प्रमोद भार्गव
शिवपुरी (मध्य प्रदेश)
कांग्रेस एवं अन्य दलों से भाजपा में आए नेताओं को लेकर अब भाजपा में बगावत की धमकी दी जाने लगी है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस से भाजपा में आए रामनिवास रावत को वनमंत्री बनाए जाने के बाद भाजपा में पत्रकार वार्ता बुलाकर नाराजगी जताई गई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार में रतलाम-झाबुआ क्षेत्र के बड़े नेता नागर सिंह चौहान को वन एवं पर्यावरण और अनुसूचित जाति कल्याण विभाग जैसे बड़े मंत्रालय दिए गए थे, परंतु अब उनसे वन एवं पर्यावरण जैसा बड़ा मंत्रालय छीनकर पूर्व कांग्रेसी रामनिवास रावत को दे दिया गया है। नागर सिंह ने बाहरी नेता को इतना महत्व दिए जाने पर खुली नाराजगी जताते हुए खुद तो मंत्री पद से इस्तीफा देने की धमकी का एलान किया ही अपनी सांसद पत्नी अनीता सिंह नागर से भी इस्तीफा दिलाने की बात कही है। उन्होंने आउटसोर्स नेताओं को मंत्री पद पर अलंकृत किए जाने पर कहा कि वह मंगलवार को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर अपनी बात रखेंगे।
मीडिया से बातचीत में नागर ने कहा है कि मुझे कोई विभाग छीनना था तो मुख्यमंत्री को इस विषय पर मुझसे बात करने की जरूरत थी। लेकिन कांग्रेस से हाल ही में आए नेता को वैâबिनेट मंत्री बनाकर महत्वपूर्ण पद दे दिया, जो गलत है। यह पैâसला बाला-बाला लिया गया। इस कारण मैं दुखी हूं। दल के वरिष्ठ नेताओं से बात करके अपनी नाराजगी जताऊंगा। मैं बीते २५ सालों से भाजपा के लिए निरंतर काम कर रहा हूं, ऐसा अपमान बर्दाश्त से बाहर है। यदि मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया तो पत्नी अनीता नागर जो रतलाम से सांसद हैं, उनका भी इस्तीफा दिलवा दूंगा। नागर सिंह की इस धमकी से भाजपा की गति सांप-छछुंदर की हो गई है। इस धमकी पर कांग्रेस प्रवक्ता मुकेश नायक ने कहा है कि भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं की बजाय दलबदलू प्यारे लग रहे हैं। नागर के मंत्री पद से त्यागपत्र की पेशकश भाजपा में नैसर्गिक नेतृत्व को दरकिनार कर दलबदलुओं को महत्व देने में लगा है। रामनिवास को मंत्री बनाना इसका जीवंत उदाहरण है। सत्ता के लिए भाजपा को अपने मेहनती कार्यकर्ताओं से कहीं ज्यादा अवसरवादी दलबदलू प्यारे हो गए हैं।
इस धमकी से भाजपा संगठन एवं सरकार में हड़कंप है। शीर्ष नेतृत्व ने नागर की नाराजगी दूर करने के लिए तुरंत दिल्ली बुलाया है। दरअसल, भाजपा की चिंता का विषय प्रदेश का बड़ा जनजाति आदिवासी समूह की चिंता है। नागर अपने क्षेत्र झाबुआ-अलीराजपुर में लोकप्रिय नेता के रूप में पहचान बनाए हुए हैं। वे अलीराजपुर से चार बार विधायक चुने जा चुके हैं। नागर की पत्नी अनीता ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता और केंद्रीय मंत्री रहे कांतिलाल भूरिया को रतलाम से पराजित किया था। यदि नागर नहीं माने तो आदिवासी वर्ग में भाजपा के प्रति नाराजगी तो बढ़ेगी ही, अन्य असंतुष्ट भाजपाई मुंह खोलने लग जाएंगे। क्योंकि भाजपा ने २०२३ के विधानसभा चुनाव में मूल भाजपा कार्यकर्ताओं को दरकिनार रखते हुए कांग्रेसियों को बड़ा महत्व दिया है। इसीलिए कहा जा रहा है कि भाजपा में अब दलबदलुओं की बल्ले-बल्ले है। इस सिलसिले में नागर सिंह का कहना है, ‘मंत्री बनाना और मंत्रालय बदलना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है। अतएव मुझसे विभाग क्यों छीना, यह वही बता सकते हैं, लेकिन मुझसे बात तो करनी चाहिए थी। पार्टी के शीर्ष नेताओं ने मुझसे कहा है कि पार्टी फोरम में ढंग से अपनी बात रखूं। इसी हेतु मैं दिल्ली जा रहा हूं। अगर मेरी बात नहीं सुनी जाती है तो मैं पद से इस्तीफा दे दूंगा।’ हालांकि, रामनिवास रावत गृह या खनिज मंत्री बनना चाहते थे। लेकिन नागर से विभाग छीनना आसान लगा। इस दौरान रामनिवास का एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें वे गृहमंत्री के रूप में वन एवं पर्यावरण को समृद्ध बनाने का संकल्प लेते हुए दिख रहे हैं। इससे यह अंदाजा था कि उन्हें इन्हीं दो विभागों में से कोई एक दिए जाने का भरोसा मुख्यमंत्री और संगठन द्वारा दिया गया होगा?
दरअसल, यह पूरी पटकथा विजयपुर से विधायक रहे रामनिवास रावत को उनके उपकार के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए रची गई है। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने मुरैना से शिवमंगल सिंह तोमर को उम्मीदवार बनाया था। उन्हें विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने न केवल टिकट दिलाया, बल्कि केंद्रीय नेतृत्व को जीत की गारंटी भी दे दी थी। लेकिन शिवमंगल की हार की स्थिति भांपने पर रामनिवास को इस शर्त पर भाजपा में लाया गया कि आपको प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया जाएगा। रामनिवास विजयपुर से छह बार कांग्रेस विधायक रहे हैं। पहले माधवराव और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नुमाइंदे होने के बाद भी वे कांग्रेस के प्रति निष्ठा के चलते सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल नहीं हुए थे, जबकि सिंधिया ने उनको मनाने की अनेक कोशिशें की थीं। बाद में उन्हें कांग्रेस नहीं छोड़ने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा था। हालांकि, ऐसा कहा जा रहा है कि मोहन यादव ने नागर के साथ बंद कमरे में बातचीत करते हुए कहा था, ‘आपकी पत्नी सांसद बन गई हैं। अतएव आपको मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ेगा, क्योंकि केंद्र की यही इच्छा है।’ सवाल के उत्तर में नागर सिंह ने कहा था, ‘मैं दिल्ली बात कर लूंगा।’ नागर का यह भी कहना है कि मैंने पत्नी के लिए टिकट नहीं मांगा था, बल्कि मैंने तो पार्टी को सुझाव दिया था कि झाबुआ के जिलाध्यक्ष भानू भूरिया, पूर्व विधायक कमल सिंह भांवर या दिलीप सिंह परमार को दे दिया जाए, लेकिन पार्टी ने मेरी पत्नी में जीत की उम्मीद ज्यादा देखी। अतएव टिकट दे दिया। ऐसे में मेरी पत्नी की बिना पर मेरा करियर क्यों खराब किया जा रहा है। इस सिलसिले में हैरानी की बात है कि इस पूरे घटनाक्रम के विषय में वीडी शर्मा, प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद शर्मा ने कोई भी जानकारी नहीं होने की बात कही है। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में करीब १८ साल मुख्यमंत्री रहे, लेकिन संगठन को दरकिनार करके उन्होंने कोई बड़ा पैâसला लिया हो, यह देखने में नहीं आया। बहरहाल इस घटनाक्रम को लेकर मुख्यमंत्री मोहन यादव की रणनीतिक एवं प्रशासनिक अपरिपक्वता सामने आई है। इसका उन्हें भविष्य में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)