मुख्यपृष्ठस्तंभमध्यांतर: सिंधिया को लेकर अधर में लटकी भाजपा, अंदरुनी कलह चरम पर!

मध्यांतर: सिंधिया को लेकर अधर में लटकी भाजपा, अंदरुनी कलह चरम पर!

प्रमोद भार्गव

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उम्रदराज जरूर हैं, लेकिन न तो उनकी जमीन पर ताकत कम दिखाई देती है और न ही वे स्पष्टवादिता के लिए मुंह छिपाते हैं। हाल ही में उन्होंने अशोकनगर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए गुस्से के लहजे में कहा कि यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में आने की कोशिश करते हैं तो वे उनका कांग्रेस में प्रवेश पर कड़ा विरोध जताएंगे। हालांकि, उन्होंने सिंधिया के बारे में कहा कि कांग्रेस में रहते हुए उनसे उम्मीदें बहुत थीं, वे महनत भी बहुत करते थे। किंतु यह उम्मीद कतई नहीं थी कि वे पार्टी छोड़ने की दगाबाजी करेंगे। हालांकि, इस घटनाक्रम के दौरान जो खबरें चर्चा में आर्इं, उनसे जानकारी मिली थी कि उन्हें दल-बदल का बड़ा ऑफर मिला है, जब यह सौदा हो रहा था, तब मुझे लोगों ने बताया भी था, इसके बावजूद भी मुझे यह विश्वास नहीं हुआ था कि सिंधिया अपने समर्थक विधायकों को लेकर भाजपा में चले जाएंगे। उनकी यह नाराजगी हो सकती है कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। लेकिन विधायक दल का समर्थन कमलनाथ के साथ था, ऐसे में उन्हें कैसे मुख्यमंत्री बनाया जा सकता था? इस हकीकत की जानकारी इस तथ्य से भी मिलती है कि जब उन्होंने पार्टी छोड़ी, तब ११४ विधायकों में से मात्र १७ विधायक उनके साथ गए थे, बाद में ७ विधायक और उनके साथ हो लिए थे। इससे पता चलता है कि बहुमत उनके साथ नहीं था। दरअसल, सिंह से यह प्रश्न इसलिए पूछा गया था क्योंकि सिंधिया की भाजपा छोड़ कांग्रेस में जाने की अटकलें जोर पकड़ रही हैं।
कांग्रेस में दिग्विजय सिंह एक मात्र ऐसे नेता हैं, जो न केवल भाजपा को आड़े हाथ लेने की सामर्थ्य रखते हैं, बल्कि भाजपा के दिग्गज नेताओं पर तथ्यात्मक निजी टिप्पणी करने की भी विकट और बेबाक क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि उन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि मैं जब मप्र का मुख्यमंत्री था, तब प्रदेश पर मात्र २३ हजार करोड़ रुपए का कर्जा था, लेकिन अब प्रदेश साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूबा है। पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। गरीबों के लिए हम मनरेगा योजना लेकर आए थे, लेकिन अब मनरेगा को इतना जटिल बना दिया गया है कि श्रमिक मजदूरी के लिए दूसरे क्षेत्रों और राज्यों में पलायन करने को विवश हैं। कई जिलों में नेट की गड़बड़ी के चलते लोगों को मजदूरी नहीं मिल पा रही है। इन कारणों के चलते भाजपा की स्थिति खराब है। दरअसल, जैसे-जैसे चुनाव निकट आ रहे हैं, सिंधिया को लेकर नाराजगी मूल भाजपाइयों में भी बढ़ती जा रही है। इसलिए भाजपा के जिम्मेदारों को सफाई देनी पड़ रही है कि यदि सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में न आए होते तो प्रदेश में भाजपा की सरकार ही नहीं बन पाती।
यहां तक की भाजपा में अंतरकलह इतनी बढ़ गई है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिग्गज मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत को अपने साथ बिठाकर नसीहत देनी पड़ी है। विधानसभा चुनाव के कुछ माह पहले बुंदेलखंड में छिड़े राजनीतिक घमासान की यह बड़ी खबर है। सागर संभाग के तीन मंत्रियों और नेताओं के बीच बढ़ रही खींचतान के चलते मुख्यमंत्री को तीनों मंत्रियों को भोपाल तलब करना पड़ा। मुख्यमंत्री आवास पर एक घंटे चली बैठक में तीनों मंत्रियों और अन्य विधायकों से हुई चर्चा में यह नसीहत देनी पड़ी कि सार्वजनिक बयानबाजी पार्टी के लिए बर्दाश्त से बाहर है। सभी तालमेल बिठा कर काम करें। चुनावी साल में यदि यही चलता रहा तो जनता आपको घर बिठा सकती है। दरअसल, मई महीने में यह शिकायत सामने आई कि जिला अध्यक्ष गौरव सिरोठिया, विधायक शैलेंद्र जैन और प्रदीप लारिया के साथ नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ऐसे लोगों को महत्व दे रहे हैं, जो उनके विरोधी हैं। जिले में सारे काम भूपेंद्र सिंह की अनुमति के बिना नहीं हो रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, जिससे अन्य प्रभावशाली नेताओं की छवि धूमिल हो जाए। खैर, मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से फिलहाल नाराजगी दब गई है, लेकिन यह कब फूट पड़े कुछ कहा नहीं जा सकता है। भाजपा के विरुद्ध सबसे ज्यादा असंतोष ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में दिखाई दे रहा है। ऐसे में दिग्विजय सिंह द्वारा ज्योतिरादित्य पर किया गया प्रहार आग में घी डालने का काम करने वाला है।
भाजपा करीब २० साल से प्रदेश की सत्ता में है, नतीजतन वर्तमान में जबरदस्त सत्ता विरोधी वातावरण का अनुभव कर रही है। इसलिए वह मानकर चल रही है कि इस बार मुकाबला कड़ा होनेवाला है। समाज के अनेक वर्गों के अलावा शिक्षित बेरोजगार युवा बड़ी संख्या में भाजपा से नाराज है। दूसरी तरफ राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से कांग्रेस कार्यकताओं में जुनून सवार हो गया है। युवा वोटबैंक का झुकाव कांग्रेस के पक्ष में बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए भाजपा सिंधिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की मंशा पाले हुए है। लेकिन ज्योतिरादित्य की खिलाफत पार्टी में ही लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है, इस असंतोष को समाप्त करना एकाएक असंभव लग रहा है। दरअसल, भाजपा में आने के बाद से लेकर अब तक सिंधिया रोजगार के सिलसिले में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए हैं, इसलिए यह भ्रम ही है कि सिंधिया का आकर्षण युवाओं में शेष है। इसलिए युवाओं पर उनका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। अलबत्ता उन्होंने नई नौकरियों की भर्ती, संविदा नियुक्तिओं का खात्मा और आउटसोर्स से भर्तियों पर प्रतिबंध के जो वादे किए थे, उन पर बोलना ही बंद कर दिया। युवाओं के खफा होने का यह बड़ा कारण है।
देश के महज तीन राज्यों में सिमटी कांग्रेस को मध्य प्रदेश में जीत की पूरी उम्मीद है। सिंधिया के भाजपा में जाने से कांग्रेस ग्वालियर-अंचल से लेकर पूरे प्रदेश में मजबूत दिखाई दे रही है। ऐसे में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जुगलबंदी कांग्रेस को मजबूती देने में लगी है। दूसरी तरफ सिंधिया मूल भाजपाइयों को अपने से जोड़ने में नाकाम रहे हैं। इसलिए चुनाव के समय सिंधिया समर्थक उम्मीदवारों को जबरदस्त भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है। इस भीतरघात में भाजपा के आला नेता भी अपने नुमाइंदों को उकसाते दिखाई देंगे। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद ग्वालियर अंचल में कांग्रेस एकजुट हुई है, इसका प्रमाण क्षेत्र के कार्यकर्ता और मतदाताओं ने नगर निगम चुनावों में दे भी दिया है। ग्वालियर में ५७ साल बाद कांग्रेस महापौर का चुनाव जीती और दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा क्षेत्र मुरैना में भी महापौर कांग्रेस ने बना लिया। भाजपा का मुकाबला सीधे कांग्रेस से होगा। इस स्थिति में सिंधिया को अपना प्रभाव परिणाम में बदलना मुश्किल होगा? क्योंकि इन तीन साल के भीतर चुनावी वैतरणी के समीकरण तेजी से बदल रहे हैं।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)

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