फिरोज खान
लखनऊ से निकली पुष्पक एक्सप्रेस अपनी तेज रफ्तार में मुंबई की ओर दौड़ रही थी। डिब्बों में बैठे यात्री हंसी-मजाक में डूबे थे। कुछ यात्री लेटकर यात्रा का आनंद ले रहे थे। शाम ४.४२ बजे का समय था। कुछ यात्री शाम का नाश्ता कर रहे थे और कुछ गपशप कर रहे थे। ऐसे खुशनुमा माहौल में सभी यात्री इस बात से बेखबर थे कि जितनी तेजी से ट्रेन दौड़ रही है, उतनी ही तेजी से मौत भी उनके करीब आ रही है।
ट्रेन मुंबई से करीब ४२५ किमी पहले जलगांव के पाचोरा स्टेशन के पास पहुंची ही थी कि तभी अचानक कुछ यात्रियों को ट्रेन में धुआं उठता नजर आया। धुएं को देख यात्रियों ने शोर मचाना शुरू किया कि ट्रेन में आग लग गई है। आग लगने की आवाज सुनकर ट्रेन के डिब्बों में अफरा-तफरी मच गई। हर कोई अपनी-अपनी जान बचाने के लिए एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में भागने लगा। औरतें और बच्चे चीख-पुकार मचाने लगे। किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर करें तो क्या करें। कुछ यात्रियों ने समझदारी दिखाते हुए फौरन चेन खींच दी। चेन खींचते ही कुछ दूरी पर जाकर ट्रेन रुक गई। डरे और सहमे यात्रियों ने यह जानने की कोशिश तक नहीं की कि हकीकत में ट्रेन में आग लगी है या नहीं। ट्रेन रुकते ही कुछ यात्री जान बचाने के लिए ट्रेन से कूदकर दूसरी पटरी पर भागने लगे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिस मौत के डर से वे अपनी जान बचाकर भाग रहे हैं, वही मौत पटरी पर खड़े होकर उनका इंतजार कर रही है। कुछ लोग घबराकर बगल की पटरी पर कूदे ही थे कि उसी पटरी पर तेज रफ्तार में बंगलोर एक्सप्रेस आ पहुंची और यात्रियों को कुचलती चली गई। हादसे में १३ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। कई लाशें पटरी पर बिछ गर्इं। दिल दहला देनेवाले मंजर को देखकर हर कोई कांप उठा। पलभर में सारा माहौल दर्दनाक नजर आने लगा। खून और लाशों के टुकड़ों की तरफ देखने की कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा था। मरनेवालों को यह पता नहीं था कि जिस ट्रेन में वह सफर कर रहे हैं वह ट्रेन उन्हें उनकी मंजिल तक नहीं, बल्कि मौत तक पहुंचा देगी।
कभी भी अफवाह की हकीकत जानने की कोशिश करनी चाहिए। एक अफवाह ने १३ लोगों को निगल लिया।