प्रमोद भार्गव
आज-कल मध्य प्रदेश की राजनीति में केंद्रीय नागरिक एवं उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पारंपरिक ‘महाराजा-श्रीमंत’ की छवि तोड़ने की कोशिश में हैं। ऐसा पहली बार देखने में आया कि जैन समाज के नरवर में संपन्न हुए आयोजन में जनता से उन्होंने हाथ जोड़कर अपनी गलतियों के लिए माफी मांगी। उन्होंने मंच से कहा कि मेरे आपसे राजनैतिक संबंध नहीं हैं। दिल धड़कता है तो आपके लिए। विकास के लिए सोचता हूं तो आपके लिए। फिर भी मुझसे जो गलतियां हुई हैं, उनके लिए मैं माफी चाहता हूं। सिंधिया ने दो दिन की यात्रा में एक साथ जैन, वैश्य, बाथम, राठौर, रावत और यादव समाज के लोगों से संवाद की शैली में बातचीत की। देखा जाए तो यह आयोजन सामाजिक संस्थाओं द्वारा स्व-स्फूर्त नहीं थे। सिंधिया के महिमामंडन के लिए उनके समर्थकों द्वारा प्रायोजित थे। इसीलिए हरेक कार्यक्रम में उपस्थित लोग भी वही थे, गुणगान करना जिनकी प्रवृत्ति है। समस्याएं भी वही थीं, जो सिंधिया के २० साल से कांग्रेस और अब भाजपा की सरकारों में मंत्री रहते हुए कभी पूरी नहीं हुईं, जबकि प्रमुख योजनाओं की परिकल्पना से लेकर उन्हें जमीन पर उतारने में सिंधिया की अहम भूमिका रही है। २०१९ के आम चुनाव में सिंधिया की हार का कारण भी यही योजनाएं बनी थीं, जबकि एक समय सिंधिया इनकी सतत् निगरानी करते रहे थे। अब शिवपुरी के लिए संकट बनी इन योजनाओं का वे नाम भी नहीं लेते। शिवपुरी सिंधिया परिवार की परंपरागत लोकसभा सीट गुना में आती है। इन जातिगत संवादों से लग रहा है कि सिंधिया गुना से चुनाव लड़ने की इच्छा पाले हुए हैं। शिवपुरी के पूर्व विधायक देवेंद्र जैन ने तो सिंधिया से न केवल चुनाव लड़ने का आग्रह किया, बल्कि उनकी हार को जनता की भूल कहा। दरअसल, ऐसा इसलिए कहा कि क्योंकि देवेंद्र जैन खुद कोलारस से विधायक का टिकट मांग रहे हैं। उनकी दबी इच्छा है कि सिंधिया उनकी पैरवी करें।
इन चर्चाओं में एकमात्र समाजसेवी भरत अग्रवाल ने सिंधिया को आइना दिखाने की हिम्मत जुटाई। उन्होंने कहा कि आप के जो सलाहकार हैं, वह सही जानकारी नहीं देते हैं। इसलिए पांच ऐसे लोगों की टीम बनाएं, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा न हो और उन्हें भी हर दो साल में बदल दें। माधवराव सिंधिया रहे हों या ज्योतिरादित्य या फिर यशोधरा राजे सिंधिया इन्हें सलाह या नसीहत कभी सुहाती नहीं है। इसीलिए सिंधिया ने इस प्रश्न का उत्तर तो दिया, लेकिन कटाक्ष भी कर दिया। उन्होंने कहा, ‘हां मेरी गलती थी, मेरी कमी थी, पर याद रखना यदि किसी की तरफ से एक उंगली आप उठाते हैं तो आप की ओर भी चार उंगलियां उठती हैं। मैं यहां १७ साल से राजनीति में हूं। मैं जानता हूं कि कौन जीरो है और कौन हीरो है। मुझे जमीनी लोग चाहिए, हवाई नहीं। मुझे बताओ मैं किसे सलाहकार बनाऊं? आप अपने समाज के दो ऐसे व्यक्ति बताएं जिनका अपने समाज के अलावा अन्य समाजों में भी सम्मान हो। फिर यदि आप की बात न मानूं तो मुझे दोषी ठहराएं। यानी सिंधिया मानकर चल रहे हैं कि पूरे कुएं में भांग घुली है। लिहाजा इसका निराकरण संभव ही नहीं है। लिहाजा हालात यथास्थिति में बने रहें, इसी में भलाई है।
फिर भी सिंधिया की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि वे परस्पर संवाद की हिम्मत जुटाते हुए एक-एक करके उन मिथकों को तोड़ रहे हैं, जो उनकी दादी, पिता एवं बुआएं नहीं तोड़ पाईं। ग्वालियर में आयोजित स्वच्छता अभियान कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए सिंधिया ने अनूठा काम कर दिखाया था। इस आयोजन में सिंधिया मुख्य अतिथि थे और उन्हें महिला एवं पुरुष सफाईकर्मियों को शाल व श्रीफल देकर सम्मान करना था। सिंधिया जब आयोजन स्थल पर पहुंचे, तब उन्होंने सरस्वती माता की अर्चना के लिए श्रीमती बबिता वाल्मीकि को अपने साथ लिया और प्रतिमा की पूजा उन्हीं से कराई। बबिता जब अपनी जगह पर बैठने को चलने लगीं तो एका-एक सिंधिया ने उनके पैर छुए और उन्हें बाजू पकड़कर मंच पर अपने पास वाली विशिष्ट कुर्सी पर बिठा दिया। साथ ही सिंधिया बोले,‘सफाईकर्मी हमारे देवता हैं और देवताओं के चरण छुए और धोए जाते हैं।’ गदगद बबिता ने सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने का आर्शीवाद दिया। इसके पहले जैन ऋषि भी उन्हें मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वचन दे चुके हैं। सिंधिया कांग्रेस में रहने के दौरान भाजपा के उन नेताओं के घर भी हो आए, जो उनके कट्टर विरोधी रहे थे। सिंधिया एक और परंपरा तोड़ते हुए महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर रानी का वंदन-अभिनंदन कर चुके हैं, जबकि दुनिया जानती है कि रानी के बलिदान के लिए उनके पूर्वजों को इतिहासकारों ने दोषी ठहराया है।
बावजूद इसके, अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि सिंधिया द्वारा मिथक तोड़ने की घटनाएं जनता में उनकी विषेश छवि गढ़ रही हैं अथवा नहीं? क्योंकि शिवपुरी में दो बड़ी पेयजल और सीवर योजनाएं बीते १२ साल से निर्माणाधीन हैं, लेकिन अरबों रुपए खर्च होने के बावजूद भी पूरी होने को नहीं आ रही हैं। सीवर लाइन के पूरी हो जाने के बाद भाr ऐसा नहीं लगता कि इसका लाभ जनता को मिलेगा। विडंबना यह है कि इन योजनाओं पर शुरू होने के बाद से ही ज्योतिरादित्य और यशोधरा राजे की विशेष निगरानी रही। लेकिन इनके निर्माण में घटिया सामग्री के इस्तेमाल के बावजूद न तो कभी ज्योतिरादित्य ने और न ही यशोधरा ने। किसी अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया न ही कभी लोकसभा और विधानसभा में इन योजनाओं के घटिया निर्माण पर सवाल पूछे गए। इसलिए जनता अधिकारियों के साथ बुआ-भतीजे को दोषी मान रही है। इन सवालों के उत्तर जातीय संवाद में निरंतर बनी रहनेवाली मांगों को उठानेवाले चुनाव में कुछ करिश्मा कर पाएंगे, ऐसा लगता नहीं है। भाजपा विरोधी रुझान में भी विकास योजनाओं की असफलताएं नाराजगी बढ़ा रही हैं।
(लेखक, साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)