मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाप्रेरक प्रसंग: वृक्ष को नमन

प्रेरक प्रसंग: वृक्ष को नमन

एक दिन महात्मा बुद्ध एक वृक्ष को नमन कर रहे थे। दूर खड़े एक भिक्षु ने देखा, तो उसे कुछ हैरानी हुई। वह बुद्ध के पास पहुंचा और पूछा कि भंते! आपने इस वृक्ष को नमन क्यों किया? भिक्षु की बातें सुनकर बुद्ध ने उससे प्रति प्रश्न किया कि क्या इस वृक्ष को मेरे नमस्कार करने से कुछ अनहोनी हो गई? बुद्ध का उत्तर सुनकर शिष्य बोला कि नहीं-नहीं भगवन! ऐसी बात नहीं, किंतु मुझे यह देखकर थोड़ी हैरानी अवश्य हुई है कि आप जैसा ज्ञानी महापुरुष इस वृक्ष को नमस्कार क्यों कर रहा है, जबकि यह न तो आपकी किसी बात का उत्तर दे सकता है और न ही आपके नमन करने पर अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त कर सकता है?
भिक्षु की बातें सुनकर बुद्ध मुस्कराए और कहा कि वत्स! तुम्हारा सोचना गलत है। वृक्ष भले बोलकर उत्तर न दे सकता हो, किंतु जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक भाषा होती है, उसी प्रकार प्रकृति और वृक्षों की भी अलग भाषा होती है। अपना सम्मान होने पर ये झूमकर प्रसन्नता और कृतज्ञता, दोनों व्यक्त करते हैं। इस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने साधना की, इसकी घनी पत्तियों ने मुझे शीतलता प्रदान की, चिलचिलाती धूप, वर्षा से मेरा बचाव किया। प्रत्येक पल इसने मेरी सुरक्षा की। इसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मेरा परम कर्तव्य है। प्रत्येक जीव को प्रकृति का कृतज्ञ होना चाहिए। अब तुम इस वृक्ष की ओर देखो, इसने मेरी कृतज्ञता, मेरे धन्यवाद को किस आह्लाद के साथ ग्रहण किया है। यह झूमकर मुझे बता रहा है कि आगे भी यह प्रत्येक मानव की हरसंभव सेवा करता रहेगा। बुद्ध की बात पर शिष्य ने वृक्ष को नए आलोक में देखा, तब उसे भी अनुभव हुआ कि उसकी झूमती हुई पत्तियां, शाखाएं व फूल मन को एक अद्भुत शांति प्रदान कर रहे हैं। यह देखकर शिष्य स्वतः वृक्ष के सम्मान में झुक गया।
संकलन: आर.डी.अग्रवाल “प्रेमी”

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