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निवेश गुरु : व्यापार के साथ वेल्थ क्रिएशन

भरतकुमार सोलंकी

एक मित्र ने पूछा हैं व्यापार करते हुए वेल्थ क्रिएशन कैसे करे? फॉर्मा डिस्ट्रीब्यूशन एजेंसी हैं। ग्राहकों को उधार माल बेचना पड़ता हैं और सप्लायर को एडवांस भुगतान करना होता हैं। एक अविभक्त हिंदू परिवार के तीन भाई अपने पिता के साथ मिलकर बिजनेस करते हैं। परिवार में तीनों भाइयों की बहुओं के अलावा मां-पिता को मिलाकर कुल आठ बड़े सदस्य हैं। परिवार के सभी सदस्य एलएलपी कंपनी में भागीदार हैं। आठ सदस्यों के अलावा पिताजी और भाइयों के नाम एचयूएफ की इन्कम टैक्स रिटर्न फाइल भी करते हैं। इस तरह पूरे परिवार में कुल १२ सदस्यों के नाम कंपनी की इन्कम को बांट लिया जाता हैं। प्रतिवर्ष सरकारी बजट घोषणा के बाद साल के शुरू में ही कंपनी की नेट इन्कम तय कर लेते हैं। सालाना इन्कम निर्धारित करने के साथ ही उसे बारह भागों में बांटकर सेलरी और कमीशन के रूप में प्रत्येक सदस्य के सेविंग अकाउंट में हर माह ट्रांसफर करने की प्लानिंग कर लेते हैं। परिवार के सभी सेविंग अकाउंट में हर माह ७५ हजार की आमदनी मिलने पर किसी को भी इन्कम टैक्स नहीं देना पड़ता हैं इस तरह कुल एक करोड़ से अधिक आमदनी पर जीरो इन्कम टैक्स देते हुए अपने पूरे परिवार के लिए वेल्थ क्रिएशन भी कर लेते हैं। परिवार के सदस्यों को दी गई सैलरी और कमीशन कंपनी के लिए ग्रॉस प्रॉफिट का हिस्सा बन जाता हैं। सभी सदस्यों को मिले नेट प्रॉफिट को निवेशकर वेल्थ क्रिएशन भी हो जाती हैं। इस तरह हर महीनें हर सदस्य के नाम ५० हजार का म्युच्युअल फंड इक्विटी एसआईपी निवेश और पीपीएफ बचत की आदत से नियमित वेल्थ क्रिएशन भी हो जाती हैं। परिवार के सदस्यों का मानना हैं कि सरकार द्वारा दी गई छूट का लाभ लेने के बाद अगर वे आयकर, जीएसटी अथवा किसी भी तरह का टैक्स-कर चुकाते भी हैं तो वह एक चैरिटी हैं। लेकिन कोई अगर अपने परिवार की आर्थिक बंदोबस्त किए बिना ही चैरिटी करता हैं तो वह अपने परिवार के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी होगी। हमारे देश में व्यापार से जुड़े व्यापारी सिर्फ अपने परिवार का ही चूल्हा नहीं जलाते हैं, बल्कि उस व्यापार से जुड़े लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में रोजी-रोटी का साधन बने हुए हैं और ऐसे में अगर व्यापारी अपने खुद के बुढ़ापे की सांझ को आरामदायक सुनहरा बनाने में अथवा अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए वेल्थ क्रिएशन करता हैं तो इसमें कोई बुराई भी नहीं हैं। व्यापार में उधार माल बेचना उस व्यापार का मार्केट नेचर हो सकता हैं और उसी नेचर के साथ तालमेल बिठाना उस व्यापारी व्यक्ति की अपनी निजी मैनेजमेंट आर्ट होती हैं। आर्ट को अच्छी आदत में बदलने से सफलता निश्चित ही तय मंजिल की ओर हवा का रुख मोड़ लेती हैं।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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