श्रीकिशोर शाही
लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही भाजपा की नजर बिहार की ४० सीटों पर है। भाजपा के दिग्गज दावा कर रहे हैं कि वे बिहार में ४० की ४० सीटें जीतेंगे, मगर बिहार में जो कुछ भी हो रहा है उससे लगता है कि ४० तो दूर की बात है। अगर एनडीए २० सीट भी जीत जाए तो उसके लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। असल में बिहार में इन दोनों के. के. पाठक नामक एक शख्स ने हलचल मचा रखी है। वरिष्ठ आईएएस पाठक जी बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव हैं। पूर्व में नीतिश कुमार की शराब बंदी नीति को उन्होंने काफी चुस्ती से लागू किया था। पाठक जी प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में भी अपनी सेवा दे आए हैं। इन दिनों वे बिहार का शिक्षा विभाग संभाल रहे हैं। शिक्षा विभाग संभाल रहे हैं तो आप सोच रहे होंगे कि इससे चुनाव का क्या लेना-देना? तो जनाब लेना-देना है और भरपूर है। दरअसल, मामला ही कुछ ऐसा है।
देश में हिंदुओं के दो सबसे बड़े त्योहार हैं होली और दिवाली। ये दोनों ऐसे त्योहार हैं, जिस दिन सारे सरकारी दफ्तर बंद रहते हैं और आम लोगों की भी छुट्टियां रहती हैं। होली में लोग हुड़दंग करते हैं, रंग गुलाल लगाते हैं, मिठाइयां खाते हैं। होली की मदहोशी में इसका जश्न मनाते हैं, मगर इस बार बिहार में होली का जश्न वैâसे मनता? क्योंकि स्कूल खुले हुए थे। सरकार के आदेश पर पहली क्लास से लेकर नौवीं क्लास तक के सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की गणित की वार्षिक परीक्षा रख दी गई थी। इससे वहां भारी असंतोष पनप गया। इसका भारी विरोध शुरू हो गया, मगर पाठक जी टस से मस नहीं हो रहे थे। लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर। अब जरा सोचिए, बच्चे तो प्राय: सभी घरों में हैं और यह सब किया-धरा पाठक जी का। पाठक जी के इस कृतित्व के खिलाफ बिहार की जनता में रोष है। वैसे जब विरोध काफी ज्यादा बढ़ गया तो होली के दिन वाली परीक्षा को आगे धकेलकर २९ मार्च कर दिया गया, मगर उस दिन तो गुड प्रâाइडे है। उस दिन भी छुट्टी रहती है। खैर, उस दिन की उस दिन देखी जाएगी। वैसे २५ तारीख को शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए स्कूल आना अनिवार्य कर दिया गया। बिहार में महिला शिक्षकों की एक बड़ी संख्या है। अब स्कूल जाएं या घर पर होली के पकवान बनाएं… बड़ी विकट परिस्थिति रही उनके लिए। मुख्यमंत्री नीतिश कुमार तक हजारों शिकायतें पहुंची, लेकिन उन्होंने अपने चहेते अफसर के काम में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इससे बिहार की महिलाओं में सरकार के प्रति काफी गुस्सा है। भाजपा के एक स्थानीय नेता का कहना है कि इस बार उनकी श्रीमती जी भाजपा को वोट नहीं देंगी। उनका कहना है कि वोट देने से अच्छा है घर में बैठना। अब जब श्रीमती जी गुस्से में हैं तो श्रीमानजी की क्या मजाल कि वे जाकर वोट दें। बात दरअसल यह है कि भाजपा नेता की पत्नी शिक्षिका हैं यानी भाजपा के पीड़ित नेता ही भाजपा को वोट नहीं देंगे। अब यह सब किसके कारण हुआ? तो जवाब सीधा है श्रीमान पाठक जी के कारण। वैसे खबर है कि अपने खिलाफ माहौल देखकर पाठक जी एक बार फिर प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में जाकर सेवा देने का विचार कर रहे हैं। बहरहाल, यहां तो भाजपा को वोट न देने का सिर्फ एक ही उदाहरण दिया गया है। मगर, सोचने की बात है कि इस होली कांड के कारण बिहार के कितने परिवार सरकार के इस करतूत से नाराज हो गए होंगे। चुनावी माहौल में ऐसे खिलवाड़ भारी पड़ सकते हैं। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में नाराज मतदाताओं के कारण एनडीए को झटका लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।