मुख्यपृष्ठअपराधतहकीकात : सच, निष्पक्षता व जुनून के बदले मिली दर्दनाक मौत

तहकीकात : सच, निष्पक्षता व जुनून के बदले मिली दर्दनाक मौत

फिरोज खान
पत्रकारों के जोखिम भरे कार्य का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर वो भ्रष्टाचार की पोल खोल दे तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने सच्चाई लोगों के सामने लाने की कोशिश की और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। इसी तरह का एक मामला बीजापुर से सामने आया है, जहां एक पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने भ्रष्टाचार को क्या उजागर किया, उसे बड़ी ही बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। पत्रकार मुकेश चंद्राकर को सुरेश के भाई रितेश का फोन आया और उसने मुकेश को मिलने के लिए अपनी प्रॉपर्टी पर बुलाया। इसके बाद मुकेश का मोबाइल बंद हो गया।
हाल ही में पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने सड़क भ्रष्टाचार को लेकर ठेकेदार के खिलाफ एक बड़ी खबर बनाई थी। खबर यह थी कि सड़क ठेकेदार सुरेश ने ५० करोड़ वाले टेंडर को १२० करोड़ तक पहुंचा दिया था। सड़क की हालत खराब थी, लेकिन ठेकेदार सुरेश को करोड़ों का मुनाफा हो रहा था। भ्रष्टाचार की खबर चलने पर ठेकेदार सुरेश आगबबूला हो गया और पत्रकार मुकेश की हत्या करने की घिनौनी साजिश रच डाली। सुरेश के चचेरे भाई रितेश से मुकेश का रिश्ता अच्छा था। इसलिए साजिश के तहत ठेकेदार सुरेश ने रितेश से कहा कि वो उसे खाने पर बुलाए। खैर, रितेश की दावत मुकेश ने कबूल कर ली और १ जनवरी की शाम ठेकेदार सुरेश के बैडमिंटन कोर्ट परिसर मुकेश पहुंच गया। किसी को शक न हो इसलिए ठेकेदार सुरेश अपने भाई दिनेश के साथ जगदलपुर निकल गया। साजिश के तहत सब कुछ तय था। मुकेश के पहुंचते ही मौका पाकर रितेश ने सुपरवाइजर महेंद्र रामटेके के साथ मिलकर पहले तो मुकेश की जमकर पिटाई की। मुकेश कुछ समझ पाता इससे पहले रितेश ने लोहे के तेज हथियार से उसके सिर पर जोर से वार किया। मुकेश के जमीन पर गिरते ही उसकी छाती और सिर पर उन्होंने कई वार किए। हमलावरों को जब विश्वास हो गया कि मुकेश मर चुका है, तो लाश को छुपाने के लिए उन्होंने लाश को सेप्टिक टैंक में डाल दिया। लाश से उठनेवाली बदबू को छिपाने के लिए उन्होंने सेप्टिक टैंक पर कंक्रीट की स्लैब डालकर उसे पैक कर दिया। इसी के साथ खत्म हो गई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानेवाले पत्रकार मुकेश की जिंदगी।
सच, निष्पक्षता, जुनून, एक पत्रकार से पूरा समाज और पत्रकारिता धर्म यही तीन चीजें चाहता है, लेकिन पत्रकार को इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है।

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