मुख्यपृष्ठस्तंभमध्यांतर : दिग्गजों के सामने दिग्गज! कांग्रेस ने ढूंढी भाजपा की काट

मध्यांतर : दिग्गजों के सामने दिग्गज! कांग्रेस ने ढूंढी भाजपा की काट

प्रमोद भार्गव
शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

मध्य प्रदेश कांग्रेस, लोकसभा चुनाव में दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारकर भाजपा के दिग्गज उम्मीदवारों को चुनौती देने की तैयारी में है। इस मकसद पूर्ति के लिए कांग्रेस नए चेहरों पर दांव लगा सकती है। कांग्रेस ने अभी तक प्रदेश की २९ लोकसभा सीटों में से १० पर ही प्रत्याशी घोषित किए हैं। खजुराहो की सीट समाजवादी पार्टी से गठबंधन के चलते उसी के सुपुर्द कर दी है, अब उसे १८ उम्मीदवारों की घोषणा करनी है। ये नाम अखिल भारतीय कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में तय किए जाएंगे। इसमें प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह, जांच समिति की अध्यक्ष रजनी पटेल और ओमकार सिंह मरकाम शामिल रहेंगे। इस बैठक में ऐसे उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा, जो राम मंदिर और मोदी लहर को चुनौती देते हुए भाजपा उम्मीदवारों को कड़ी चुनौती दे सकें। गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रत्याशी होने की घोषणा के साथ ही सिंधिया कांग्रेस के लिए एक चुनौती के रूप में पेश आ रहे हैं। उन्हें कांग्रेस अपने ही संसदीय क्षेत्र में घेरे रखने की दृष्टि से अरुण यादव को प्रत्याशी बना सकती है। इस क्षेत्र में करीब ३ लाख यादव मतदाता हैं। अत: इस जातीय समीकरण के चलते सिंधिया को घेरने की कवायद चल रही है।
इसी तरह मुरैना में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के नुमाइंदे शिवमंगल सिंह तोमर को कड़ी टक्कर देने के लिए जौरा विधायक पंकज उपाध्याय को उतार सकती है। इसी तरह विदिशा से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने के लिए सिलवानी विधायक देवेंद्र पटेल को उतारा जा सकता है। ग्वालियर में पूर्व मंत्री भरत सिंह कुशवाह को टक्कर देने के लिए लाखन सिंह यादव या प्रवीण पाठक को उतारा जा सकता है। राजगढ़ से दिग्विजय सिंह के भतीजे प्रियव्रत सिंह को टिकट दे सकती है। कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा के जो उम्मीदवार दिग्गज माने जाते हुए मतदाता को लुभा सकते है, उन्हें उन्हीं के क्षेत्र में सीमित कर दिया जाए, जिससे वे भाजपा के पक्ष में अन्य संसदीय क्षेत्रों में सभा करने से वंचित हो जाएं।
इसी घेराबंदी की मानसिकता के चलते कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को गुना सीट से हराने वाले केपी यादव को कांग्रेस में लाने के लिए डोरे भी डाले थे, लेकिन वे चंदेरी में आयोजित हुई सिंधिया की सभा में न केवल उपस्थित रहे, बल्कि उन्होंने हुंकार भरी है कि वे पार्टी के लिए जी-जान से काम करेंगे। दरअसल, वैसे तो केपी सिंधिया की उंगली पकड़कर ही कांग्रेस में आए थे, लेकिन २०१८ के चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। नतीजतन, गुना संसदीय क्षेत्र यादव बहुल होने के कारण केपी को सिंधिया के विरुद्ध २०१९ में भाजपा ने टिकट भी दे दिया। चुनांचे यादवों का धु्रवीकरण हुआ और सिंधिया सवा लाख मतों से चुनाव हार गए थे। इस हार के बाद ही सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में अपने भरोसे के २२ विधायकों के साथ आ गए और कमलनाथ सरकार का तख्तापलट कर दिया था। हालांकि, विनम्रता से केपी ने कांग्रेस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। लेकिन राजनीति में कब बाजी पलट जाए, कहना मुश्किल है? यदि केपी पर कांग्रेस का वश नहीं चलता है, तब अरुण यादव, वीरेंद्र रघुवंशी या राव यादवेंद्र सिंह यादव में से किसी को टिकट दिया जा सकता है। हालांकि, कांग्रेस के इस जातीय समीकरण को कमजोर करने की दृष्टि से गुना संसदीय क्षेत्र के प्रभावशाली यादव नेताओं को सिंधिया पहले ही भाजपा में ले आए हैं।
कांग्रेस के निशाने पर अग्रिम पंक्ति में सिंधिया हैं। अतएव कांग्रेस चाहती है कि किसी तरह सिंधिया को परास्त कर उनके द्वारा किए गए तख्तापलट का बदला चुका लेगी। इसलिए वह यादव उम्मीदवार खड़ा करने की फिराक में है। यादवेंद्र सिंह भाजपा से ही कांग्रेस में गए थे। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उनके भाई अजय यादव और मां बाईसाहब यादव कांग्रेस से भाजपा में वापस आ चुके हैं। लेकिन सूत्र बताते हैं कि यादवेंद्र सिंह कांग्रेस में गुना लोकसभा का टिकट पाने की ही उम्मीद में टिके हैं यानी यह परिवार दोनों दलों को साधने में लगा है। हालांकि, यादवेंद्र कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि केपी यादव की तरह यादवों के वोटों के चलते वे चुनाव जीत सकते हैं? वीरेंद्र रघुवंशी भी सिंधिया की नुमाइंदगी करते हुए कांग्रेस में आए थे। सिंधिया के बूते वे शिवपुरी से विधायक भी बन गए थे, लेकिन बाद में उनकी सिंधिया से पटरी नहीं बैठी और वह भाजपा में चले गए। २०१८ में उन्हें भाजपा ने टिकट दिया और वे सिंधिया के सिपहसालार महेंद्र सिंह यादव को हराकर विधायक बन गए। चूंकि सिंधिया किसी भी हाल में उन्हें कोलारस से टिकट देने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए वे भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए, जिससे शिवपुरी से टिकट मिल जाए। लेकिन ऐन वक्त पर यहां केपी सिंह ने उम्मीदवार बनकर वीरेंद्र की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हालांकि, छह बार पिछोर से कांग्रेस के विधायक रहे केपी सिंह शिवपुरी से भारी मतों से चुनाव हार गए।
हालांकि, राहुल गांधी चाहते हैं कि दिग्विजय सिंह सिंधिया के विरुद्ध गुना सीट से चुनाव लड़ें। उन्हीं की तरह कमलनाथ, जीतू पटवारी, अजय सिंह, अरुण यादव और उमंग सिंघार भी भाजपा के दिग्गजों के मुकाबले में चुनावी समर में उतरें। इसी लाइन पर चलते हुए कांग्रेस शेष रह गर्इं १८ सीटों पर कांग्रेस के उन दिग्गजों को उतारना चाहती है, जो या तो वर्तमान में विधायक हैं या फिर जनाधार वाले नेता हैं।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)

अन्य समाचार