशपुर यानी वर्तमान सुलतानपुर जिले के कलामवंशीय शासकों को उपदेश देते समय कहे थे। सुनहरे अतीत की गाथाएं समेटे हुए यह स्थल आज भी खंडहर के रूप में विद्यमान है। दशकों से चल रही इसकी जीर्णोद्धार की कोशिशें बेनतीजा हैं। केंद्र एवं उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चीजों और जगहों को सहेजने और विकास करने की बात कर रही है। लेकिन खंडहर में तब्दील हो चुका केशपुर उपेक्षा का शिकार है।
इतिहास की किताबों व बौद्ध धर्म ग्रंथों में यूं तो केशपुर के महत्व को कौशांबी, सारनाथ, श्रावस्ती या फिर कुशीनगर से कमतर नहीं आंका गया है पर, इनकी स्थिति में आज जमीन-आसमान का अंतर है। अन्य स्थल जहां देश-विदेश में बौद्ध धर्म स्थल के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके हैं, वहीं केशपुर के खंडहरों में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ है। हर्ष के काल में भारत यात्रा पर निकले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी केशपुर में प्रवास किया था और अपने यात्रा विवरण में इसके महत्व को इंगित किया। फिर भी यह महत्वपूर्ण स्थल वक्त की मार से बच नहीं पाया है। सुलतानपुर जिला मुख्यालय से पंद्रह किलोमीटर के फासले पर गढ़ा (कुड़वार) गांव में इसके भग्नावशेष ही सुनहरे अतीत की दास्तां बताने को शेष रह गए हैं। सन १९८५ में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को केशपुर के महत्व को जानने के लिए लगाया। केंद्रीय सांस्कृतिक सचिव पुपुल जयकर के निर्देशन में खुदाई हुई और पुरातत्व महकमे की रिपोर्ट भी सकारात्मक रही। इस स्थल पर केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने चौकी स्थापित की, लेकिन इस स्थल के जीर्णोद्धार के सारे प्रयास बस यहीं आकर ठहर गए।
हालांकि, २००९ में यूपी की तत्कालीन बसपा सरकार को अलबत्ता केशपुर की याद आई। तत्कालीन पर्यटन राज्यमंत्री विनोद सिंह ने अफसरों के साथ इस स्थल का निरीक्षण किया। उन्होंने स्थल के जीर्णोद्धार के लिए एक प्रयास किया। केंद्र व प्रदेश के जिम्मेदार उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट प्रेषित की गई। पर्यटन विकास की व्यापक संभावनाएं भी जताई गर्ईं, लेकिन विकास का पहिया नहीं घूमा। सब कुछ जस का तस रह गया। …और फिर सारे प्रयास पुन: निष्फल होकर रह गए। आज भी केशपुर के बियावान खंडहरों में तथागत के संदेश गूंज रहे हैं। इसे अब भी है तारनहार का इंतजार..।

म्यांमार के राष्ट्रपति भी देख चुके हैं गढ़ा के खंडहर
यूं तो केंद्र और प्रदेश की सरकारें अपनी पर्यटन नीति के जरिए कागज पर विकास का लंबा खाका खींचती रहती हैं लेकिन `गढ़ा’ की उपेक्षा समझ से परे है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बौद्ध अनुयायियों की बड़ी तादाद है, जो हिंदुस्थान में भगवान बुद्ध से जुड़े धर्मस्थलों पर विकास के लिए स्वयं हजारों करोड़ रुपए खर्च करती रहती है। सारनाथ, कौशांबी, कुशीनगर और श्रावस्ती इसकी नजीर हैं। इसके बावजूद केशपुर (गढ़ा) बौद्ध परिपथ से नहीं जुड़ सका है, जबकि बौद्ध अनुयायी इसकी दशकों से मांग करते आ रहे हैं। म्यांमार के राष्ट्रपति भी गढ़ा के खंडहरों को देखने आ चुके हैं। यहां पर अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का भी आयोजन हो चुका है।

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