तेरे इश्क नशे की है व्हिस्की
तू मेरी हो या फिर किसकी
तेरा बदन जो सारा है महका
तेरा रंग जवां सबसे हल्का
तू चलती है हिरनी जैसी
तेरा होश हवास भी अल्हड़-सी
तू कहती कुछ तो कलियां खिलती
तेरी बात मधुर-सी ये लगती
तू हंसती तो होती हलचल
तेरा हंसना भी लगता है गजल
तेरी हर शरारत रब जाने
तू चम-चम करती ताजमहल
तेरी आंख भी झील-सी है गहरी
तुझे देखूं तो लगती बदरी
तेरी हर अदाएं नजाकत है
ऐसा लगता है मुझसे मोहब्बत है
तेरी जुल्फों में बादल गहरा
तेरे होंठों पे मधु है ठहरा
तू लगती हैं पूर्वा की हवा
तू गर्मी ठंडी में भी रवां
तेरे रूप रंग पे मचला सावन
तू पहली है पहला सावन
तेरी हसीं है चाहत मक्खन सी
तू हो गई है मेरी आदत सी।
-मनोज कुमार
गोण्डा, उत्तर प्रदेश