प्रमोद भार्गव
शिवपुरी (मध्य प्रदेश)
कांग्रेस भाजपा के जातीय समीकरण में भी सेंध लगाने के प्रयास में लगी है। प्रदेश में यादव, धाकड़, लोधी प्रमुख वोट हैं। इस समय भाजपा से यह वोट बैंक कई कारणों से छिटक जाने की मनस्थिति में है। किरार, धाकड़ वोट इसलिए नाराज हैं, क्योंकि प्रदेश में बड़ी जीत दिलाने के बावजूद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें किनारे कर दिया। लोधी वोट बैंक उमा भारती को किनारे लगा देने के कारण नाराज है। हालांकि, इसी जाति के प्रह्लाद लोधी को भाजपा ने महत्व दिया हुआ है, लेकिन उन्हें केंद्रीय मंत्री से त्याग-पत्र दिलाकर विधानसभा का चुनाव लड़ाना इस जाति को अच्छा नहीं लगा, इसलिए यह जातीय समूह भाजपा से एक हद तक खफा है।
मध्य प्रदेश में इस बार का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए एक अलग ढंग की चुनौती के रूप में पेश आ रहा है। कांग्रेस में कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को जिताने के लिए छिंदवाड़ा में सिमट गए हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह राजगढ़ और कांतिलाल भूरिया रतलाम में सिमटकर रह गए हैं। भाजपा मध्य प्रदेश की सभी २९ सीटें जीतने का दावा जरूर कर रही है, लेकिन उसके दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीडी शर्मा के पक्ष में है, इस नजरिए से जीत का कीर्तिमान स्थापित करने की होड़ में लगे हैं। खजुराहो से उम्मीदवार वीडी शर्मा पर तो समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन निरस्त कराने तक का आरोप लगा है। यह सीट इंडिया गठबंधन के चलते कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ दी थी। यहां पहले मनोज यादव को प्रत्याशी घोषित किया गया था, किंतु बाद में मीरा यादव को उम्मीदवार बना दिया गया। अब इस सीट पर कांग्रेस और इंडिया का कोई प्रत्याशी नहीं है। अतएव वीडी शर्मा की जीत आसान हो गई है। यदि सपा चुनाव लड़ रही होती तो सपा और कांग्रेस मिलकर भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकती थीं, किंतु अब मैदान साफ है।
यहां से सपा ने मनोज यादव को पूर्व में प्रत्याशीr घोषित किया था, किंतु उन्हें कमजोर प्रत्याशी मानकर मीरा यादव को टिकट दे दिया गया। मीरा २००८ में निवाड़ी विधानसभा से चुनाव जीती थीं। हालांकि, यह सीट परिसीमन के बाद टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र में चली गई। मीरा के पिता दीप नारायण यादव सपा के प्रदेश इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। मीरा के पति दीपक यादव ने बेवजह नामांकन रद्द कराने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि यदि नामांकन में जांच के बाद कोई कमी पाई जाती है तो निर्वाचन नियमावली के अनुसार, गलतियों को ठीक कराने की जिम्मेदारी निर्वाचन अधिकारी की है, जबकि नामांकन जमा करते समय उसे सही बताया गया था, लेकिन बाद में दो कमियां निकाल दी गर्इं। एक गलती सत्यापित मतदाता सूची पुरानी होना बताया गया और एक जगह आवेदन पर हस्ताक्षर नहीं होना बताया गया। इन दोनों कमियों को ही हम दूर कर सकते थे। नई मतदाता सूची लेने का हमारे पास समय भी था। हमने लिखित में इन कमियों को दूर करने की अर्जी भी निर्वाचन अधिकारी को दी थी, लेकिन हमें सुधार का मौका नहीं दिया गया। अब हम उच्च और उच्चतम न्यायालय तक गुहार लगाएंगे। बहरहाल, भविष्य में क्या होगा इसका वर्तमान से कोई वास्ता नहीं रह गया है। नामांकन खारिज होने से वीडी शर्मा जरूर फायदे में दिख रहे हैं।
इस बार कांग्रेस की मुख्य नजर आदिवासी वोट बैंक पर है। आदिवासी नेता और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और कांतिलाल भूरिया इस समय आदिवासियों में पैठ बनाने के सभी प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा प्रदेश के मूल निवासी आदिवासियों को वनवासी पहचान देने की कोशिश में लगी है, क्योंकि वे उन्हें जल-जंगल और जमीन के अधिकार से वंचित करना चाहती है। इसे कांग्रेस सफल नहीं होने देगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि आदिवासी कांग्रेस का प्रदेश में लंबे समय तक मजबूत वोट बैंक रहा है, लेकिन इसे कांग्रेस से तोड़ने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो जमीनी स्तर पर कर ही रहा है, शिवराज सिंह चौहान ने भी १८ साल मुख्यमंत्री रहते हुए इस वोट बैंक में सेंध लगाने का काम किया है। बावजूद २०१८ और २०२३ के विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति अच्छी रही थी, इसीलिए २०२३ में लाडली बहना योजना लागू कर देने के बावजूद भाजपा आरक्षित ४७ सीटों में से २४ सीटें ही जीत पाई थी, इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि वह इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करेगी।
प्रदेश में २९ में से छह लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। ये हैं, शहडोल, मंडला, रतलाम, धार, खरगोन और बैतूल। हालांकि, भाजपा और संघ मिलकर इन सीटों पर नजरें गढ़ाए हुए हैं। संघ ने ग्रामीण क्षेत्रों में मोर्चा संभाला हुआ है। छिंदवाड़ा में तो महाराष्ट्र से भी संघ के प्रचारकों ने आकर डेरा डाला हुआ है। २०२३ के विधानसभा चुनाव में भी संघ ने जमीन पर उतरकर भाजपा के लिए वोट मांगे थे, बावजूद उसे २२ विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की तुलना में कम वोट मिले थे, इसलिए कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि उसका परंपरागत आदिवासी मतदाता आज भी बड़ी संख्या में उसके साथ है। इस वोट बैंक को बनाए रखने के लिए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में २५ गारंटियां देने के लिए मतदाताओं के घर-घर पहुंचने का काम कर रही है। इस मकसद की पूर्ति के लिए कांग्रेस ने गारंटी कार्ड तैयार किए हैं। इनमें युवा, महिला, किसान, श्रमिक और भाजपा द्वारा आदिवासियों को वनवासी बनाए जाने के पीछे क्या खेल खेल रही है, यह बताएंगे। लेकिन कांग्रेस के पास वर्तमान में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि संशोधनों की कमी के चलते वह कितने घरों तक पहुंच पाती है, यह सोचनेवाली बात होगी। हालांकि, संगठन के मुख्य प्रवक्ता कुणाल चौधरी का कहना है कि जिला और विकासखंड इकाईयों के साथ उम्मीदवारों को भी गारंटी कार्ड उपलब्ध करा दिए गए हैं और इन्हें लेकर कार्यकर्ता घर-घर पहुंच रहे हैं। कांग्रेस प्रदेश में महालक्ष्मी योजना लागू करके प्रत्येक गरीब परिवार की एक महिला को वर्ष भर में एक लाख रुपए देने की गारंटी भी दे रही है।
कांग्रेस भाजपा के जातीय समीकरण में भी सेंध लगाने के प्रयास में लगी है। प्रदेश में यादव, धाकड़, लोधी प्रमुख वोट हैं। इस समय भाजपा से यह वोट बैंक कई कारणों से छिटक जाने की मनस्थिति में है। किरार, धाकड़ वोट इसलिए नाराज हैं, क्योंकि प्रदेश में बड़ी जीत दिलाने के बावजूद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें किनारे कर दिया। लोधी वोट बैंक उमा भारती को किनारे लगा देने के कारण नाराज है। हालांकि, इसी जाति के प्रह्लाद लोधी को भाजपा ने महत्व दिया हुआ है, लेकिन उन्हें केंद्रीय मंत्री से त्याग-पत्र दिलाकर विधानसभा का चुनाव लड़ाना इस जाति को अच्छा नहीं लगा, इसलिए यह जातीय समूह भाजपा से एक हद तक खफा है। यादव वोट २०२३ के विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस के फेवर में था, क्योंकि कांग्रेस ने बड़ी संख्या में यादवों को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि, मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से यह वोट बैंक भाजपा के पक्ष में आया जरूर है, लेकिन अभी इसे भरोसे का वोट नहीं माना जा सकता है। लिहाजा, वीडी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में यादव वोट कितना जाता है, यह अभी कहा नहीं जा सकता।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)